बाजीराव पेशवा | Bajirao Peshwa history in Hindi pdf

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Bajirao Peshwa history in Hindi pdf

 

 

 

 

 

 

 

 

बाजीराव वह व्यक्ति थे जिन्होंने 41 से अधिक संख्या में लड़ाइयां लड़ी थी तथा एक भी लड़ाई में पराजित नहीं हुए थे। एक भी लड़ाई में पराजित न होने का कीर्तिमान भी बाजीराव के नाम था इसी कारण से बहुत प्रसिद्धि मिली थी। बाजीराव ने अपने पिता के पदचिन्हो का अनुसरण करते हुए मुगल सम्राटो की खूबियां और खामियां का आंकलन करते हुए मुगलो को तोड़ने वाले प्रथम व्यक्ति भी बाजीराव पेशवा ही थे।

 

 

 

 

 

बाजीराव का जन्म महाराष्ट्र क्षेत्र के ब्राह्मण परिवार में कोंकण प्रान्त में बालाजी विश्वनाथ के पुत्र के रूप में हुआ था। बालाजी विश्वनाथ छत्रपति शाहू जी महाराज के प्रथम पेशवा थे। बाजीराव की उम्र जब बीस वर्ष की थी तब उनके पिता बालाजी विश्वनाथ ने बाजीराव का साथ छोड़कर अनंत की यात्रा पर निकल गए। अपने प्रथम पेशवा की मृत्यु के पश्चात शाहू जी महाराज ने दूसरे अनुभवी तथा पेशवा दावेदारों को पीछे छोड़ते हुए शाहू जी महाराज की पारखी निगाहो ने बाजीराव के बचपन में ही उनकी बुद्धिमत्ता तथा कौशल को परख लिया था।

 

 

 

 

 

इसलिए छत्रपति शाहूजी महाराज ने बाजीराव को पेशवा नियुक्त करने में तनिक भी विलंब नहीं किया तथा बाजीराव भी छत्रपति शाहूजी महाराज के विश्वास पर सदैव ही खरा उतरते थे। बाजीराव को सभी सिपाहियों के बीच बहुत लोकप्रियता और सम्मान प्राप्त था। पेशवा बाजीराव को सैयद बिन्दुओ की शाही दरबार में दखलंदाजी करना कत्तई बर्दाश्त नही था।

 

 

 

 

 

पेशवा बाजीराव ने ग्वालियर रानो जी शिंदे का साम्राज्य, इंदौर के मल्हार राव होल्कर का साम्राज्य बड़ोदा के पिलाजी गायकवाड़ का साम्राज्य, के साथ ही धारवाड़ के उदय जी पवार के साम्राज्य को पेशवा बाजीराव ने मराठा साम्राज्य में समाहित करने का साहसिक कदम उठाया था जिससे कि मुगल साम्राज्य से प्रतिशोध लेकर उनके साम्राज्य के विस्तार पर रोक लगाई जा सके।

 

 

 

 

 

बालाजी विश्वनाथ जो कि छत्रपति शाहूजी महाराज के प्रथम पेशवा थे। उनकी अनंत यात्रा के बाद शाहूजी महाराज ने 1720 में बालाजी के जेष्ठ पुत्र बाजीराव को पेशवा पद पर नियुक्त कर दिया जो कि एकवंश परंपरा बन गयी। उम्र में कम होने के पश्चात भी बाजीराव के भीतर वंशानुगत असाधारण योग्यता थी जिसने अग्रिम बीस साल तक मराठा साम्राज्य के विस्तार में सहयोग किया।

 

 

 

 

 

बाजीराव के भीतर आनुवंशिक नेतृत्व शक्ति तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व विरासत में प्राप्त हुआ था। बाजीराव की आनुवंशिक विरासत का ही प्रतिफल था जो उन्होंने अपने अनुज श्रीमान चिमाजी अप्पा साहेब के सहयोग से तथा अपने अदम्य साहस रणकौशल की पराकाष्ठा से शीघ्र ही मराठा साम्राज्य की भारत में सर्वशक्तिमान बनाने में सफलता प्राप्त किया।

 

 

 

 

 

मराठा साम्राज्य को सर्वशक्तिमान बनाने में बाजीराव को अपने दुश्मनो से अनेक लड़ाइयां लड़नी पड़ी तथा इन्होने अपनी अद्भुत नेतृत्व क्षमता के कारण प्रत्येक लड़ाई में विजय श्री प्राप्त किया। श्रीमंत बाजीराव बालाजी विश्वनाथ विश्व इतिहास में एकमात्र ऐसे योद्धा का कीर्तिमान स्थापित किया है कि वह सभी लड़ाइयों में अपराजेय रहे कभी भी पराजित नहीं हुए।

 

 

 

 

 

पेशवा बाजीराव एक कुशल सेनानायक तथा कुशल सैनिक थे जो इन बातो से परिलक्षित होता है कि उनकी घुड़सवारी छत्रपति शिवाजी महाराज के समकक्ष थी। घुड़सवारी करते हुए ही अनेक प्रकार की कलाये सीखने का उन्हें महारथ हासिल थी। घुड़सवारी करते हुए पेशवा श्रीमंत बाजीराव के सामने का घुड़सवार लक्ष्य अपने सहित क्षतिग्रस्त होने पर विवश हो जाता था।

 

 

 

 

 

पेशवा बाजीराव के भीतर महाराज क्षत्रपति शिवजी के जैसी वीरता पराक्रम की पराकाष्ठा विद्यमान थी तथा शिवाजी महाराज के जैसा ही पेशवा बाजीराव का उच्च चरित्र भी था। जिस समय भारत में मुगलो के साथ ही अंग्रेजो का अत्याचार अपने चरम बिंदु पर था क्योंकि मुगलो के लिए हिन्दुओ का देवस्थान क्षतिग्रस्त करना हिन्दुओ का ताकत के बल पर धर्म परिवर्तन करना तथा महिलाओ और बच्चो पर क्रूर अत्याचार करना एक आदत बन गयी थी।

 

 

 

 

 

उस समय श्रीमान पेशवा बाजीराव ने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक अपनी विजय का झंडा इतना बुलंद किया कि सभी लोग उन्हें महान हिंदवी शासक छत्रपति शिवाजी महाराज का अवतार मानने लगे थे। उत्तर से लेकर दक्षिण तक बाजीराव पेशवा के नाम का डंका बजने लगा था। जनरल मोंटगो मेरी, ब्रिटिश जनरल तथा फिल्ड मार्शल ने भी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बजीराव की वीरता तथा कभी न हारने वाली प्रवृत्ति को स्वीकार किया था।

 

 

 

 

 

बाजीराव के पेशवा पदासीन होते ही छत्रपति शाहूजी महाराज का सम्पूर्ण राज्य से नियंत्रण हटकर पेशवा बाजीराव के हाथो में चला गया। शाहूजी महाराज का नियंत्रण सिर्फ सातारा तक ही सीमित हो गया। साम्राज्य मराठा छत्रपति शाहूजी के नाम से चल रहा था परन्तु शासन की बागडोर पेशवा बाजीराव के सुदृढ़ हाथो में थी। बाजीराव के मराठा साम्राज्य की बागडोर संभालने के कारण मुगल सुल्तान मुहम्मद शाह ने मराठा सरदारों को छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद यह बात याद दिलाने का प्रयास किया कि सभी प्रदेश मुगलो के अधीन रह चुके है।

 

 

 

 

 

1719 में मुगल सल्तनत की तरफ से यह याद दिलाने की नाकाम कोशिश की गयी थी कि डेक्कन 6 प्रांतो से कर वसूलने का मराठा सरदार को अधिकार नहीं है। वस्तुतः पेशवा बाजीराव इस बात से पूर्ण आश्वस्त थे कि मुगल सल्तनत अपने पतन की तरफ बढ़ रही है इसलिए धूर्ततापूर्ण उपाय व प्रयास से उत्तर भारत के क्षेत्र में अपने अधिकार का प्रसार करना चाहते थे।

 

 

 

 

पेशवा बाजीराव की यही सोच ने उन्हें हड़ताल करने पर विवश कर दिया। महाराज छत्रसाल ने अपने साम्राज्य बुंदेलखंड में मुगल सल्तनत के विरुद्ध विरोध अभियान प्रारंभ कर दिया। मुगल सल्तनत ने 1928 में मुहम्मद खान बंगश को बुंदेलखंड पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया जिसके फलस्वरूप महाराजा छत्रसाल और उनके परिवारी जनो को बंदी बना लिया गया।

 

 

 

 

बुंदेलखंड के महाराज छत्रसाल के अनेक बार सहायता करने के आग्रह पर 1929 को पेशवा बाजीराव ने मुगल आक्रमणकारी मुगल खान बंगश से युद्ध करते हुए महाराज छत्रसाल को उनका खोया हुआ सम्मान वापस दिलाया जिससे प्रसन्न होकर महाराज छत्रसाल ने अपनी बेटी मस्तानी के साथ पेशवा बाजीराव का पाणिग्रहण कराते हुए बड़ी बड़ी जागीर भी दे दिया।

 

 

 

 

1731 में अपनी मृत्यु से पहले ही बुंदेलखंड के महाराज छत्रसाल ने मुख्य राज्य भी मराठा साम्राज्य में समाहित कर दिया था। बाजीराव ने अपनी सेना में पुरानी पद्धति हटा दिया क्योंकि पैदल सेना हल्के हथियारो के साथ बहुत फुर्ती से दुश्मन के ऊपर आक्रमण करने में पारंगत थी लेकिन इसमें परिवर्तन करते हुए पेशवा बाजीराव ने वजनदार तथा भारी हथियारों से लैस घुड़सवार सेना तथा तोपखानों का प्रचलन बढ़ा दिया तथा अपने पड़ोसी राजपूत राज्यों में लूट पाट करने के लिए अपने सैनिको को उत्साहित रने लगा।

 

 

 

 

परिणाम स्वरुप जो राज्य पेशवा बालाजी विश्वनाथ के समय उपयोगी मित्र थे वह सभी बाजीराव के विरुद्ध हो गए। यह बाजीराव की प्रथम गलती थी। पेशवा बाजीराव की दूसरी प्रमुख गलती यह थी कि उन्होंने दक्षिण में निजाम के विरुद्ध तथा उत्तर में अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। जिसमे प्रारंभिक सफलता अर्जित करते हुए पेशवा बाजीराव ने दक्षिण के निजाम को 1750 में उदगिर की लड़ाई में परास्त करते हुए बीजापुर सहित पूरा प्रदेश तथा औरंगाबाद के साथ ही बीदर के बड़े भाग को मराठा साम्राज्य में मिला लिया।

 

 

 

 

जिससे मराठा साम्राज्य की सुदूर दक्षिण में भी धाक जम गयी। पेशवा बाजीराव ने मैसूर के हिन्दू शासक को पराजित करते हुए बेदनूर तक अपना अधिकार कर लिया किन्तु मैसूर रियासत का सेनापति हैदर अली ने पेशवा बाजीराव को आगे बढ़ने से रोक दिया तथा मैसूर के हिन्दू शासक को अपदस्थ करते हुए मैसूर पर अपने अधिकार की घोषणा कर दिया।

 

 

 

 

उत्तर भारत में पेशवा बाजीराव को पहले बहुत अच्छी सफलता मिली थी परन्तु पेशवा की सेना द्वारा राजपूत रियासतों पर मनमाने ढंग से लूट पाट को अंजाम दिया गया। मराठो ने दोआब को रौंदते हुए उसपर अधिकार करते हुए मुगल बादशाह के साथ मिलकर दिल्ली पर दबदबा कायम कर लिया। अब्दाली के नायब नजीबुल्ला को मराठो ने भागने पर मजबूर कर दिया तथा पंजाब से अहमद शाह अब्दाली के पुत्र तैमूर को भी निकाल फेंका तथा मराठो का आधिपत्य अटक तक फ़ैल गया था।

 

 

 

 

 

परन्तु अधिक विस्तार के कारण मराठो का सफलता स्थायी नहीं रह सकी तथा अल्पकालिक सफलता ही सिद्ध हुई। भारत का गौरवशाली इतिहास अनेक वीर योद्धाओ सेनापतियों तथा राजाओ के पराक्रम से भरा हुआ है।

 

 

 

 

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