अरुंधति रॉय बुक्स हिंदी | Arundhati Roy Books Pdf Hindi

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Arundhati Roy Books Pdf Hindi 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Short Biography Of Arundhati Roy in Hindi 

 

 

 

अरुंधति राय का लेखन के साथ ही ‘नर्मदा बचाओ’ आंदोलन के लिए भी सभी लोग जानते है। इनका जन्म 24 नवंबर 1961 को हुआ था। हाल ही में उनकी एक लिखित अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी में अनुवाद हुआ है। उसका अनुवाद प्रोफेसर रतन लाल ने किया है। उसका शीर्षक है —

 

 

 

‘एक था डाक्टर एक था संत’ अरुंधति राय मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा में लेखन करती है। लेखन के साथ ही सामाजिक कार्यो में भी सहभागिता निभाती है। इन्होने कुछ फिल्मो में भी काम किया है। “द गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स” के लिए इन्हे ‘बुकर सम्मान’ मिल चुका है। इनकी अनुवादित पुस्तके ‘आहत देश’ इत्यादि है।

 

 

 

दिव्यज्ञान सिर्फ पढ़ने के लिए 

 

 

 

कृष्ण संबंधित ज्ञान – श्री कृष्ण कहते है – हे परंतप – अगर तुम्हे समस्त पापियों से सर्वाधिक पापी समझा जाय तो भी तुम दिव्य ज्ञान रूपी नाव में स्थित होकर दुख-सागर को पार करने में समर्थ हो जाओगे।

 

 

 

उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – यह भौतिक जगत कभी-कभी अज्ञान सागर मान लिया जाता है तो कभी इस भौतिक जगत की उपमा जलते हुए जंगल से की जाती है। सागर में कोई कितना भी प्रवीण तैराक क्यों न हो जीवन संघर्ष अत्यंत ही कठिन होता है।

 

 

 

श्री कृष्ण के संबंध में अपनी वास्तविक स्थिति का सही-सही ज्ञान इतना उत्तम होता है कि अज्ञान सागर में चलने वाले जीवन संघर्ष से मनुष्य तुरंत ही ऊपर उठ जाता है। यदि कोई संघर्षरत तैरने वाले को आगे बढ़कर निकाल लेता है या फिर डूबने से बचा लेता है तो वह सबसे बड़ा रक्षक होता है।

 

 

 

भगवान से प्राप्त पूर्ण ज्ञान मुक्ति का पथ है। कृष्ण भावनामृत की नाव अत्यंत सुगम और सरल है। किन्तु उसी के साथ-साथ अत्यंत उदात्त भी है।

 

 

 

आत्मा परमात्मा का ज्ञान – कृष्ण कहते है – जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधन को जलाकर भस्म कर देती है। उसी तरह हे अर्जुन ! ज्ञान रूपी अग्नि भौतिक कर्मो के समस्त फलो को जला डालती है।

 

 

 

उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – आत्मा तथा परमात्मा संबंधी पूर्ण ज्ञान तथा उनके संबंध की तूलना यहां अग्नि से की गई है। किन्तु जीव को स्वरुप का ज्ञान होने पर सब कुछ भस्म हो जाता है चाहे वह पूर्ववर्ती हो या परवर्ती। यह अग्नि न केवल समस्त पाप कर्मो के फलो को जला देती है अपितु पुण्य कर्मो के फलो को भी भस्मसात करने वाली है। कर्म फल की कई अवस्थाए है – शुभारंभ, बीज, संचित आदि।

 

 

 

वेदो में (वृहदारण्यक उपनिषद) (4. 4.22) कहा गया है – मनुष्य पाप तथा पुण्य दोनों ही प्रकार के कर्म फलो को जीत लेता है।  

 

 

 

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