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जान पड़ता है यह मुर्ख हमारा भेद लेने आया है। इसलिए मुझे तो यही अच्छा लगता है इसे बांधकर रखा जाय। श्री राम जी ने कहा – हे मित्र! तुमने नीति तो अच्छी विचारी है परन्तु मेरा प्रण है शरणागत के भय को हर लेना।
प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी हर्षित हुए और अपने मन में कहने लगे कि भगवान तो शरण में आये हुए पर पिता के समान प्रेम करने वाले शरणागत वत्सल है।
43- दोहा का अर्थ-
श्री राम जी फिर बोले – जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते है वह पामर है, पापमय है, उन्हें देखने में हानि और पाप लगता है।
चौपाई का अर्थ-
जिसे कोटि ब्राह्मणो का पाप लगा हो, शरण में आने पर मैं उसे भी नहीं त्यागता। .जीव ज्यों ही मेरे सम्मुख होता है त्यों ही उसके कोटिक जन्मो के पाप नष्ट हो जाते है।
पापी का यह सहज स्वभाव होता है कि मेरा भजन उसे कभी नहीं सुहाता है। यदि वह रावण का भाई निश्चय ही दुष्ट हृदय का होता तो क्या वह मेरे सम्मुख आ सकता था?
जिस मनुष्य का मन निर्मल होता है वही मुझे प्राप्त कर सकता है। मुझे कपट और छल, छिद्र नहीं सुहाते। यदि उसे रावण ने भेद लेने के लिए पठाया है तो भी हे सुग्रीव! हमे कुछ भय और हानि नहीं है।
क्योंकि हे सखे! जगत में जितने भी राक्षस है लक्ष्मण क्षण भर में उनका संहार कर सकते है। यदि वह भयभीत होकर मेरी शरण में आया है तो मैं उसे प्राणो की तरह से रखूंगा।
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