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Bengali Tantra Mantra Pdf
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सिर्फ पढ़ने के लिये
महर्षि जाबालि ने सभी वर्णो और आश्रमों के लिए मंत्र से या बिना मंत्र के भी आदर पूर्वक भस्म से त्रिपुण्ड्र लगाने की आवश्यकता बतायी है। समस्त अंगो में सजल भस्म को मलना अथवा विभिन्न अंगो में तिरछा त्रिपुण्ड्र लगाना इन कार्यो को मोक्षार्थी पुरुष प्रमाद से भी न छोड़े। ऐसा श्रुति का आदेश है।
भगवान शिव और विष्णु ने भी तिर्यक त्रिपुण्ड्र धारण किया है। अन्य देवियो सहित भगवती उमा और लक्ष्मी देवी ने भी वाणी द्वारा इसकी प्रसंशा की है। क्षत्रियो, ब्राह्मणो, शूद्रों, वैश्यों, वर्णसंकरो तथा जातिभ्रष्ट पुरुषो ने भी उद्धूलन एवं त्रिपुण्ड्र के रूप में भस्म धारण किया है।
इसके पश्चात भस्म धारण तथा त्रिपुण्ड्र की महिमा एवं विधि बताकर सूत जी ने फिर कहा – महर्षियो! इस प्रकार मैंने संक्षेप से त्रिपुण्ड्र का माहात्म्य बताया है। यह समस्त प्राणियों के लिए गोपनीय रहस्य है। अतः तुम्हे भी इसे गुप्त ही रखना चाहिए।
मुनिवरो! ललाट आदि सभी निर्दिष्ट स्थानों में जो भस्म से तिरछी रेखाएं बनाई जाती है उन्ही को विद्वानों ने त्रिपुण्ड्र कहा है। भौहो के मध्य भाग से लेकर जहां तक भौहो का अंत है उतना बड़ा त्रिपुण्ड्र ललाट में धारण करना चाहिए।
मध्यमा और अनामिका अंगुली से दो रेखाएं करके बीच में अंगुष्ठ द्वारा प्रतिलोम भाव से की गयी रेखा त्रिपुण्ड्र कहलाती है अथवा बीच की तीन अंगुलियों से भस्म लेकर यत्न पूर्वक भक्ति भाव से ललाट में त्रिपुण्ड्र धारण करे। त्रिपुण्ड्र अत्यंत उत्तम तथा मोक्ष और भोग को देने वाला है।
त्रिपुण्ड्र की तीनो रेखाओ में प्रत्येक के नौ-नौ देवता है जो सभी संगो में स्थित है। मैं उनका परिचय देता हूँ। सावधान होकर सुनो। मुनिवरो! प्रणव का प्रथम अक्षर अकार, गार्हपत्य अग्नि, धर्म, ऋग्वेद, पृथ्वी, रजोगुण, क्रियाशक्ति, महादेव, प्रातः सवन ये त्रिपुण्ड्र की प्रथम रेखा के नौ देवता है।
यह बात शिव दीक्षापरायण पुरुषो को अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए। प्रणव का दूसरा अक्षर उकार दक्षियात्री, सत्वगुण, आकाश, मध्यंदिनसवन, यजुर्वेद, इच्छाशक्ति, महेश्वर तथा अंतरात्मा ये दूसरी रेखा के नौ देवता है। प्रणव का तीसरा अक्षर मकार आहवनीय अग्नि, द्युलोक, सामवेद, परमात्मा, ज्ञानशक्ति, तमोगुण, तृतीयसवन तथा शिव ये तीसरी रेखा के नौ देवता है।
इस प्रकार स्थान देवताओ को उत्तम भक्ति भाव से नित्य नमस्कार करके स्नान आदि से शुद्ध हुआ पुरुष यदि त्रिपुण्ड्र धरण करे तो मोक्ष और भोग को भी प्राप्त कर लेता है। मुनीश्वर! ये सम्पूर्ण अंगो में स्थान देवता बताये गए है। अब उनके संबंधी स्थान बताता हूँ भक्तिपूर्वक सुनो।
बत्तीस, सोलह, आठ अथवा पांच स्थानों में त्रिपुण्ड्र का न्यास करे। मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों नासिका, दोनों हाथ, दोनों कोहनी, मुख, कंठ, दोनों कलाई, हृदय, दोनों उरु, दोनों गुल्फ, दोनों पिंडली, दोनों पार्श्वभाग, दोनों घुटने और दोनों पैर ये बत्तीस उत्तम स्थान है।
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