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All Vedas in Hindi Pdf
वेद क्या हैं?
वेद भगवान द्वारा ऋषियों के सुनाये गए ज्ञान पर आधारित है। वेद दुनिया के प्रथम धर्म ग्रंथ है और ईश्वर द्वारा सुनाए जाने के कारण उन्हें श्रुति भी कहा जाता है। वेदो में मानव के जीवन की हर समस्या का समाधान है।
कैसे हुई वेदो की उत्पत्ति
शत पथ ब्रह्मण के श्लोक के अनुसार अग्नि, वायु, सूर्य और अंगिरा ने कठोर तप किया और क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्व वेद प्राप्त किए और एक अन्य ग्रंथ के अनुसार चारो वेदो की उत्पत्ति हुई।
वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज है और इसकी 28000 (अट्ठाइस हजार) पांडुलिपियां महाराष्ट्र के पुणे के “भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट” में रखी हुई है और इनमे से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियों को बहुत ही महत्वपूर्ण मानते हुए यूनेस्को ने विरासत की सूचि में शामिल किया है।
वेदो के उपवेद कौन से है ?
वेदो के उपवेद में ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्व वेद, अथर्व वेद का स्थापत्य वेद है
Yajurveda Pdf in Hindi
यजुर्वेद हिन्दू धर्म के पवित्र चार वेदो में से दूसरे नंबर पर है। इसमें यज्ञ आदि के लिए मंत्रो का वर्णन है और मंत्रो की शैली गद्यात्मक और पद्यात्मक है। यजुर्वेद में ऋग्वेद के 663 मंत्र का वर्णन है। यजुर्वेद में अश्वमेध यज्ञ का भी वर्णन है। यजुर्वेद की 5 शाखाए है। 1- काठक। 2- कपिष्ठल। 3- मत्रियाणी। 4- तैतीरीय। 5- राजसनेयी।
Yajurveda Hindu Dharma Ke Pavitra Char Vedon Mein Se Dusare Numaber Par Hai . Isame Yagya Aadi Ke Liye Mantron Ka Varanan Hai Aur Mantron Ki Shaili Gadyatmak Aur Padyatmak Hai . Yajurved Mein Rig Veda Ke 663 Mantron Ka Samaves Hai . Isame Ashvamedh Yagya Ka Bhi Varanan Hai .
सामवेद Hindi Pdf Free
सामवेद हिन्दू धर्म के पवित्र वेदो में तीसरे नंबर पर है। इसमें 1875 मंत्र है, जिसमे से अगर 69 मंत्रो को और 17 मंत्र अथर्व वेद और यजुर्वेद के 4 मंत्र को छोड़ दे तो बाकी के मंत्र ऋग्वेद के है फिर भी इस वेद की महत्ता बहुत अधिक है।
इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में “वेदनानां सामवेदोSस्मि” कहा है। सामवेद छोटा जरूर है लेकिन इसमें सभी वेदो का सार है।
Rigved Pdf Hindi ऋग्वेद पीडीएफ हिंदी
हिन्दू धर्म के 4 बेहद पवित्र वेदो में ऋग्वेद में Rig ved का प्रथम स्थान है और कई जगहों पर वर्णित है कि ऋग्वेद से ही अन्य वेदो की रचना हुई है क्योंकि अन्य तीनो वेदो में ऋग्वेद की छाप (मंत्र आदि) अवश्य मिल जायेंगे। ऋग्वेद अपने आप में एक सम्पूर्ण वेद है। इसकी रचना पद्यात्मक है। ऋग्वेद में 10 अध्याय है और इसमें 1028 सूक्त है और इसमें लगभग 10580 मंत्र है।
ऋग्वेद के प्रथम मंडल की रचना अनके ऋषियों ने की, जबकि द्वितीय की गृत्समय, तृतीय की विश्वामित्र (कही-कही विश्वासमित्र) चतुर्थ की वामदेव, पंचम की अत्रि, षष्टम की भरद्वाज, सप्तम की वशिष्ठ, अष्टम की कण्व और अंगिरा तथा नवम और दशम के भी अनेक ऋषियों ने की।
ऋग्वेद की 5 मुख्य शाखाए है। शाकल्प, वास्कल, आश्वलायन, शोखामन, मण्डूकायन और इसके अलावा भी इसकी 21 और शाखाए है। ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है और इसके रचयिता भगवान धन्वंतरि है।
ऋग्वेद के 10 उपनिषद है – ऐतरेय, आत्मबोध, कौषीतकि, निर्वाण, नाद विंदू, अक्षमाया, त्रिपुरा, वहवरुका और सौभाग्य लक्ष्मी। ऋग्वेद में जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकत्सा, मानस चिकित्सा तथा हवन द्वारा चिकित्सा का वर्णन है।
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सिर्फ पढ़ने के लिये
इन चौदह मंत्रो द्वारा क्रमशः एक से लेकर चौदह मुख वाले रुद्राक्ष को धारण करने का विधान है। साधक को चाहिए कि वह निद्रा और आलस्य का त्याग करके श्रद्धा भक्ति से सम्पन्न हो सम्पूर्ण मनोरथो की सिद्धि के लिए उक्त मंत्रो द्वारा उन-उन रुद्राक्षों को धारण करे।
रुद्राक्ष की माला धारण करने वाले पुरुष को देखकर भूत, प्रेत, डाकिनी, पिशाच तथा जो अन्य द्रोहकारी राक्षस आदि है वे सब के सब दूर भाग जाते है। जो कृत्रिम अभिचार आदि प्रयुक्त होते है वे सब रुद्राक्षधारी को देखकर सशंक हो दूर खिसक जाते है।
पार्वती! रुद्राक्ष मालाधारी पुरुष को देखकर मैं शिव, दुर्गा देवी, विष्णु भगवान, सूर्य, गणेश तथा अन्य देवता भी प्रसन्न हो जाते है। महेश्वरी! इस प्रकार रुद्राक्ष की महिमा को जानकर धर्म की वृद्धि के लिए भक्ति पूर्वक पूर्वोक्त मंत्रो द्वारा विधिवत उसे धारण करना चाहिए।
मुनीश्वर! भगवान शंकर ने देवी पार्वती के सामने जो कुछ कहा था वह सब तुम्हारे प्रश्न के अनुसार मैंने कह सुनाया। मुनीश्वरो! मैंने तुम्हारे समक्ष इस विद्येश्वर संहिता का वर्णन किया है। यह संहिता सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाली तथा भगवान शिव की आज्ञा से नित्य मोक्ष प्रदान करने वाली है।
जो विश्व की उत्पत्ति स्थिति और लय आदि के एकमात्र कारण है। गौरी गिरिराजकुमारी उमा के पति है तत्वज्ञ है जिनकी कीर्ति का कही अंत नहीं है जो माया के आश्रय होकर भी उससे अत्यंत दूर है तथा जिनका स्वरुप अचिन्त्य है उन विमल बोध स्वरुप भगवान शिव को प्रणाम करता हूँ।
मैं स्वभाव से ही उन अनादि शांत स्वरुप एकमात्र पुरुषोत्तम शिव की वंदना करता हूँ जो अपनी माया से इस सम्पूर्ण विश्व की सृष्टि करके आकाश की भांति इसके अंदर और बाहर भी स्थित है। जैसे लोहा चुंबक से आकृष्ट होकर उसके पास ही लटका रहता है।
उसी प्रकार ये सारा जगत हमेशा सब ओर जिसके आस-पास ही भ्रमण करते है जिन्होंने अपने से ही इस प्रपंच को रचने की विधि बतायी थी जो सबके अंदर अन्तर्यामी रूप से विराजमान है तथा जिनका अपना स्वरुप अत्यंत गूढ़ है उन भगवान शिव की मैं सादर वंदना करता हूँ।
व्यास जी कहते है – जगत के पिता भगवान शंकर जगन्माता कल्याणमयी पार्वती तथा उनके पुत्र गणेश जी को नमस्कार करके हम इस पुराण का वर्णन करते है। एक समय की बात है नैमिषारण्य में निवास करने वाले शौनक आदि सभी मुनियो ने उत्तम भक्ति भाव के साथ सूत जी ने पूछा।
ऋषि बोले – महाभाग सूत जी! विद्येश्वर संहिता की जो साध्य साधन खंड नामवाली शुभ एवं उत्तम कथा है उसे हम लोगो ने सुन लिया। उसका आदि भाग बहुत ही रमणीय है तथा वह शिव भक्तो पर भगवान शिव का वात्सल्य स्नेह प्रकट करने वाली है।
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