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Garg Sanhita Gita Press Hindi Download
गर्ग मुनि राजा बहुलाश्व से श्री कृष्ण भगवान का वर्णन करते हुए कहते है जिनके मुख पर पूर्ण चन्द्रमा के समान नव नूतन धन श्यामल विभा का तिरस्कार करने वाले सुंदर काले घुंघराले केश चमक रहे है तथा जिनका मस्तक रूपी मुकुट थोड़ा सा झुका हुआ है उन नंद नंदन श्री कृष्ण तथा उनके अग्रज श्री बलराम को मेरा बारंबार नमस्कार है।
जिनके चरण कमल में नूपुर और मंजीर की मधुर ध्वनि झंकृत हो रही है और कटि प्रदेश में खनखनाती नूतन रत्न जड़ित कांची (करधनी) की अनुपम छटा है। जो सुंदर कंठहार और वघनखा से युक्त सुंदर यंत्र समुदाय से शोभायमान है। जिनके भाल देश में कज्जलकी विंदी जो दृष्टि जनित पीड़ा को हरती है, शोभायमान है। जो रवि तनया कालिंदी के तट पर अपनी बालोचित क्रीड़ा में मग्न है मैं उन श्री हरि की बंदना करता हूँ।
जिनके अधर की अरुण आभा से विंबफल की अरुणिमा तिरस्कृत हो जाती है। जिनके नेत्र नूतन शतदल कमल के समान विकसित और विशाल है तथा जिनके श्री अंगो की अनुपम शोभा जलधर की श्याम मनोहर कांति को छीन लेने में सदा ही समर्थ है। जिनके मुख पर सुंदर मुस्कान की दिव्य छटा है। जो अपनी सुंदर और मंद मधुर गति से चलते है ऐसे उन बाल्यावस्था से विलसित मनोज श्री नंद नंदन को मैं मन से प्रणाम करता हूँ।
नारद जी कहते है जो भी प्रातःकाल उठकर इस ‘श्री नंद नंदन कनक स्तोत्र’ का पाठ करता है उसके नेत्रों के सम्मुख श्री नंद मनानन्द मानन्द श्री कृष्ण प्रकट होते है। इस प्रकार श्री कृष्ण को प्रणाम करके मुनि शिरोमणि दुर्वासा उन्ही का ध्यान करते हुए उत्तर में वदरिका आश्रम की तरफ तप करने के लिए चले गए।
Book | Garg Sanhita |
Aothur | Geeta Press |
Size | 72.5 Mb |
Paje | 567 |
Formate |
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