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Devdas Novel Hindi Pdf
निशा भारती अपने क्लिनिक में मरीजों की सेवा में व्यस्त थी ,तभी तीन साल की सरिता दौड़ कर उनके पास आई और बोली -मम्मी -मम्मी ,उधर देखो एक आदमी सड़क के उस पार गिर पड़ा है उसे बहुत घाव लगी है। आप उसको दवा दे दो ना ,मम्मी !डा.निशा की नजर सड़क के उस पार गई एक ६० -६२ साल का अधेड़ आदमी गिरा हुआ था उसे गहरा घाव लगा हुआ था।
वह घायल आदमी उठने का प्रयास करता था ,लेकिन उठने में समर्थ नहीं था। डा.निशा भारती स्वयं चल कर उसके पास गई ,डा. निशा भारती को देख कर कुछ लोग स्वयं ही सहायता करने के लिए वहां पहुंच गए और उसे उठा कर डा. निशा भारती के क्लिनिक में लेकर आ गए। डा. भारती ने खुद अपने हाथों से मरहम -पट्टी करके उसका प्राथमिक उपचार किया।
उसे बहुत गहरा घाव लगा हुआ था ,उन्हों ने उस अनजान आदमी को एक अस्पताल भर्ती करवा दिया डा. निशा को सभी लोग पहचानते थे उनका परोपकारी स्वभाव और एक सरकारी डाक्टर ,इसलिए उस अनजान आदमी का विशेष ध्यान अस्पताल में रखा गया था। डा. निशा के क्लिनिक में उपस्थित सभी लोगो के मुँह से अनायास ही निकल पड़ा -जैसी माँ -वैसी ही बेटी ?
कई लोग कह रहे थे -इतनी छोटी सी उम्र में ही इतनी अच्छी भावना है इस लड़की की ,बड़ी होने पर वह तो डा. निशा से भी आगे जाएगी।
यह सब बातें सुन कर डा. भारती ने सरिता को गले लगा लिया ,उनका मन बहुत भरी हो गया था ,काश , भगवान ने उन्हें एक संतान दे दिया होता ,तभी उनके मन ने समझाते हुए कहा – की यह सरिता भी यो अपनी ही संतान है ,क्यों की भगवान ने उसे संतान का दुःख हल्का करने के लिए ही भेज दिया था ?
डा. निशा भारती -सोचने लगी ,आज इस सरिता की वजह से ही उस अजनवी की जान बच सकी है। वह सोचने लगी -आज सरिता सवेरे से उनके साथ चलने की जिद कर रही थी ,सुबह तो उन्हें सरकारी अस्पताल में जाना पड़ता है ,इसलिए उन्होंने सरिता से कहा था कि शाम के वक्त उसे अपने साथ अवश्य ही ले चलेगी। शायंकाल डा. निशा भारती के साथ क्लिनिक में सरिता भी आ गई थी।
अपने क्लिनिक में डा. निशा भारती मरीजों को देख रही थी कि सरिता आंख बचाकर क्लिनिक के बाहर खेलने चली गई ,उसने ही देखा था उस घायल आदमी को ,न जाने कैसे घायल होकर गिर पड़ा था।
अगर भगवान पर भरोसा करके कुछ भी सच्चे दिल मांगा जाय तो वह अवश्य ही फलीभूत होता है। शायद भगवान ने डा. निशा भारती की आवाज सुन लिया था ,उन्हें कुछ आशा बंध गई थी कि उनके बाग़ में एक फूल खिलने वाला है। उन्होंने सोच लिया था कि चाहे जो भी फूल आये ,गेंदा या चमेली ,लेकिन सरिता के लिए उसका वही हक रहेगा जो पहले से है ,उसके लिए कोई कमी नहीं होगी प्यार दुलार में।
डा. निशा भारती -हर रोज उस अजनवी का कुशल -क्षेम पूछ कर ही अपने क्लिनिक में आती थी ,आज उस अजनवी को अस्पताल से बाहर निकलना था ,डा. भारती दस हजार रुपया लेकर आयी थी उस अजनवी को अस्पताल से बाहर निकालने के लिए। उसे निकालते समय डा. भारती ने अस्पताल संचालक से बिल मांगा तो उसने कहा -आप जैसे महान शख्सियत से पैसा लेना नाइंसाफी होगी क्यों कि आप का व्यक्तित्व बहुत महान है ?
तभी डा. निशा भारती ने कहा -अगर आप के पास हमारे जैसे कई लोग मरीज लेकर आ जाएँ तो आप की बहुत हानि हो जाएगी ,यह बात सुन कर अस्पताल का संचालक डा. नवीन बोला -आप भी तो बिना शुल्क लिए ही क्लिनिक चलाती हैं। क्या मैं इतना भी नहीं कर सकता आप के लिए ? डा. निशा ,डा. नवीन से बोली -आप इतना याद रखिये ,यदि घोडा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या ?
मैं भी अपना पूरा वेतन लेती हूँ सरकार से और आप तो परिवार वाले हैं और हम केवल दो प्राणी हैं। विपिन भी पचास हजार के लगभग पेंशन प्राप्त करते हैं और हमे भी लगभग उतना ही वेतन मिलता है। डा. नवीन बोल उठा -आप झूठ बोल रही हैं डा.निशा जी ,आपके घर मे दो लोग और हैं। निशा चौकते हए बोली -अरे हाँ -मैं तो यह बताने के लिए भूल गई थी की सरिता और कोमल यह भी दोनों हमारे साथ हैं।
फिर भी सब ठीक चल रहा है ,आप अपना पैसा जो शुल्क के रूप मे है उसे ले लीजिये ,हमारे विचार से पांच हजार के करीब होगा आपके अस्पताल का शुल्क ,इतना कह कर निशा ने पांच हजार रूपये डा. नवीन की तरफ बढ़ा दिए -डा. नवीन ने सिर्फ तीन हजार रूपये लेकर दो हजार लौटना चाहा तो डा. भारती ने उसे वापस करते हुए कहा -कि इसे किसी अनाथ की सेवा में लगा देना।
डाा. नवीन हतप्रभ हो कर सोचने लगा -कि भगवान अच्छे लोगो के साथ ही नाइंसाफी क्यों करते हैं ?डा. भारती उस अजनवी को लेकर रिक्शे में बैठ गई और ऋक्ष वालेको -सरोज लकिनीक -चलने के लिए कह दिया। रिक्शे में ही डा. भारती उस अनजान आदमी से पूछने लगी ,कि आप का नाम क्या है ,आप कहा रहते हो ,और क्या करते हो ?
वह अनजान आदमी बोला ,मैं आगरा में ही रहता हूँ ,मेरा नाम दीपक है ,मै यहां पंकज स्वीट हाउस में काम करता हूँ और वही पर रहता भी हूँ। मैं सच बताऊँ डा. साहब ,मैं थोड़ा ड्रिंक भी करता हूँ ,उस दिन भी मैंने ड्रिंक किया हुआ था। तभी एक रिक्शे ने मुझे ठोकर मार दिया ,अगर अपने हमारी मदद नहीं की होती ,तब वहां हमारी मदद करने वाला कोई भी नहींथा।
लेकिन दीपक भाई आप जान लो की मैं ड्रिंक करने वालो से बहुत नफरत करती हूँ तभी ,सरोज क्लिनिक ,आ गया। डा. निशा भारती ने देखा कि बाहर बहुत ही मरीजों की भीड़ लगी है क्यों कि उन्हें आने में देर हो गई थी।
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