Dhan Sampatti Ka Manovigyan Pdf | धन संपत्ति का मनोविज्ञान pdf

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Dhan Sampatti Ka Manovigyan Pdf Download 

 

 

 

पुस्तक का नाम  Dhan Sampatti Ka Manovigyan Pdf
पुस्तक के लेखक  Morgan Housel
भाषा  हिंदी 
साइज  3 Mb
फॉर्मेट  Pdf
श्रेणी  मोटिवेशनल 
पृष्ठ  240

 

 

 

 

Dhan Sampatti Ka Manovigyan Pdf
धन संपत्ति का मनोविज्ञान Pdf Download

 

 

 

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धन संपत्ति का मनोविज्ञान बुक के बारे में 

 

 

 

जब मैं कोई दौरा शुरू करता हूं, तो ऐसा नहीं है कि मैं एरेनास में शुरुआत करता हूं। इस आखिरी दौरे से पहले मैंने न्यू ब्रंसविक में इस जगह पर प्रदर्शन किया, जिसे द स्ट्रेस फैक्ट्री कहा जाता है।

 

 

 

मैंने दौरे के लिए तैयार होने के लिए लगभग 40 या 50 शो किए। एक अखबार ने इन छोटे-क्लब सत्रों की रूपरेखा तैयार की। इसने नोट्स के पन्नों के माध्यम से रॉक थंबिंग और सामग्री के साथ लड़खड़ाहट का वर्णन किया। “मैं इनमें से कुछ चुटकुलों को काटने जा रहा हूँ,” मिड-स्किट कहते हैं।

 

 

 

नेटफ्लिक्स पर मुझे जो अच्छे चुटकुले दिखाई दे रहे हैं वे पूंछ हैं जो सैकड़ों प्रयासों के ब्रह्मांड से बाहर निकल गए हैं। निवेश में भी ऐसा ही होता है।

 

 

 

वॉरेन बफेट की कुल संपत्ति, या उनके औसत वार्षिक रिटर्न का पता लगाना आसान है। या यहां तक ​​​​कि उसका सबसे अच्छा, सबसे उल्लेखनीय निवेश। वे वहीं खुले में हैं, और वे वही हैं जिनके बारे में लोग बात करते हैं।

 

 

 

अपने करियर में किए गए हर निवेश को एक साथ जोड़ना बहुत कठिन है। कोई भी घटिया चुनाव, घटिया कारोबार, घटिया अधिग्रहण के बारे में बात नहीं करता। लेकिन वे बफेट की कहानी का एक बड़ा हिस्सा हैं।

 

 

 

 

वे पूंछ-चालित रिटर्न के दूसरे पक्ष हैं। 2013 में बर्कशायर हैथवे के शेयरधारक बैठक में वॉरेन बफेट ने कहा कि उनके पास अपने जीवन के दौरान 400 से 500 स्टॉक हैं और उनमें से 10 पर अपना अधिकांश पैसा बनाया है।

 

 

 

 

चार्ली मुंगेर ने इसका अनुसरण किया: “यदि आप बर्कशायर के कुछ शीर्ष निवेशों को हटा दें, तो इसका दीर्घकालिक ट्रैक रिकॉर्ड काफी औसत है।” जब हम किसी रोल मॉडल की सफलताओं पर विशेष ध्यान देते हैं तो हम यह देखते हैं कि उनका लाभ उनके कार्यों के एक छोटे प्रतिशत से आया है।

 

 

 

 

इससे हमारी अपनी विफलताएं, नुकसान और असफलताएं महसूस होती हैं कि हम कुछ गलत कर रहे हैं। लेकिन यह संभव है कि हम गलत हैं, या बस एक तरह से सही हैं, जितनी बार स्वामी होते हैं। हो सकता है कि जब वे सही थे तो वे अधिक सही हो सकते थे, लेकिन वे उतनी ही बार गलत हो सकते थे जितनी बार आप करते हैं।

 

 

 

सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

समय किसी का इंतजार नहीं करता है। प्रताप भारती सभी बच्चो को उचित दायित्व सौप देना चाहते थे। भगवान की दया से उनके साथ जुड़ने वाले सभी लोग खुश और सुखी थे सिर्फ एक सामाजिक दयित्व की पूर्ति करना था उसी प्रयास में लगे हुए थे और उन्होंने अपनी लड़की डा. निशा भारती को फोन किया।

 

 

 

 

दूसरी तरफ से निशा बोली पिताजी इस समय हम लोग विंदकी आये हुए है। रजनी हस्त कला केंद्र में रघुराज अंकल के साथ जा रहे है। प्रताप बोले ठीक है मैं फिर बाद में बात करूँगा और फोन रख दिया। अपनी कम्पनी में इतने सारे लोगो को देखकर रजनी कुछ सोच में पड़ गयी थी क्योंकि रघुराज सोनकर साथ में थे।

 

 

 

रजनी और सुधीर दोनों ही डा. निशा भारती को जानते थे कि यह प्रताप भारती की लड़की है। रोशन और सरिता दोनों कम्पनी में घूमते हुए वहां बांस की बनी हुई वस्तुओ को बड़ी उत्सुकता से देख रहे थे। रोशन एक बांस की बनी हुई बोतल उठाकर सरिता को दिखाते हुए बोला दीदी यह बोतल देखो कितनी सुंदर और कलात्मक है।

 

 

 

तभी एक कारीगर बोला इसमें पानी सदैव स्वच्छ और ठंडा रहता है। सरिता और नरेश दोनों वहां की सभी वस्तुए देख रहे थे जो केवल बांस से निर्मित हुई थी। डा. निशा भारती तीन दिन के बाद सबके साथ आगरा लौट आयी थी। रघुराज सोनकर बहुत खुश थे।

 

 

 

वह घर आकर अपनी धर्मपत्नी से कहा कि आज पूरे परिवार के साथ ही प्रताप भारती की लड़की डा. निशा भारती सुधीर और रजनी की कम्पनी देखने आये थे। कंचन जो रघुराज की पत्नी थी वह बोली आपने हमे बताया ही नहीं मैं भी उन लोगो की सेवा सत्कार में सहभागी बनी होती।

 

 

 

रघुराज बोले वह लोग अपनी व्यवस्था गंगापुर में किए हुए थे शायद सुधीर को लेकर वह लोग आपस में बात कर रहे थे और प्रताप भाई तो कह रहे थे सभी बच्चो का दायित्व उन्हें ही पूर्ण करना है और पंद्रह दिन के बाद वह स्वयं गंगापुर आ रहे है।

 

 

 

डा. निशा भारती को किसी कार्य से वाराणसी जाना था तब सरिता भी उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गयी थी उसने रोशन को भी अपने साथ ले लिया था।

 

 

 

अंजली अपने पिता और माता के साथ वाराणसी में आकर रहने लगी थी। उसके पिता ने अपने व्यवसाय के सिलसिले में अपना आगरा का घर बेचकर वाराणसी में रहने लगे थे।

 

 

 

उनकी लड़की उनके साथ ही रहकर अपनी चित्रकला बनाने का कार्य करती थी। वाराणसी जाते समय सरिता ने फोन करके बता दिया था कि हम लोग आ रहे है। अंजली ने सरिता को बता दिया था कि वह कबीर चौरा के पास ही उन लोगो का इंतजार करेगी।

 

 

 

डा. निशा भारती वाराणसी में अपना कार्य निबटाकर कबीर चौरा की तरफ चल पड़ी। कबीर चौरा के पास ही अंजली और उसके पिता रंजन दास और उनका लड़का धीरज खड़ा था। सरिता ने अंजली को पहचान लिया था। निशा भारती ने ऑटो रिक्शा कबीर चौरा पर रुकवा दिया किराया लेने के बाद ऑटो रिक्शा चला गया।

 

 

 

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