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Aarti Kunj Bihari Ki Pdf Download


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सिर्फ पढ़ने के लिये
उस समय उन परम पुरुष नारायण के सिवा दूसरी कोई प्राकृत वस्तु नहीं थी। उसके बाद ही उन महात्मा नारायणदेव से यथासमय सभी तत्व प्रकट हुए। महामते! विद्वन! मैं उन तत्वों की उत्पत्ति का कारण बता रहा हूँ। सुनो, प्रकृत से महत्तत्त्व प्रकट हुआ और महत्तत्त्व से तीनो गुण।
इन गुणों के भेद से ही त्रिविधि अहंकार की उत्पत्ति हुई। अहंकार से पांच तन्मात्राये हुई और उन तन्मात्राओ से पांच भूत प्रकट हुए। उसी समय ज्ञानेन्द्रियो और कर्मेन्द्रियों का भी प्रादुर्भाव हुआ। मुनिश्रेष्ठ! इस प्रकार मैंने तुम्हे तत्वों की संख्या बताई है।
इनमे से पुरुष को छोड़कर शेष सारे तत्व प्रकृत से प्रकट हुए है इसलिए सब के सब जड़ है। तत्वों की संख्या चौबीस है। उस समय एकाकार हुए चौबीस तत्वों को ग्रहण करके वे परम पुरुष नारायण भगवान शिव की इच्छा से ब्रह्म रूप जल में सो गए।
ब्रह्मा जी कहते है – देवर्षे! नारायण देव जल में शयन करने लगे उस समय उनकी नाभि से भगवान शंकर के इच्छा वश सहसा एक उत्तम कमल प्रकट हुआ जो बहुत बड़ा था। उसमे असंख्य नालदण्ड थे। उसकी कांति कनेर के फूल के समान पीले रंग की थी तथा उसकी लंबाई और ऊंचाई भी अनंत योजन थी।
वह कमल करोडो सूर्यो के समान प्रकाशित हो रहा था। सुंदर होने के साथ ही सम्पूर्ण तत्वों से युक्त था और अत्यंत अद्भुत, परम रमणीय, दर्शन के योग्य तथा सबसे उत्तम था। तत्पश्चात कल्याणकारी परमेश्वर सांब सदाशिव ने पूर्ववत प्रयत्न करके मुझे अपने दाहिने अंग से उत्पन्न किया।
मुने! उन महेश्वर ने मुझे तुरंत ही अपनी माया से मोहित करके नारायण देव के नाभिकमल में डाल दिया और लीलापूर्वक मुझे वहां से प्रकट किया। इस प्रकार उस कमल से पुत्र के रूप में मुझ हिरण्यगर्भ का जन्म हुआ। मेरे चार मुख हुए और शरीर की कांति लाल हुई। मेरे मस्तक त्रिपुण्ड्र की रेखा से अंकित थे।
तात! भगवान की माया से मोहित होने के कारण मेरी ज्ञानशक्ति इतनी दुर्बल हो रही थी कि मैंने उस कमल के सिवा दूसरे किसी को अपने शरीर का जनक या पिता नहीं जाना। मैं कौन हूँ, कहां से आया हूँ, मेरा कार्य क्या है मैं किसका पुत्र होकर उत्पन्न हुआ हूँ और किसने इस समय मेरा निर्माण किया है।
इस प्रकार संशय में पड़े हुए मेरे मन में यह विचार उत्पन्न हुआ मैं किसलिए मोह में पड़ा हूँ? जिसने मुझे उत्पन्न किया है उसका पता लगाना तो बहुत सरल है। इस कमलपुष्प का जो पत्रयुक्त नाल है उसका उद्गम स्थान इस जल के भीतर नीचे की ओर है।
जिसने मुझे उत्पन्न किया है वह पुरुष भी वही होगा इसमें संशय नहीं है। ऐसा निश्चय करके मैंने अपने को कमल से नीचे उतारा। मुने! मैं उस कमल की एक-एक नाल में गया और सैकड़ो वर्षो तक वहां भ्रमण करता रहा। किन्तु कही भी उस कमल के उद्गम का उत्तम स्थान मुझे नहीं मिला।
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