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Bihari Satsai Hindi Pdf / बिहारी सतसई पीडीऍफ़
पुस्तक का नाम | बिहारी सतसई pdf |
पुस्तक के लेखक | रामवृक्ष बेनीपुरी |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | साहित्य |
फॉर्मेट | |
साइज | 15 Mb |
पृष्ठ | 314 |
लोक व्यवहार बुक इन हिंदी Pdf Download
Bihari Satsai Hindi Pdf
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सिर्फ पढ़ने के लिये
मोर के कंठ की आभा के समान हरिताभ, नीलवर्ण, देवताओ में श्रेष्ठ, ब्राह्मण भृगु जी के चरण कमल के चिन्ह से सुशोभित, शोभा से पूर्ण, पीतांबर धारी, कमलनयन सदा परम प्रसन्न, हाथो में धनु धारण किए हुए, वानर समूह से युक्त, भाई लक्ष्मण जी से सेवित स्तुति किए जाने योग्य, श्री जानकी जी के पति, रघुकुल श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार, श्री राम जी को मैं निरंतर नमस्कार करता हूँ।
कोशलपुरी के स्वामी श्री राम जी के सुंदर और कोमल दोनों चरण कमल ब्रह्मा जी और शिव जी के द्वारा वन्दित है। श्री जानकी जी के कर कमल से दुलार किए हुए है और चिंतन करने वाले मन रूपी भौरे के नित्य संगी है और चिंतन करने वाले का मन रूपी भ्रमर सदा उन चरण कमल में बसा रहता है।
कुंद के फूल चन्द्रमा और शंख के समान सुंदर गौर वर्ण, जगत जननी श्री पार्वती जी के पति, वांछित फल देने वाले, दुखियो पर सदा दया करने वाले, सुंदर कमल के समान नयन वाले, कामदेव से छुड़ाने वाले, कल्याणकारी श्री शंकर जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
दोहा का अर्थ-
श्री राम जी के लौटने की अवधि का एक दिन ही बाकी रह गया अतएव नगर के लोग बहुत आतुर और अधीर हो रहे है। राम के वियोग में दुबले हुए स्त्री-पुरुष सोच विचार कर रहे है कि क्या बात है श्री राम जी क्यों नहीं आये। इतने में ही सब सुंदर शकुन होने लगे और सबके मन प्रसन्न हो गए।
नगर भी चारो ओर से रमणीक हो गया मानो यह सब चिन्ह प्रभु के शुभ आगमन को बता रहे है कौशल्या आदि सब माताओ के मन में ऐसा आनंद हो रहा है जैसे कोई अभी कहना ही चाहता है कि सीता जी और लक्ष्मण जी सहित प्रभु श्री राम जी आ गए। भरत जी की दाहिनी आँख और दाहिनी भुजा बार-बार फड़क रही है। इसे शुभ शकुन जानकर उनके मन में अत्यंत हर्ष हुआ और वह विचार करने लगे।
चौपाई का अर्थ-
प्राणो की आधार रुप अवधि का एक दिन ही शेष रह गया। यह सोचते ही भरत जी के मन में दुःख हुआ क्या कारण हुआ कि नाथ नहीं आये? प्रभु ने कुटिल जानकर कही मुझे भुला तो नहीं दिया।
अहा हा! लक्ष्मण बहुत बड़भागी और धन्य है जो श्री राम जी के चरणों के प्रेमी है और उनसे अलग नहीं हुए। मुझे तो प्रभु ने कपटी और कुटिल पहचान लिया इससे ही नाथ ने मुझे साथ नहीं लिया।
क्योंकि यदि प्रभु मेरी करनी पर ध्यान दे तो असंख्य कल्पो तक भी मेरा निस्तार नहीं होगा। परन्तु इतनी आशा है कि प्रभु सेवक का अवगुण कभी नहीं मानते है।
वह दीनबंधु है और अत्यंत कोमल स्वभाव के है अतएव मेरे हृदय में ऐसा पक्का भरोसा है कि श्री राम जी अवश्य ही मिलेंगे क्योंकि शकुन बहुत शुभ हो रहे है। किन्तु अवधि बीत जाने पर यदि मेरे प्राण रह गए तो जगत में मेरे समान नीच कौन होगा?
दोहा का अर्थ-
श्री राम जी के विरह समुद्र में भरत जी का मन डूब रहा था उसी समय पवनपुत्र हनुमान जी ब्राह्मण का वेश धारण करके इस प्रकार आ गए मानो उन्हें डूबने से बचाने के लिए नाव आ गयी हो।
हनुमान जी ने दुर्बल शरीर भरत जी को जटाओ का मुकुट बनाये राम! राम! रघुपति! जपते और कमल के समान नयन से प्रेमाश्रु जल बहाते कुश के आसन पर बैठे देखा।
चौपाई का अर्थ-
उन्हें देखते ही हनुमान जी अत्यंत हर्षित हुए। उनका शरीर पुलकित हो गया नयन से प्रेम का जल बरसने लगा। मन में बहुत प्रकार से सुख मानकर वह अमृत समान वाणी बोले।
जिनके विरह में आप दिन रात सोच करके घुलते रहते है और जिनके गुणों की पंक्तियों को आप निरंतर रटते रहते है। वही रघुकुल के तिलक, सज्जनो को सुख देने वाले और देवताओ तथा मुनियो के रक्षक श्री राम जी सकुशल आ गए है।
शत्रु को रण में जीतकर सीता जी और लक्ष्मण जी सहित प्रभु आ रहे है देवता उनका सुंदर यशगान कर रहे है। यह वचन सुनते ही भरत जी अपने सारे दुःख भूल गए।
जैसे प्यासा आदमी अमृत मिलने पर प्यास के दुःख को भूल जाता है। भरत जी ने पूछा – हे तात! तुम कौन हो? और कहां से आये हो? जो तुमने मुझको यह परम प्रिय वचन सुनाये। तब हनुमान जी ने कहा – हे कृपानिधान! सुनिए, मैं पवन का पुत्र और जाति का वानर हूँ। मेरा नाम हनुमान है।
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