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हनुमान जी के प्रेम युक्त वचन सुनकर सीता जी के मन में विश्वास उत्पन्न हो गया। उन्होंने समझ लिया कि यह मन, वचन और कर्म से कृपासागर रघुनाथ जी का दास है।
चौपाई का अर्थ-
भगवान का सेवक जानकर अत्यंत गाढ़ी प्रीति हो गयी। नयन सजल हो गया और शरीर भी अत्यंत पुलकित हो गया। सीता जी ने कहा – हे तात! हनुमान, विरह के सागर में मुझ डूबती हुई के लिए तुम जहाज हो गए हो।
मैं बलिहारी जाती हूँ, अब छोटे भाई लक्ष्मण जी सहित खर के शत्रु सुखधाम प्रभु का कुशल मंगल कहो। श्री रघुनाथ जी तो कोमल हृदय और कृपालु है। फिर हे हनुमान! उन्होंने किस कारण से निष्ठुरता धारण कर ली है।
सेवक को सुख प्रदान करना उनकी स्वाभाविक इच्छा है। वह श्री रघुनाथ जी क्या कभी मेरी याद करते है। हे तात! क्या कभी उनके कोमल श्याम अंगो को देखकर मेरे नयन शीतल होंगे?
मुंह से वचन नहीं निकलता है, नयन में विरह के आंसुओ का जल भर आया। बड़े दुःख से वह बोली – हा नाथ! आपने मुझे बिलकुल ही भुला दिया। सीता जी को विरह से परम व्याकुल देखकर हनुमान जी कोमल और विनीत वचन बोले।
हे माता! सुंदर कृपा के धाम प्रभु भाई लक्ष्मण जी के साथ कुशल है, परन्तु आपके दुःख से दुखी है, हे माता! मन में ग्लानि न मानिए तथा मन छोटा करके दुःख न कीजिए। श्री राम के हृदय में आपसे दूना प्रेम है।
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