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Baburnama Pdf In Hindi Download
पुस्तक का नाम | बाबरनामा Pdf |
पुस्तक के लेखक | मुंशी देवी प्रसाद |
कुल पृष्ठ | 460 |
साइज | 30.71 Mb |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | इतिहास |


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सिर्फ पढ़ने के लिये
मिलन सुलेखा और सुमन के अलावा अन्य के लिए ज्योति स्वरूपा किन्नर के रूप में ही दृष्टिगत रहता था। एक दिन मिलन के साथ सुमन और सुलेखा चौपड़ खेल रहे थे। परियो का समूह स्नान करने के बाद रानी परी सुलेखा के सम्मुख आकर कहने लगा – महारानी ने आपके साथ सुमन परी को भी बुलाया है।
रानी परी ने सभी परियो से कहा – हम लोग ज्योति स्वरूपा किन्नर को छोड़कर परीलोक जाने का प्रयास करेंगे तो वह हमे फिर से शक्ति विहीन कर सकता है। आप सभी जाकर परीलोक में महारानी कुमुद से कह देना ज्योति स्वरूपा किन्नर को साथ लिए बिना हम लोगो का परीलोक आना संभव नहीं है।
सभी परियां रानी परी का संदेश सुनकर परीलोक चली गयी। वहां जाकर महारानी परी से बोली – महारानी! रानी परी सुलेखा ने कहा है। हमारा ज्योति स्वरूपा किन्नर को साथ लिए बिना परीलोक में आना संभव नहीं है। ज्योति स्वरूपा को स्वर्ण सरोवर पर छोड़ना हमे फिर से शक्ति विहीन कर देगा।
महारानी परी कुमुद सोचने लगी – ज्योति स्वरूपा को सरोवर पर छोड़ने की स्थिति में हमे अपनी दो प्रमुख परियो से हाथ धोना पड़ेगा। बहुत सोचने के बाद महारानी कुमुद ने सभी परियो से कह दिया कि तुम लोग जब स्वर्ण सरोवर पर स्नान करने के लिए जाना तो वहां रानी परी से कह देना तुम लोगो को महारानी कुमुद ने ज्योति स्वरूपा के साथ ही परीलोक में बुलाया है।
दूसरे दिन सभी परियां स्नान के लिए स्वर्ण सरोवर पर गयी। स्नान करने के बाद सभी परियो ने एक साथ महारानी कुमुद का संदेश रानी परी सुलेखा से कह दिया। रानी परी सुलेखा ने सभी परियो से कहा – जाकर महारानी कुमुद से कह देना हम लोग किन्नर ज्योति स्वरूपा के साथ कल परीलोक के लिए प्रस्थान करेंगे।
प्रभु ने अपना कर-कमल मेरे सिर पर रखा। दीनदयाल ने मेरा सम्पूर्ण दुःख हर लिया। सेवको को सुख देने वाले, कृपामय श्री राम जी ने मुझे मोह से सर्वथा रहित कर दिया। उनकी पहले वाली प्रभुता को विचारकर मेरे मन में बहुत हर्ष हुआ। प्रभु की भक्त वत्सलता देखकर मेरे हृदय में बहुत ही प्रेम उत्पन्न हुआ। फिर मैंने आनंद से नेत्रों में जल भरकर पुलकित होकर और हाथ जोड़कर बहुत प्रकार से विनती किया।
मेरी प्रेम युक्त वाणी सुनकर और अपने दास की दीन देखकर रमानिवास श्री राम जी सुखदायक गंभीर और कोमल वचन बोले। हे काकभुशुण्डि! तू मुझे अत्यंत प्रसन्न जानकर वर मांग। अणिमा और अष्ट सिद्धियां तथा सम्पूर्ण सुखो का भंडार मोक्ष।
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