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इस पुस्तक के बारे में——
वसिष्ठजी ने कहा – अग्निदेव! आप सृष्टि आदि के कारणभूत भगवान् विष्णु के मत्स्य आदि अवतारों का वर्णन कीजिये। साथ ही ब्रह्मस्वरूप अग्नि पुराण को भी सुनाइये, जिसे पूर्वकाल में आपने श्री विष्णु भगवान् के मुखसे सुना था। अग्निदेव बोले – वसिष्ठ! सुनो, मैं श्रीहरि के मत्स्यावतार का वर्णन करता हूँ।
अवतार-धारण का कार्य दुष्टों के विनाश और साधु-पुरुषों की रक्षा के लिये होता है। बीते हुए कल्प के अंत में ‘ब्राह्म’ नामक नैमित्तिक प्रलय हुआ था। मुने! उस समय ‘भू’ आदि लोक समुद्र के जल में डूब गये थे। प्रलय के पहले की बात है। वैवस्वत मनु भोग और मोक्ष की सिद्धि के लिये तपस्या कर रहे थे।
एक दिन जब वे कृतमाला नदी में जल से पितरों का तर्पण कर रहे थे। उनकी अंजलि के जल में एक बहुत छोटा-सा मत्स्य आ गया। राजा ने उसे जल में फेंक देने का विचार किया। मत्स्यने कहा–‘महाराज! मुझे जलमें न फेंको। यहाँ ग्राह आदि जल-जन्तुओं से मुझे भय है।
यह सुनकर मनु ने उसे अपने कलश के जलमें डाल दिया। मत्स्य उसमें पड़ते ही बड़ा हो गया और पुनः मनु से बोला – ‘राजन्! मुझे इससे बड़ा स्थान दो।’ उसकी यह बात सुनकर राजा ने उसे एक बड़े जलपात्र में डाल दिया। उसमें भी बड़ा होकर मत्स्य राजासे बोला – ‘मनो! मुझे कोई विस्तृत स्थान दो।’
अग्नि पुराण का महत्व
अग्नि पुराण का श्रवण करने वाले व्यक्ति को भूत-प्रेत तथा पिशाच आदि व्यथित नहीं कर सकते है। जिस घर में अग्नि पुराण की पुस्तक होती है वहां किसी भी प्रकार की विघ्न बाधाएं नहीं रहती है। अग्नि पुराण के श्रवण से, क्षत्रिय राज्य सत्ता का स्वामी, ब्राह्मण ब्रह्म वेत्ता, वैश्य धनाढ्य और शूद्र निरोगी काया प्राप्त करता है।
अग्नि पुराण का वर्णन अग्नि देव ने स्वयं अपने मुख से वसिष्ठ मुनि को सुनाया था। अग्नि पुराण की कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिए। अग्नि पुराण श्रवण करने के लिए श्रावण, भाद्रपक्ष, अश्विन, माघ, फाल्गुन, वैशाख और ज्येष्ठ मास को उत्तम माना गया है।
पद्म पुराण के अनुसार सभी पुराणों को भगवान विष्णु का मूर्त रूप बताया गया है। भगवान विष्णु के विभिन्न अंग को ही पुराण कहा गया है। इसी दृष्टि से अग्नि पुराण को श्री हरि का बायां चरण कहा गया है। अग्नि पुराण में अनेको विद्याओ का समन्वय प्राप्त होता है।
यथा भगवान कृष्ण के वंश का वर्णन, वास्तु पूजा विधि, सर सम्वत के नाम, सृष्टि का वर्णन, अभिषेक करने की विधि, उत्पात शांति की विधि, श्राद्ध कल्प, तत्व दीक्षा इत्यादि का समावेश है। अग्नि पुराण बहुत ही प्राचीन पुराण है। शास्त्रीय व विषयगत दृष्टि से भी वह पुराण बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अग्नि पुराण का आयोजन करने के लिए विद्वान ब्राह्मण का होना आवश्यक है। उस विद्वान ब्राह्मणो को वेदो का सम्यक ज्ञान होना चाहिए। इसमें जितने भी ब्राह्मण रहे उनके आचरण शुद्ध होने चाहिए। ब्राह्मण के लिए गायत्री मंत्र और संध्या वंदन करना चाहिए। ब्राह्मण तथा यजमान को सात दिनों तक उपवास रखना चाहिए तथा एक समय भोजन करने का विधान है।
अग्नि पुराण में महाराज मनु के द्वारा भगवान मत्स्य की नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा स्तुति का वर्णन प्राप्त होता है। प्रलय के अंत में ब्रह्मा जी से वेद को हरने वाले ‘हयग्रीव’ नामक दानव का वध और वेद मंत्र आदि की भगवान विष्णु द्वारा रक्षा करने का भी वर्णन प्राप्त होता है। इस पुस्तक को पूरा पढ़ने के नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करे।
अग्नि पुराण Pdf Download
पुस्तक का नाम | अग्नि पुराण Pdf |
पुस्तक के लेखक | — |
पेज | 878 |
साइज | 145 Mb |
भाषा | हिंदी |
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