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Gitanjali Hindi Pdf
अनजानों को जानकर कितने घरों को दी राह- किया दूर को निकट बंधु कहा भाई परायों को घर छोड़ पुराना जब- जब जाता जाने क्या हो, मन घबराता, नये के बीच तुम तो पुरातन यह सत्य मैं बिसरा जाता। किया दूर को निकट बंधु
कहा भाई परायों को।
जीने मरने में , अखिल भुवन में जब – जहां भी अपना लोगे। जनम-जनम के जाने-अनजाने, तुम्हीं सबसे परिचित कर दोगे। तुम्हें जान लूं तो रहे न कोई पराया न कोई मनाही, न कोई डर सारे रूपों में तुम हो जागे दरस सदा तुम्हारा प्रभु हो। किया दूर को निकट, बंधु कहा भाई परायों को।
विपदाओं से मुझे बचाना यह नहीं प्रार्थना मेरी। विपदाओं में न होऊं भयभीत। जब दुःखी हूं, चित्त व्यथित हो
न भी दो सांत्वना। दुःखों को बस कर पाऊं जय मैं। सहाय अगर जो कभी न जुटे बल ना मेरा फिर भी टूटे। क्षति जो घटे जगत में लायेगी केवल वंचना अपने मन में न मानूं कोई क्षय।
मुझे दुःखों से बाहर निकालो यह नहीं मेरी प्रार्थना तरने का बल कर पाऊं संचय।। मेरा भार घटाकर तुम न भी दो सांत्वना। ढो पाऊं उसे इतना हो निश्चय।।। सर झुकाये जब आये सुख पहचान लूं मैं तुम्हारा मुख दुख की रात में निखिल धरा जब करें वंञ्चना। तुम पर करूं न कोई संशय।। पुस्तक को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे।
Gitanjali in Hindi Pdf Download
पुस्तक का नाम | गीतांजलि बुक Pdf |
लेखक | रबिन्द्र नाथ टैगोर |
भाषा | हिंदी |
साइज | 953. 6 Kb |
पेज | 182 |
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