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Bhrigu Sutra Pdf / भृगु सूत्र पीडीएफ

 

 

 

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिए

 

 

 

धनु को कान तक खींच श्री राम जी ने भयानक छोड़े। वह ऐसे चले मानो सर्प लहराते हुए जा रहे है। पंख वाले सर्प की भांति उड़ रहे है। उन्होंने पहले सारथी और घोड़ो को समाप्त कर दिया। फिर रथ को चूर करके ध्वजा और पताका को गिरा दिया। तब रावण बहुत जोर से गरजा पर भीतर से उसका बल थक गया था।

 

 

 

 

तुरंत दूसरे रथ पर चढ़कर नाना प्रकार का आयुध छोड़ने लगा। उसके सब आयुध उसी प्रकार फेल हो गए जैसे परद्रोह में लगे हुए चित्त वाले आदमी के होते है।

 

 

 

 

तब रावण ने दस आयुध चलाये और श्री राम जी के चारो घोड़ो को पृथ्वी पर गिरा दिया। घोड़ो को उठाकर श्री रघुनाथ जी ने क्रोध करके धनु खींचकर छोड़े।

 

 

 

रावण के सिर रूपी कमल वन में विचरण करने वाले श्री रघुवीर के भ्रमरों की पंक्ति चली। बलवान रावण दौड़ा। प्रभु ने फिर धनु पर संधान किया।  सिर और हाथ गिरते ही फिर नए हो गए। श्री राम जी ने फिर सिरों और भुजाओ को गिरा दिया। इस प्रकार से प्रभु ने बहुत बार ही भुजाओ और सिर को गिराया। परन्तु गिरते ही वह नए हो गए।

 

 

 

 

प्रभु बार-बार उसकी भुजाओ और सिर को गिरा रहे है क्योंकि कोशलपति श्री राम जी बहुत ही कौतुकी है। आकाश में सिर और बाहु ऐसे छाये हुए है मानो असंख्य केतु और राहु हो।

 

 

 

 

छंद का अर्थ-

 

 

मानो अनेक राहु और केतु आकाश मार्ग से दौड़ रहे हो। श्री रघुवीर के प्रचंड के लगने से वह पृथ्वी पर नहीं गिरते। एक-एक से सिर आकाश में उड़ते हुए ऐसे शोभा दे रहे है मानो सूर्य की किरणे क्रोध करके राहु को पिरो रही है।

 

 

 

92- दोहा का अर्थ-

 

 

 

जैसे-जैसे प्रभु उसके सिर को हटाते है, वैसे-वैसे ही अपार हर्ष होते जाते है। जैसे विषयो का सेवा करने उन्हें भोगने की इच्छा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है।

 

 

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

सिरों की बाढ़ देखकर रावण अपनी मृत्यु भूल गया और उसे बहुत क्रोध हुआ। वह महा अभिमानी मुर्ख गरजा और दसो धनु तानकर दौड़ा।

 

 

 

रणभूमि में रावण ने क्रोध किया और श्री रघुनाथ जी के रथ को ढक दिया। एक घड़ी तक रथ दिखलाई नहीं पड़ा मानो सूर्य कुहरे में छिप गया हो।

 

 

 

जब देवताओ ने हाहाकार किया तब प्रभु ने क्रोध करके धनु उठाया और उन्होंने उसे हटाकर शत्रु को क्षति पहुंचाकर और उनसे दिशा-विदिशा और पृथ्वी सबको पाट दिया।

 

 

 

 

रावण के सिर आकाश मार्ग से दौड़ते है और जय की ध्वनि करके भय उत्पन्न करते है। लक्ष्मण और वानरराज सुग्रीव कहां है? कोशलपति रघुवीर कहां है?

 

 

 

छंद का अर्थ-

 

 

 

राम कहां है? यह कहकर सिर के समूह दौड़े उन्हें देखकर वानर भाग चले। तब धनु संधान करके रघुकुलमणि श्री राम जी ने हंसकर उन सिरों को भली-भांति डाला। हाथो में माला लेकर बहुत सी कालिका झुण्ड में मिलकर इकट्ठी हुई और संग्राम रूपी नदी में स्नान करके वट वृक्ष की पूजा करने चली।

 

 

 

 

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