Ganpati Atharva Shirsha Pdf | गणपति अथर्व शीर्ष Pdf

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Ganpati Atharva Shirsha Pdf 

 

 

 

 

 

 

 

 

श्री गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने वाले जातक को पहले नित्यकर्म से निवृत्त होकर एक पीला आसन ग्रहण करना चाहिए। अब जातक को अपने समक्ष एक श्री गणेश की मूर्ति या छाया चित्र को पीले आसन पर स्थापित करना चाहिए। अब जातक अपने दोनों हाथ को आपस में जोड़कर प्रणाम मुद्रा में श्री गणेश का आवाहन तथा ध्यान करना चाहिए।

 

 

 

श्री गणेश जी के समक्ष सभी पूजा की सामाग्री जैसे धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, सुगंध तथा आदि अर्पण करना चाहिए तथा साथ में दूर्वा (दूब नामक घास) अर्पण करना अत्यावश्यक होता है कारण कि श्री गणेश जी को दूर्वा अत्यंत ही प्रिय है। जातक को गौरी नंदन की पूजा में मोदक का भोग लगाना अनिवार्य होता है।

 

 

 

मोदक भी विघ्नहर्ता को बहुत ही प्रिय है। उपरोक्त विधि-विधान से पूजन करने के उपरांत गौरी पुत्र गणेश के समक्ष आसन ग्रहण करके श्री गणेश का अथर्वशीर्ष का पाठ निर्मल मन से करना चाहिए। पाठ के सम्पूर्ण होने पर श्री गौरी नंदन गणेश जी की आरती करनी चाहिए।

 

 

 

यदि कोई जातक इस दिव्य पाठ का नियमित रूप से जप करता है तो उसे स्वयं ही इससे होने वाले लाभ की अनुभूति होती है। यदि कोई जातक इसका नियमित रूप से पाठ नहीं करता है तो उसे बुधवार के दिन विधि-विधान से श्री गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ अवश्य करना चाहिए।

 

 

 

श्री गणेश अथर्वशीर्ष तथा उसका अर्थ

 

 

 

जन मानस में ऐसी मान्यता व्याप्त है कि श्री गणेश सभी देवताओ में प्रथम पूज्य है तथा इनकी प्रथम पूजा करने से यह अपने भक्तो की मनोकामना की पूर्ति के साथ सभी संकट को दूर करते है। जो व्यक्ति श्री गणेश जी के मंत्रो का जाप करता है उसे सभी कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है। लाल व सिंदूरी रंग गणपति को बहुत प्रिय है।

 

 

 

श्री गणेश जी का पूजन लाल रंग के फूल से करना चाहिए। श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तोत्र का पाठ करने तथा साथ में पूजन करने में सम्पूर्ण पूजन सामाग्री का उपयोग करना चाहिए यथा धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, पुष्प, सुगंध का समावेश के साथ दूर्वा का होना अनिवार्य है। गौरी नंदन गणेश के नाम से ‘ॐ गं गणपतये नमः‘ मंत्र को जपते हुए भली भांति पूजन करना चाहिए जिससे जातक के जीवन में सदा सर्वदा मंगल प्रवाह होकर अमंगल का शमन होता है।

 

 

 

अर्थ – समस्त दिशाओ में जिसकी कीर्ति व्याप्त वह देवाधिपति इंद्र के समान जिनकी ख्याति है जो बुद्धि और विद्या के सागर है जिनकी शक्तियां देवगुरु वृहस्पति के समतुल्य है। जिनके मार्गदर्शन से सभी पुण्य कर्मो को दिशा प्राप्त होती है। जिससे समस्त मानव जाती का भला होता है उन गौरी नंदन को नमस्कार है।

 

 

सूर्य ग्रहण के समय नदी के किनारे अथवा अपने इष्ट के समीप इस उपनिषद का पाठ करता है उसे सिद्धि प्राप्त होती है। जो अष्ठ धर्मनिष्ठ ब्राह्मणो को उपनिषद का ज्ञान प्राप्त करता है वह सूर्य के समान तेजस्वी होते है। जिससे जीवन के सभी अमंगल दूर होकर मंगल का प्रसार होता है तथा पाप का शमन होता है तथा विद्वान हो जाता है ऐसे ब्रह्म विद्या प्राप्त करने वाले एकदन्त श्री गणेश को नमस्कार है।

 

 

 

हे गौरी नंदन गणेश जी हमे ज्ञान प्रदान करने वाले शब्द सुनाई पड़े तथा हमसे निंदा दुराचार का त्याग हो हमे आपकी कृपा से स्वास्थ्य लाभ प्रदान हो तथा हमारा मन सदैव भक्ति रूपी फूल की सुगंध में लीन एवं बुरे कर्मो से दूर रहकर सदैव ही समाज सेवा में तत्पर रहे। हमारे तन, मन, धन में सदैव ही ईश्वर का निवास हो जिससे हमारे कर्म सद्मार्ग की तरफ प्रेरित होते रहे यही गणाधिपति श्री गणेश से प्रार्थना है।

 

 

 

दुर्वाकुरों से श्री गणेश का पूजन करने वाला जातक कुबेर के समान बन जाता है तथा जो श्री गणेश का पूजन मोदक से करता है उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है जो लाजा से गौरी नंदन गणेश की पूजा करता है वह यशश्वी के साथ मेधावी बनता है। जो घृत और समिधा के द्वारा हवन करता है उसे सब कुछ प्राप्त हो जाता है।

 

 

 

हे श्री गणेश जी! आपको प्रणाम है आप ही कर्म और कर्ता हो, आप ही धारण करने वाले तथा हरण करने वाले संहारी हो, आप ही सजीव प्रत्यक्ष रूप हो, आप ही पवित्र साक्षी है तथा समस्त ब्राह्मण आप में ही व्याप्त है। आप ही चिन्मय है, आप ही आनंद ब्रह्मज्ञानी है, आप ही वाम है, आप ही प्रत्यक्ष कर्ता है, आप ही ब्रह्म है, आप ही सच्चिदानंद तथा अद्वितीय रूप है तथा आप ही ज्ञान विज्ञान के प्रदाता है।

 

 

 

इस जगत के जन्मदाता भी आप है। आपसे ही सम्पूर्ण विश्व सुरक्षित तथा संरक्षित है। सम्पूर्ण विश्व आप में प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है तथा यह सारा संसार आप में ही निहित है, आप ही सभी दिशाओ में व्याप्त है, आप ही भूमि, जल, आकाश तथा वायु है।

 

 

 

आप मेरे है तथा मेरी रक्षा करे, मेरी वाणी की आप रक्षा करे। वेदो उपनिषदों के वाचक की आप रक्षा करे। मुझे देने वाले, सुनने वाले तथा धारण करने वाले की आप रक्षा करे। वेदों से ज्ञान लेने वलो की आप दशो दिशाओ से पूर्ण रूपेण रक्षा करे। यह सम्पूर्ण मंत्र ‘गं गणपतये नमः’ का भक्ति पूर्वक उच्चारण करे। गण का उच्चारण करने के पश्चात आदि ववर्ण अकार का उच्चारण करे तथा ॐकार का उच्चारण करे।

 

 

 

आप सत्व, रज, तम, तीनो गुणों से भिन्न त्रिगुणातीत है, आप तीनो देहो से भिन्न है। आप तीनो भूत, वर्तमान तथा भविष्य से सर्वथा भिन्न है। आप जीवन के मूल आधार में विराजमान है। योगी तथा महर्षि आपका ही ध्यान करते है। आप में ही तीनो शक्तियां (धर्म, उत्साह, मानसिक) व्याप्त है। आप में ही निर्गुण तथा सगुण का समावेश है। आप ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, अग्नि, इंद्र, सूर्य, वायु तथा चंद्र है।

 

 

 

हमे इस सद्मार्ग पर चलने की गणपति प्रेरणा प्रदान करे। हम वक्रतुण्ड, एकदन्त का ध्यान करते है। व्रातपति गणपति को प्रणाम, एकदन्त को प्रणाम, प्रथमपति को प्रणाम, विघ्नविनाशक को प्रणाम, लंबोदर, शिवतनय, श्री वरद मूर्ति को प्रणाम।

 

 

 

भगवान श्री गणेश के मस्तक पर चंदन का सुगंधित लेप लगा हुआ है। भगवान श्री गणेश एकदन्त चार भुजाओ वाले है जिनमे वह क्रमशः पाश, अंकुश, दंत और वरमुद्रा रखते है। उनके वस्त्र लाल है तथा उनके ध्वज में मुषक अंकित है। विघ्नेश्वर गणेश सभी की मनोकामना पूर्ण करने वाले सम्पूर्ण जगत में व्याप्त है। श्री गणेशलाल पुष्प धारण करते है। वह सृष्टि के रचनाकार है जो भी सच्चे मन से इनका ध्यान करता है वह महायोगी कहलाता है।

 

 

 

जो इस मंत्र के उच्चारण के साथ श्री गणेश जी का अभिषेक करता है उसकी वाणी उसकी दासी बन जाती है। जो ब्रह्मादि आवरण को जानता है वह भय से मुक्त हो जाता है तथा जो चतुर्थी के दिन उपवास और जप करता है वह विद्वान बनता है।

 

 

 

जो व्यक्ति अथर्वशीर्ष का पाठ करता है उसे कोई विघ्न नही व्याप्त है। वह पंच महापाप से दूर होकर सदैव सुखी हो जाता है। हमेशा अथर्वशीर्ष का पाठ करने वाला समस्त दोष रहित हो जाता है। संध्या में अथर्वशीर्ष का पाठ करने से दिन के दोष दूर हो जाते है तथा प्रतःकाल पाठ करने से रात्रि के दोष दूर हो जाते है। इसका एक हजार पाठ करने से जातक को सिद्धि प्राप्त होती है वह योगी बन जाता है तथा धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष पर विजय प्राप्त करता है।

 

 

 

श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ से होने वाले लाभ

 

 

 

इस वैदिक पाठ का नियमित रूप जाप करने वाले जातक के ऊपर भगवान गणपति की विशेष कृपा बनी रहती है तथा उसके जीवन का मार्ग निष्कंटक हो जाता है।

 

श्री गणेश अथर्वशीर्ष का प्रतिदिन शुद्ध रूपेण पाठ करने से जातक का अंतर्मन शुद्ध होता है।

 

इस पाठ के प्रयोग से जातक का मुखमंडल आभा से पूर्ण रहता है।

 

गणपति अथर्वशीर्ष का नियम पूर्वक प्रतिदिन पाठ करने से जातक अनिर्णय की स्थिति से ऊपर उठकर निर्णय लेने की क्षमता से पूर्ण हो जाता है।

 

गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ करने से नकारात्मकता दूर होकर सकारात्मकता का संचार होता है।

 

मानसिक अशांति वाले जातक के लिए यह गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ रामबाण का कार्य करता है तथा शांति प्राप्त होती है।

 

यदि जातक आर्थिक रूप से समस्याग्रस्त है तो उसे यह दिव्य गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से आर्थिक उन्नति प्राप्त होती है।

 

यदि किसी बालक का पढ़ाई करने मे मन उचट जाता है तो उसे नियम पूर्वक गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से सफलता प्राप्त होती है क्योंकि श्री गणेश विद्या वारिध और बुद्धि प्रदाता है।

 

श्री गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ प्रत्येक जातक को नियम पूर्वक करना चाहिए इसका जीवन में बहुत महत्व है तथा सभी सांसारिक दुखो की समाप्ति के लिए रामबाण है।

 

 

 

 

गणपति अथर्व शीर्ष Pdf Download

 

 

 

 

Ganpati Atharva Shirsha Pdf
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