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इस पुस्तक के बारे में——
संसार के सारे नगरों के वैभव की कसौटी, समुद्र के रत्नो को अपने हाटो में भरे हुए, मगध देश की राजधानी पुष्पपुरी है। उसमे पहले कभी राजहंस नामक राजा राज्य करता था। उसके भुजदंड ऐसे प्रचंड थे मानो वह भयंकर समुद्रो को भी मथकर मंदराचल की भांति विक्षुब्ध कर सकता है।
शरदऋतु का चन्द्रमा, माघ मास के फूल, कपूर, हिम, मोती माला, मृणाल, ऐरावत हाथी, जल, दुग्ध, शिव का अट्टहास, कैलास पर्वत आदि श्वेत वस्तुओ की भांति सर्वत्र उसका धवल यश फैला हुआ था। उसने निरंतर यज्ञ और दक्षिणाओ द्वारा आचारवान विद्वान ब्राह्मणो की रक्षा की।
मध्यान्ह के प्रचंड मार्तण्ड सा उसका प्रताप था। रूप में वह कामदेव को नीचा दिखाता था। उस राजा की रानी का नाम वसुमति था। वसुमति पृथ्वी भी कहलाती है। इस प्रकार वह राजा दोनों वसुमतियो का भोग करता था। रानी वसुमति को देखकर लगता था कि शिव के तीसरे नेत्र के खुलने से जब कामदेव भस्म हुआ उसकी सेना भयभीत होकर इस स्त्री के अंगो में छिप गयी।
भौरे बालो में, चन्द्रमा मुख में, जयध्वज मत्स्य आंखो में, मलयानिल मुखवायु में तथा प्रवाल मुख में छिप गए। विजय शंख ग्रीवा में दिखने लगा। पूर्णकुंभ कुचो में, छत्रकमल चरणों में जा समाये। यों वह अद्वितीय थी। दोनों आनंद से रहते थे। राजहंस के परम आज्ञाकारी कुलपरंपरा से आये तीन मंत्री थे।
वे वृहस्पति को भी कुछ नहीं समझते थे। उनमे से सितवर्मा के सुमति और और सत्यवर्मा नामक पुत्र थे। धर्मपाल के सुमंत्र, सुमित्र और कामपाल तथा तीसरे मंत्री पद्मोद्भव के सुश्रुत और रत्नोद्भव नामक पुत्र हुए थे। इन पुत्रो में से धर्म मे लगा सत्यवर्मा तो संसार को असार देखकर तीर्थयात्रा करने देशांतर चला गया।
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