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Adi Shankaracharya books in Hindi Pdf
दीपक को अपना पेठे का व्यवसाय करते हुए एक महीना हो गया था अब उसके साथ ५ लोग और भी जुड़ गए थे। दीपक उनके लिए भी ठेला गाड़ी के साथ ही पेठा भी उपलब्ध कराता था ,दीपक ने अपने साथियो से पहले ही कह दिया था कि उसके साथ कोई भी नशा करने वाला आदमी नहीं रहेगा क्यों की वह स्वयं भी नशा करने का परिणाम भुगत चुका था। दीपक अपने हाथ गाड़ी के साथ ही आज -सरोज क्लिनिक -के सामने ही खड़ा था। वहां भी आने -जाने वालों से उसका धंधा चल रहा था। डा. निशा भारती के साथ उनके दोनों बच्चे -सरिता और रोशन भी आये हुए थे ,जो अपने हम उम्र बच्चों के साथ ही बाहर खेल रहे थे।
उसमे से एक बालक जाकर दीपक के ठेले के पास खड़ा हो गया उस बालक के साथ ही रोशन भी वहां आ गया था दीपक ने बिना कुछ कहे उन्हें एक किलो पेठा देते हुए कहा कि आप अभी लोग आपस में बाँट कर खा लेना ,रोशन के साथ ही वह गरीव बालक भी खुश होते हुए चला गया ,यह सब डा. निशा भारती अपने क्लिनिक से देख रही थी ,उन्होंने सोचा था क्लिनिक बंद करते समय इसका पैसा दे दूंगी। रात्रि के ९ बजकर ३०मिनट हो चुके थे दस बजने में आधा घंटा बाकी था ,सड़क भी धीरे -धीरे खाली होने लगी थी और -सरोज क्लिनिक -में भी कोई मरीज नहीं था। तभी दीपक डा. निशा भारती के सामने पहुंचा ,उसे देख कर निशा भारती चौंक गई और उन्होंने दीपक को पहचान लिया था फिर बोली – दीपक ,तुम इस समय यहां कैसे ?
दीपक बोला -दीदी -आपका कर्ज उतारने आया हूँ ,और वह डा. निशा भारती को पन्द्रह हजार रूपये देने लगा ,तब डा. भारती बोली ,यह कैसा कर्ज है जो तुम मुझे दे रहे हो ?तब दीपक बोला -दीदी- आपने हमे व्यवसाय करने के लिए पांच हजार रूपये दिए थे ,और अस्पताल में भी आपने पांच हजार रुए हमारे ऊपर खर्च किये थे ,यह सब वही पैसा है। तभी निशा भारती की निगाह ठेले पर गई , वहां कोई नहीं था ,तब वह बोल पड़ी ,क्या यह ठेला तुम्हारा है ?
दीपक बोला -हाँ दीदी -यही हमारे जीवन का सहारा है। निशा भारती बोली ,क्या तुम अकेले हो ?दीपक ने कहा -मैं पहले अकेला था लेकिन अब मैं अकेला नहीं हूँ ,हम पाँच लोग है ,वह सब भी परिस्थिति के सताये हुए हैं,और आप से प्रेरणा लेकर मैंने उन्हें अपने साथ रखा और आजीविका के साधन भी मुहैया कराये हैं। हमारे साथ और लोग भी जुड़ने वाले हैं ,हम लोंगो ने (डा.भारती सहयोग संस्था )बना रखी है। तथा गरीब लोगों को स्वरोजगार के लिए सहायता करतें हैं।
दीपक कहते जा रहा था -लेकिन डा. निशा भारती मानो कोई स्वप्न देख रही थी ,तभी रोशन उनके पास आकर बोला ,मम्मी ,घर नहीं चलना है क्या ?डा. भारती रोशन की आवाज सुन कर चौक उठीं ,उनके सामने दीपक पंद्रह हजार रूपये लेकर खड़ा था। डा. निशा भारती ने दीपक से कहा -भैया -हमारी तरफ से यह रुपया आप ही रख लो ,किसी की सहायता कर देना और हमारे साथ ही घर चलो।
दीपक बोला -नहीं दीदी -हमारे साथ रहने वाले परेशान हो जायेंगे ,क्यों की मैं उन्हें बता कर नहीं आया हूँ ?डा. निशा भारती ने एक ऑटो को रोकते हुए दीपक से पूछा -दीपक -अब तुम कोई नशा तो नहीं करते हो ना। दीपक बोला -मैं ही नहीं हमारे साथ रहने वाला कोई भी आदमी किसी प्रकार का नशा नहीं करता है ,तभी ऑटो रिक्शा चल पड़ा -निशा भारती को आज अपना जीवन सफल लग रहा था। क्यों की ?उनकी प्रेरणा से दीपक ने खुद तो स्वरोजगार शुरू किया ही था और दूसरों की भी सहायता करने लगा था।
दीपक अपना खाली ठेला लेकर अपने साथियों के पास पहुंच गया था। उसके सभी साथी पंकज स्वीट हाउस के पास उसका इंतजार कर रहे थे और वहां से थोड़ी दूर पर किराये के मकान में रहते थे। दीपक अपने साथियों से बोला -भाइयों -हम लोंगो की संख्या बढ़ रही है ,इस छोटे से घर में रहना मुश्किल हो रहा है ,आप लोग कहीं पर अच्छी जगह देख कर बताओ ,वहां पर हम लोग अपनी फैक्टरी लगाएंगे ,जहां पर पेठा बनाने का कार्य होगा तथा हम लोग वहीँ पर रहने की व्यवस्था भी करेंगे।
उसमें से राधे नाम का एक आदमी बोला -यह तो बहुत ही बढियाँ है ,अब मैं कल से धंधा करते हुए जगह की तलाश शुरू कर दूंगा ,इसके बाद सब लोग भोजन करके विश्राम करने लगे।
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