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Chandogya Upanishad Hindi Pdf
छांदोग्य उपनिषद में (ऊँ कार ) अक्षर की विवेचना को महत्व पूर्ण बताया गया है। -ॐ -अक्षर को उद्गीथ कहा गया है और उसकी ही उपासना का और उसके ही गान का वर्णन किया गया है। उद्गीथ यह मिथुन -ॐ -अक्षर से संतुष्ट होता है। जिस समय मिथुन परस्पर मिलते हैं वे एक दूसरे की कामनाओं को प्राप्त होने वाले होते हैं।
जो विद्वान् -उद्गीथ -अक्षर की उपासना करता है उसकी समस्त कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। यह (ओंकार ) ही अनुज्ञा अक्षर है ,और यह अनुज्ञा ही सम्वृद्धि है। इस अक्षर की पूजा के लिए ही सम्पूर्ण वैदिक कर्म का विधान प्रचलित है ,तथा इसकी महिमा और रस के द्वारा ही सब कर्म प्रवृत्त होते हैं।
सामवेदीय छांदोग्य ब्राह्मण का औपनिषदिक भाग है ,इसका स्रोत भारतीय दर्शन से प्राप्त किया गया है ,जो प्राचीनतम उपनिषदों में नवम और वृहदाकार रूप में है। पंच महाभूत हैं ,उसका रस पृथ्वी तत्व है ,पृथ्वी का रस जल है ,जल का इस औषधियां हैं ,और औषधिओं का रस पुरुष है पुरुष का रस वाक् है और वाक् का रस ऋक है ,ऋक का रस साम है तथा साम का रस उद्गीथ को निरूपित किया गया है।
वाक् को ही ऋक कहा गया है ,प्राण को साम की मान्यता प्राप्त है ,और -ॐ -को उद्गीथ कहा गया है। और जो यह ऋक और सम रूप वाक् और प्राण है उन्हें ही छांदोग्य उपनिषद में -मिथुन -कहा गया है। जिस प्रकार मिटटी का ढेला दुर्भेद्य पाषाण से टकरा कर स्वयं ही नष्ट हो जाता है। उसी प्रकार से पाप कर्म करने वाला प्राणी सद्पुरुष के गुणों से टकराने के पश्चात उसके सभी अवगुण समाप्त हो जाते हैं और उस प्राणी को सद्बुद्धि प्राप्त होती है।
यह प्राण और सूर्य परस्पर समान हैं क्यों की दोनों ही उष्ण हैं और दोनों ही जीवन दाता हैं ,इसलिए प्राणऔर सूर्य रूप से -उद्गीथ -की उपासना करनी चाहिए।
छांदोग्य उपनिषद Pdf Download
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