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Gita Press Gorakhpur Pustaken Download
बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथो ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओ को दुर्लभ है और बड़ी कठिनता से मिलता है। यह साधना का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे प्राप्त कर जिसने परलोक न बना लिया।उस परलोक में दुःख मिलता है, सिर पीटकर पछताता है तथा अपना दोष न समझकर काल पर, कर्म पर और ईश्वर पर मिथ्या दोष लगाता है।
हे भाई! इस शरीर के प्राप्त होने का फल विषय भोग नहीं है। इस जगत के भोग की तो बात ही क्या? स्वर्ग का भोग भी थोड़ा है और अंत में दुःख देने वाला है। अतः जो लोग मनुष्य शरीर प्राप्त करने पर भी विषयो में मन लगाते है, वह मुर्ख अमृत के बदले में विष लेते है।
जो पारस मणि को खोकर बदले में गुंजा ‘घुंघची’ लेता है, उसको कभी कोई बुद्धिमान नहीं कहता है। यह अविनाशी जीव ‘अंडज, स्वेदज, जरायुज, उद्भिज्ज’ चार खानो और चौरासी लाख योनियों में चक्कर लगाता रहता है। माया की प्रेरणा से काल, कर्म, स्वभाव और गुण से घिरा हुआ यह सदा ही भटकता रहता है।
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