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सिर्फ पढ़ने के लिए

 

 

 

कार्तिक विनीत आभा के साथ कम्पनी और दुकान को संभाल रहा था। आभा सात बजते ही घर चली आती थी और केतकी के साथ रसोई में सहयोग करती थी। पराग, रचना और प्रिया को गांव आये दस दिन हो गए थे। कार्तिक एक दिन अपनी मां केतकी से बोला – मां! वह पंजाबी युवक राजिंदर वापस कलकत्ता आया ही नहीं।

 

 

 

 

केतकी बोली – राजिंदर के नन्ही रहने से क्या फर्क पड़ता है? यह बात केतकी के पास खड़ी आभा को सुनकर हंसी आ गयी। एक व्यापारी का लड़का होने से कार्तिक समझ गया कि कोई राज उसकी मां उससे छुपा रही है। अब उसने पता लगाने का निश्चय कर लिया।

 

 

 

 

कार्तिक की कम्पनी में गोलू नाम का एक सफाई कर्मचारी था। कार्तिक ने उससे ही सारी बात पता कर लिया था। गोलू ने ही कार्तिक को बताया था जब आप गांव गए थे उसी दिन राजिंदर कही चला गया और रचना प्रिया के साथ ही रचना के जैसी एक अन्य युवती ऑफिस में कार्य करने के लिए आती थी।

 

 

 

 

वह रचना को दीदी कहती थी उसका नाम आभा था। कार्तिक के लिए इतना ही बहुत था। वह समझ गया कि आभा ही राजिंदर बनी हुई थी। आभा के प्रति कार्तिक के मन में थोड़ी कड़वाहट आ गयी थी जबकि वह अपनी इन्ही बातो को विसार चुका था कि वह किस प्रकार से भिखारन बनी रचना दास के विषय में जानने की कोशिस में लग्गा हुआ था।

 

 

 

 

सुबह हो गयी रचना सबसे पहले उठ गयी थी। उसे  रात में अच्छी तरह से नींद नहीं आयी थी। उसने अपने मन में एक निर्णय कर लिया था। प्रिया उठकर रसोई में प्रभा का हाथ बटाने लगी। पराग सबसे पीछे उठे तब तक प्रभा ने नाश्ता तैयार कर दिया था।

 

 

 

 

सभी लोग नाश्ता करने एक साथ बैठे उसी समय रचना पराग से बोली – पिता जी! हमने खूब सोच समझकर निर्णय कर लिया है कि आप अपने घर की बागडोर आभा के हाथो में सौप दीजिए वह सारी जिम्मेदारियो को संभालने में पूर्ण सक्षम है।

 

 

 

पराग बोले – लेकिन बेटी! बरसो से मैंने जिसकी कार्य कुशलता की उचाईयो को देखा है उसे तुमने एक पल में ही जमीन पर गिरा दिया। रचना पराग से बोली – पिता जी! आभा मुझे दीदी कहती है और प्रिया भी हमारी छोटी बहन की तरह है।

 

 

 

इस तरह मैंने दोनों के लिए ही फैसला किया है आपको प्रिया के जीवन साथी के लिए विनीत को आदेश देना पड़ेगा और मैं आभा के लिए कोई भी अवरोध नहीं खड़ा करुँगी।

 

 

 

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