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Ganesh Chaturthi Vrat Katha Pdf
श्री गणेश चतुर्थी व्रत भाद्रपक्ष की शुक्लपक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन श्री गणेश जी का जन्म हुआ था। उसी के उपलक्ष में श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनाया जाता है। अगर किसी वर्ष में यह चतुर्थी मंगलवार अथवा रविवार के दिन पड़ने से उसे महाचतुर्थी व्रत कहा जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत मुख्य रूप से भगवान शंकर तथा भगवती पार्वती से संबद्ध है। एक बार भगवती पार्वती तथा भगवान शंकर नर्मदा नदी के तट पर बैठे हुए थे। भगवती पार्वती ने भूतभावन भगवान शंकर से कहा – हे पतितपावन भूतभावन! चलिए चौथ क्रीड़ा का आरंभ करते है जिससे सुचारु रूप से समय व्यतीत हो जाय।
भगवान भोलेनाथ बोले – हे शैलपुत्री पार्वती! तुम्हारा विचार तो बहुत ही उत्तम है पर इसमें एक प्रकार का अवरोध उपस्थित है उसे दूर किए बिना चौपड़ क्रीड़ा करना पर्याप्त नहीं है। शैलजा बोली- हे वघंबरधारी त्रिलोचन! आपका अभिप्राय हमारी समझ में नहीं आया कृपया विस्तार पूर्वक बताये।
त्रिलोकनाथ बोले – हे शैलपुत्री! हमारा यही अभिप्राय था कि हम दोनों मध्य चौपड़ क्रीड़ा में हार जीत का फैसला कौन करेगा? भगवान त्रिलोकीनाथ ने कुछ तिनका उठाया और उसे पुतला बनाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर दिया। पुतला एक बालक का स्वरुप ग्रहण कर चुका था और महादेव जी को प्रणाम करके एक तरफ बैठते हुए बोला।
पिता श्री! आप हमारा उद्देश्य कार्य बताइये। भगवान शंकर ने उस पुतले से कहा – हे पुत्र! यहां हमारे और पार्वती के मध्य चौपड़ क्रीड़ा आरंभ होने वाली है तुम्हे हमारे मध्य हार जीत का निर्णय करना है। भगवती पार्वती और भगवान शंकर के मध्य चौपड़ क्रीड़ा आरम्भ हो गया।
इस चौपड़ क्रीड़ा में पार्वती जी की विजय हुई। उसके पश्चात यही क्रीड़ा पुनः दो बार हुई संयोग ऐसा कि दोनों बार पुनः पार्वती जी को विजय प्राप्त हुई। चौपड़ क्रीड़ा की समाप्ति पर महादेव और पार्वती ने बालक से हार जीत का फैसला करने के लिए कहा तब उस बालक ने महादेव को विजयी घोषित कर दिया।
यह सुनकर भगवती पार्वती ने क्रोधित होकर उस बालक को श्राप दे दिया कि तुम लंगड़ा होकर कीचड़ में पड़े रहोगे। वह बालक भगवती से क्षमा मांगने लगा और बोले – हे माता! मुझसे अज्ञान वश बहुत भारी भूल हो गयी है मैंने किसी द्वेष के वशीभूत होकर ऐसा कार्य नहीं किया।
बालक के क्षमा मांगने से भगवती पार्वती द्रवित हो गयी और बोली – कुछ समय के पश्चात यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याओ का आगमन होगा। तुम भी उनके कहने के अनुसार गणेश पूजन करना तभी श्राप से मुक्ति संभव होगी। इतना कहकर भगवती पार्वती भगवान शंकर के साथ हिमालय के लिए प्रस्थान कर गयी।
एक वर्ष के उपरांत कई नाग कन्याओ का उस स्थान पर गणेश पूजन के लिए आगमन हुआ। उस लंगड़े बालक ने नाग कन्याओ से श्री गणेश पूजन की विधि पूछकर इक्कीस दिन तक लगातार गणेश जी का पूजन और व्रत किया। उस बालक की पूजा से गणेश जी प्रसन्न होकर उससे मनोवांछित वर मांगने के लिए कहा।
उस बालक ने कहा – हे गणराज गणेश! मुझे इतनी शक्ति प्रदान करे जिससे मैं अपने माता-पिता के पास जाकर उनके दर्शन प्राप्त कर सकूँ। गणेश जी ने तथास्तु कहा फिर अंतर्ध्यान हो गए। बालक ठीक होकर चलते हुए कैलाश पर्वत पर पहुंच गया तथा भगवान शंकर से सारा वृतांत कह सुनाया।
भगवान शंकर तो प्रसन्न हो गए पर भगवती पार्वती भगवान शंकर से विमुख गयी। बालक के बताये अनुसार भगवान शंकर ने भी इक्कीस दिनों तक श्री गणेश जी का व्रत किया। श्री गणेश जी प्रभाव से भगवती पार्वती का फिर से भगवान शंकर में अनुराग हो गया। उसके पश्चात ही श्री गणेश चतुर्थी व्रत का प्रचलन आरंभ हुआ।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा Pdf Download
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