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Anil Mohan Novels Devraj Chauhan Series Pdf

रोहन के पिता मनोहर एक मध्यम वर्ग के किसान थे। उन्होंने रोहन की पढ़ाई के लिए कोई भी समझौता नहीं किया था। खुद को अभाव ग्रस्त रहते हुए रोहन के लिए पढ़ाई की सभी सुविधाओं का उपाय किया था। रोहन अपने पिता की स्थिति से अवगत था।
वह भी मेहनत से पढ़ाई करते हुए अपने पिता के सम्मान को बचाये रखा था। सभी लोग अपने बच्चो को रोहन की मिशाल दिया करते थे कि देखो रोहन कितनी लगन से पढ़ाई करता है। तुम लोगो को भी रोहन का अनुकरण करना चाहिए। समय अपनी गति से बीत रहा था।
रोहन अब बारहवीं का छात्र था। इस बार परीक्षा में रोहन अपने जिले में टाप किया था। मनोहर के साथ पूरे गांव वाले बहुत खुश थे क्योंकि जिला में टाप करने वाला रोहन एकलौता छात्र था। रोहन के पिता मनोहर की आर्थिक स्थिति पहले से और खराब हो गयी थी।
उन्होंने रोहन से बुझे दिल से कहा – बेटा रोहन! अब मैं तुम्हारी पढ़ाई आगे जारी रखने में असमर्थ हूँ। रोहन की इच्छा आगे पढ़ने की थी लेकिन उसके सामने कोई मार्ग नहीं था। उसने कहा ठीक है पिता जी परिस्थिति के अनुसार ही मनुष्य को कार्य करना चाहिए अन्यथा स्थिति बदतर हो जाने के पश्चात कही भी सहयोग नहीं मिलता है।
अब मैं आपके साथ ही खेती के कार्य में सहयोग करूँगा। छुट्टी के बाद रोहन अपना प्रमाण पत्र लेने स्कूल गया तो स्कूल के प्रधानाचार्य ने रोहन का बहुत उत्साह के साथ स्वागत किया। रोहन की वजह से ही प्रधानाचार्य दीनदयाल के स्कूल का नाम बहुत दूर तक फ़ैल गया था।
प्रधानाचार्य दीनदयाल ने रोहन को प्रमाण पत्र देते हुए पूछा – अब आगे की पढ़ाई कहां से करोगे? रोहन बोला – श्रीमान! परिस्थितियां आगे की पढ़ाई के लिए हमारे मार्ग को अवरुद्ध कर चुकी है। प्रधानाचार्य दीनदयाल रोहन से बोले – मैं तुम्हारी बातो को समझ रहा हूँ।
तुम्हारे पिता जी आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं है जो तुम्हे आगे की पढ़ाई के लिए सहयोग प्रदान कर सके। प्रधानाचार्य दीनदयाल बोले – अगर तुम हमारी एक सलाह मानो तब मैं तुमसे कुछ कहूं। रोहन बोला – सलाह पर अमल करने की बात पीछे आएगी लेकिन सुनने में हमे की बुराई नहीं दिखती है।
प्रधानाचार्य दीनदयाल बोले – तुम्हारे पिता ने अपनी स्थिति के अनुसार तुम्हे यहां तक मार्ग दिखाया अब तुम्हे अपने भविष्य का रास्ता स्वयं ही तय करना होगा। इतना जरूर है कि मैं तुम्हे कुछ सहयोग प्रदान कर सकता हूँ। रोहन बोला – आप बताइये हमे क्या करना होगा?
अगर मैं सक्षम रहूंगा तो अपने पिता की देखभाल ठीक ढंग से कर सकूंगा नहीं तो हमे भी अपने जिंदगी की गाड़ी को घसीटते हुए खींचना पड़ेगा। प्रधानाचार्य दीनदयाल बोले – मैं तुम्हारे जैसे होनहार के लिए एक छोटी सी कोशिश कर सकता हूँ आगे तुम्हारी किस्मत और मेहनत को लेकर भरोसा करना होगा।
रोहन इसी उधेड़ बुन में था कि प्रधानाचार्य दीनदयाल कैसी पहेलियाँ बुझा रहे है। दीनदयाल बोले – हमारे एक रिश्तेदार है उनकी खिलौना बनाने की एक छोटी सी कम्पनी है। उसमे कई तरह के खिलौने बनाये जाते है वहां रहकर तुम्हारे सपने पूरे हो सकते है।
रोहन ने पूछा – वह किस तरह श्रीमान! वहां से थोड़ी दूर पर एक विश्वविद्यालय है अगर तुम चाहो तो उस खिलौना बनाने वाली कम्पनी का कार्य करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रख सकते हो। रोहन पूरी बात सुनने के पश्चात विचार किया तो उसे प्रधानाचार्य दीनदयाल का यह प्रस्ताव बहुत सुंन्दर लगा उसने हामी भर दिया।
प्रधानाचार्य दीनदयाल ने रोहन को प्रमाण पत्र देते हुए रुपये और एक पत्र देते हुए राघोपुर में विशंभर के पास जाने के लिए कह दिया। दीनदयाल से विदा लेकर रोहन अपने घर आया तथा आपने पिता को सारी बातें बता दिया। उसके पिता मनोहर अपनी आर्थिक मजबूरी जानते हुए चुप ही रहे।
दूसरे दिन रोहन राघोपुर के लिए चल पड़ा। राघोपुर पहुंचने के बाद रोहन पूछते हुए विशंभर के घर जा पहुंचा। विशंभर ने एक अजनबी को देखकर पूछा – आप कौन है और कहां से आये है? रोहन ने कहा – मैं चमनगंज से आ रहा हूँ मेरा नाम रोहन है। दीनदयाल जी ने आपके लिए एक पत्र दिया है उन्होंने ही मुझे आपके पास भेजा है।
विशंभर ने रोहन को बैठाया तथा उसके लिए जलपान की व्यवस्था करा दिया फिर दीनदयाल का पत्र पढ़ने लगा। पत्र पढ़ने के पश्चात विशंभर ने कहा – जब दीनदयाल जी ने तुम्हारे ऊपर इतना भरोसा जताया है तो हमारे लिए अविश्वास करने का सवाल ही कहां उठता है।
दूसरे दिन विशंभर अपने साथ रोहन को लेकर खिलौना बनाने वाली कम्पनी में गया जो राघोपुर से थोड़ी दूर पर थी। कम्पनी में सात कारीगर खिलौना बनाने में लगे हुए थे। रोहन पूरे उत्साह के साथ सभी कारीगरों की कला का अवलोकन करने लगा।
विशंभर की पारखी नजरो ने समझ लिया कि रोहन का मन यहां रम जायेगा। दो तीन दिन बीतने के बाद विशंभर ने कहा – रोहन! चलो आगे की पढ़ाई के लिए तुम्हारा नाम विश्वविद्यालय में लिखवा देते है। रोहन का प्रमाण पत्र देखने के पश्चात बहुत आसानी से उसे विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल गया।
रोहन कल्ला संकाय का छात्र था। बी. ए. में उसका नाम लिखा दिया गया। यही कला रोहन को जीवन में आगे बढ़ाने में सहायक हो गयी। रोहन दिन में पढ़ने जाता विद्यालय से आने के बाद कम्पनी में जाकर कारीगरो को अपने हाथ से डिजाइन किए हुए खिलौने बनाने के लिए प्रोत्साहित करता तथा खिलौने में रंग भरने का चुनाव भी वह स्वयं करता था।
कला का छात्र होने से वह अपने नये विचारो को खिलौने के माध्यम से मूर्त रूप देता था। रोहन के डिजाइन किए हुए खिलौने बाजार में धूम मचाये हुए थे। एक महीना से रोहन कम्पनी की देख रेख कर रहा था। एक महीने में ही कम्पनी को बहुत फायदा होने लगा था।
रोहन की आने से विशंभर बहुत खुश थे। उन्होंने एक दिन रोहन को पंद्रह हजार रुपये देते हुए कहा यह तुम्हारी मेहनत का फल है। रोहन बोला – यह पैसा तो अधिक है। विशंभर बोले – तुम्हारी मेहनत के आगे यह कुछ भी नहीं है। तुम अपनी पढ़ाई अच्छी प्रकार से करो जो भी खर्च लगेगा उसे कम्पनी देखेगी।
रोहन विशंभर से बोला – हमररी पढ़ाई तो इस कम्पनी से ही पूरी हो चुकी है। बहुत सारे लोगो का यही उद्देश्य रहता है कि पढ़ाई के बाद उन्हें अच्छी आजीविका प्राप्त हो जाय जो कि उचित भी है और हमारे इस उद्देश्य की पूर्ति का माध्यम यह कम्पनी बन चुकी है।
मैं बी. ए. की पढाई करने के बाद अपना पूरा ध्यान इस कम्पनी पर लगाऊंगा जिससे आपके साथ ही हमारा भी हित जुड़ा रहेगा। विशंभर बोले – तुम्हारा विचार ठीक है लेकिन मेरा यह सुझाव है कि तुम्हे एम. ए. करने के बाद ही कम्पनी के ऊपर ध्यान देना चाहिए क्योंकि जीवन में पढ़ाई करने के लिए बार-बार मौका नहीं मिलता है।
रोहन विशंभर के आग्रह से एम. ए. की पढ़ाई पूरी करने की बाद पूर्ण रूप से कम्पनी की देख रेख करने लगा। रोहन की देख रेख में कम्पनी नई ऊंचाइयां छूने लगी। विशंभर प्रतिमाह रोहन को तीस हजार रुपये देने लगे। कम्पनी में बहुत प्रगति हो गयी थी। पैतीस कारीगर काम करने लगे।
विशंभर को बहुत फायदा होने लगा। एक दिन रोहन विशंभर से बोला – अब मैं अपनी खुद की कम्पनी शुरू करना चाहता हूँ। विशंभर बोले – तुम्हे इसकी कोई आवश्यकता नहीं है और मैं तुम्हे इसकी इजाजत भी नहीं दूंगा। रोहन ने पूछा – क्यों आप हमे कम्पनी खोलने की इजाजत नहीं देंगे?
विशंभर बोले – कम्पनी का कार्य बहुत अच्छा चल रहा है यहां के बनाये हुए खिलौने बहुत अच्छे दाम पर निकल रहे है तथा गुणवत्ता भी अच्छी होती है। मैं तुम्हे इस कम्पनी की तीन हिस्से की भागीदारी दे सकता हूँ परन्तु अपने समक्ष एक कम्पटीशन करने वाले को नहीं देख सकता हूँ।
आज से तुम इस कम्पनी के तीन हिस्से के मालिक हो। विशंभर ने एक वकील द्वारा तैयार किया हुआ पेपर रोहन को दे दिया। पेपर पढ़ने के बाद रोहन का साहस ही नहीं हुआ कि वह विशंभर से आंखे मिलाकर बात कर सके। रोहन के प्रयास और विशंभर के विश्वास से आज कई शहरों में खिलौना बनाने की कम्पनी तैयार हो चुकी है जिसमे कई लोगो को रोजगार मिला हुआ है।
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