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Ayurveda Ki Prachin Pustake Pdf Download







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सिर्फ पढ़ने के लिये
पूर्व जन्म में वह पिशाच बिन्दुग नामक ब्राह्मण था। मेरी इस सखी चंचला का पति था। स्नान संध्या आदि नित्यकर्म छोड़कर अपवित्र रहने लगा। क्रोध के कारण उसकी बुद्धि पर मूढ़ता आ गयी थी। वह कर्तव्याकर्तव्य का विवेक नहीं कर पाता था। अभक्ष्यभक्षण, सज्जनों से द्वेष और दूषित वस्तुओ का दान लेना यही उसका स्वाभाविक कर्म बन गया था।
वह हिंसा करता बाए हाथ से खाता दीनो को सताता। वह पापी अपनी पत्नी का परित्याग करके आनंद मानता था। वह मृत्यु पर्यन्त दुराचार में ही फंसा रहा। फिर अंतकाल आने पर उसकी मृत्यु हो गयी। वह पापियों के भोगस्थान यमपुर में गया और वहां बहुत से नरको का उपभोग करके वह जीव इस समय विंध्य पर्वत पर पिशाच बना हुआ है।
वही वह पिशाच अपने पापो का फल भोग रहा है। तुम उसके यत्न पूर्वक शिव पुराण की उस दिव्य कथा का प्रवचन करो जो परम पुण्यमयी और समस्त पापो का अंत करने वाली है। शिव पुराण की कथा का श्रवण सबसे उत्कृष्ट पुण्यकर्म है उससे उसका हृदय शीघ्र ही समस्त पापो से शुद्ध हो जायेगा और वह प्रेत योनि का परित्याग कर देगा।
उस दुर्गति से मुक्त होने पर बिन्दुग नामक पिशाच को मेरी आज्ञा से विमान पर बिठाकर तुम भगवान शिव के समीप ले आओ। सूत जी कहते है – शौनक! महेश्वरी उमा के प्रकार आदेश देने पर गंधर्वराज तुम्बुरु मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने भाग्य की सराहना की।
ततपश्चात उस पिशाच की सती साध्वी पत्नी चंचला के साथ विमान पर बैठकर नारद के प्रिय मित्र तुम्बुरु वेग पूर्वक विंध्याचल पर्वत पर गए जहां वह पिशाच रहता था। वहां उन्होंने उस पिशाच को देखा। उसका शरीर विशाल था। ठोड़ी बहुत बड़ी थी। वह कभी हँसता, कभी रोता कभी उछलता था।
उसकी आकृति बड़ी विकराल थी। भगवान शंकर की उत्तम कीर्ति का गान करने वाले महाबली तुम्बुरु ने उस अत्यंत भयंकर पिशाच को पाशो द्वारा बांध लिया। तदनन्तर तुम्बुरु ने शिव पुराण की कथा बांचने का निश्चय करके महोत्सवयुक्त स्थान और मंडप आदि की रचना की।
इतने में ही सम्पूर्ण लोको में बड़े वेग से यह प्रचार हो गया कि देवी पार्वती की आज्ञा से एक पिशाच का उद्धार करने के उद्देश्य से शिव पुराण की उत्तम कथा सुनाने के लिए तुम्बुरु विंध्य पर्वत पर गए है। फिर तो उस कथा को सुनने के लोभ से बहुत से देवर्षि भी शीघ्र ही वहां जा पहुंचे।
आदरपूर्वक शिव पुराण सुनने के लिए आये हुए लोगो का उस पर्वत पर बड़ा अद्भुत और कल्याणकारी समाज जुट गया। फिर तुम्बुरु ने उस पिशाच को पाशो से बांधकर आसन पर बिठाया और हाथ में विणा लेकर गौरी पति की कथा का गान आरंभ किया।
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