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Geeta Saar in Hindi Pdf
अर्जुन का युद्ध भूमि में धनुष-बाण रख देना – संजय ने कहा – युद्ध भूमि में इस प्रकार कहकर अर्जुन ने अपना धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया और शोक संतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – अर्जुन शोक संतप्त होकर अपना धनुष तथा बाण एक ओर रखकर रथ के आसन पर पुनः बैठ गया। जबकि अपने शत्रु की स्थिति का अवलोकन करते समय अर्जुन रथ पर खड़ा हो गया था। ऐसा दयालु तथा कोमल हृदय व्यक्ति जो भगवान की सेवा में रत हो। आत्मज्ञान प्राप्त करने के सर्वथा योग्य है।
भगवान कहते है – ऐसा कभी नहीं हुआ है मैं न रहा होऊ या तुम न रहो अथवा यह समस्त राजा न रहे और न ऐसा है कि भविष्य में हम लोग नहीं रहेंगे।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – वेदो में कठोपनिषद में तथा श्वेताश्वर उपनिषद में कहा गया है कि जो श्री भगवान असंख्य जीवो के कर्म तथा कर्मफल के अनुसार उनकी अपनी-अपनी परिस्थितियों में पालक है। वही भगवान अंश रूप में हर जीव के हृदय में वास कर रहे है। केवल साधु पुरुष जो एक ही ईश्वर को भीतर बाहर देख सकते है। पूर्ण एवं शाश्वत शांति प्राप्त कर पाते है। (कठोपनिषद 2. 2. 13) यह मायावादी सिद्धांत की मुक्ति के बाद आत्मा माया के आवरण से पृथक होकर निराकार ब्रह्म में लीन हो जाएगा और अपना अस्तित्व खो देगा, यहां पर परम अधिकारी भगवान कृष्ण के द्वारा पुष्ट नहीं हो पाता है।
जो वैदिक ज्ञान अर्जुन को प्राप्त किया गया वही विश्व के समस्त पुरुषो को प्रदान किया जाता है। जो विद्वान होने का दावा तो करते है किन्तु जिनकी ज्ञान राशि न्यून है। भगवान यह स्पष्ट कहते है कि वह स्वयं अर्जुन तथा युद्धभूमि में सारे एकत्र राजा शाश्वत प्राणी है और इन जीवो की बद्ध तथा मुक्त अवस्था में भगवान ही एकमात्र उनके पालक है। उनका अस्तित्व भूतकाल में था और भविष्य में भी निर्वाध रूप से बना रहेगा। भगवान परम पुरुष है और भगवान का चिर संगी अर्जुन एवं वहां एकत्र सारे राजागण शाश्वत पुरुष है। ऐसा नहीं है कि यह भूतकाल में प्राणियों के रूप में अलग-अलग उपस्थित नहीं रहेंगे अतः किसी के लिए शोक करने की कोई बात नहीं है।
कृष्ण का यह कथन प्रामाणिक है क्योंकि कृष्ण माया के वशीभूत नहीं होते है। यहां पर कृष्ण स्पष्टतः कहते है कि भगवान तथा अन्य का भी अस्तित्व भविष्य में अक्षुण्ण रहेगा जिसकी पुष्टि उपनिषद भी करते है। यदि अस्तित्व तथ्य न होता तो कृष्ण इतना बल क्यों देते और वह भी भविष्य के लिए। मायावादी यह तर्क कर सकते है कि कृष्ण द्वारा कथित अस्तित्व आध्यात्मिक न होकर भौतिक है। इस सिद्धांत का समर्थन नहीं हो पाता है कि बद्ध अवस्था में ही हम अस्तित्व का चिंतन करते है।
कृष्ण सदा सर्वदा अपना अस्तित्व बनाए रखते है। यदि उन्हें सामान्य चेतना वाला सामान्य व्यक्ति के रूप में माना जाता है तो प्रामाणिक शास्त्र के रूप में उनकी भगवद्गीता की कोई महत्ता ही नहीं रह जाएगी। यदि हम इस तर्क को कि अस्तित्व भौतिक होता है स्वीकार कर भी ले तो कोई कृष्ण के अस्तित्व को किस प्रकार से पहचानेगा ? कृष्ण भूतकाल में भी अपने अस्तित्व की पुष्टि करते है और निराकार ब्रह्म उनके अधीन घोषित किया जा चुका है।
एक सामान्य व्यक्ति मनुष्य के चार अवगुणो के कारण श्रवण करने योग्य शिक्षा देने में समर्थ नहीं हो सकता है। गीता ऐसे साहित्य से ऊपर है। कोई भी सन्यासी ग्रंथ गीता की तुलना नहीं कर सकता है। कृष्ण को सामान्य व्यक्ति मान लेने पर गीता की सारी महत्ता समाप्त हो जाएगी। अतः अस्तित्व आध्यात्मिक आधार पर स्थापित है और इसकी पुष्टि रामानुजाचार्य तथा अन्य आचार्यो ने भी की है। मायावादियों का तर्क है कि इस श्लोक में वर्णित द्वैत लौकिक है और शरीर के लिए प्रयुक्त हुआ है किन्तु इसके पहले वाले श्लोक में ऐसी देहात्म बुद्धि की निंदा की गई है। एक बार जीवो की देहात्म की निंदा करने के बाद यह कैसे सम्भव है कि कृष्ण पुनः शरीर पर उसी वक्तव्य को दुहराते ?
गीता में कई स्थलों पर इस बात का उल्लेख है कि यह आध्यात्मिक अस्तित्व केवल भगवद्भक्तो द्वारा ज्ञेय है। जो लोग भगवान कृष्ण का विरोध करते है उनकी इस महान साहित्य तक पहुंच नहीं हो पाती है। इसी प्रकार से भगवद्गीता के रहस्य वाद को केवल भक्त ही समझ सकते है अन्य कोई नहीं जैसा कि चतुर्थ अध्याय में कहा गया है। अभक्तो द्वारा गीता के उपदेशो को समझने का प्रयास मधुमक्खी द्वारा मधुपात्र चाटने के सदृश्य है। पात्र को खोले बिना मधु का स्वाद नहीं लिया जा सकता है।
गीता का स्पर्श ऐसे लोग नहीं कर पाते है जो भगवान के अस्तित्व का विरोध करते है। अतः माया वादियों द्वारा गीता की व्याख्या मानो समग्र सत्य का सरासर भ्रामक निरूपण है। भगवान चैतन्य ने मायावादियों द्वारा की गई व्याख्या को पढ़ने के लिए निषेध किया है और चेतावनी दी है कि जो कोई ऐसे मायावादी दर्शन को ग्रहण करता है वह गीता के वास्तविक रहस्य को समझने में समर्थ नहीं रहता है। यदि अस्तित्व का अभिप्राय अनुभव गम्य ब्रह्माण्ड से है तो भगवान द्वारा उपदेश देने की कोई भी आवश्यकता नहीं थी। आत्मा तथा परमात्मा का द्वैत शाश्वत सत्य है। इसकी पुष्टि वेदो के द्वारा होती है जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है।
गीता सार Pdf Download
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