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Bhakti Sagar Granth PDF
निर्गुन और सगुन पुनि सर्वोपरि रहनि यामे निराकार अरु साकार सुलभ कहि सुनायो है। ओत प्रोत अगुन सगुन सूरज अरु धूप सदृश भिन्न भेद भाव रूप एक कर दिखायौ है। जैसी जाकी चाह ताहि तैसी ही प्राप्ति होत यामे नहि संशय यह भेद समझायो है।
कहे सरसमाधुरी सुनाय सब भक्तन को रस समुद्र सगुन ब्रह्म पुरुषोत्तम बतायो है। छहो मुक्तिमारग की रहस्य कही याके बीच प्रेम को परत्व सर्व उत्तम दृढ़ायो है। प्रेम के समान नहीं कोई और कुछ बतायो आन ज्ञान ध्यान योगादिक तुच्छ दरसायो है।
आदि मध्य अंत भक्ति सागर में भली भांति सबको सरताज प्रभु प्रेम को जनायो है। कहे सरसमाधुरी सुनाय सब रसिकनको जिनने कुछ पायो एक प्रेम ही से पायो है। बिना पढ़े वेदन के वेदतत्व जान परे बिना शास्त्र श्रवण किये समझे बात सारी है।
बिना किये जोग के जुगती सब जानलेव बिन बिराग त्याग भेद पावत नर नारी है। बिना किये तीरथ के तीरथ फल प्राप्त होत बिना जाप अजपा की उक्ति उरबिचारी है। कहे सरसमाधुरी सुनाय सब संतन को बांचे भक्ति सागर होत भवसागर पारी है। डाउनलोड करने के लिए नीचे दी गयी बटन पर क्लिक करे।
Bhakti Sagar Granth PDF Download
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पुस्तक का नाम | भक्ति सागर ग्रन्थ Pdf |
पुस्तक के लेखक | स्वामी चरणदास |
भाषा | हिंदी |
साइज | 24.3 Mb |
पृष्ठ | 690 |
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