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Godan Upanyas Pdf In Hindi Download

 

 

 

पुस्तक का नाम  Godan Upanyas Pdf
पुस्तक के लेखक  प्रेमचंद 
फॉर्मेट  Pdf 
भाषा  हिंदी 
साइज  26.28 Mb 
पृष्ठ  370 
श्रेणी  साहित्य 

 

 

 

Godan Upanyas Pdf
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Godan Upanyas Pdf
डायन हिंदी नॉवेल By वेद प्रकाश शर्मा यहां से डाउनलोड करे।

 

 

 

 

 

 

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिए

 

 

 

हे पक्षीराज गरुण जी! श्री रघुनाथ जी की प्रभुता सुनिए। मैं अपनी बुद्धि के अनुसार वह सुहावनी कथा कहता हूँ। हे प्रभो! मुझे जिस प्रकार से मोह हुआ वह सब कथा भी आपको सुनाता हूँ। हे तात! आप श्री राम जी के कृपा पात्र है। श्री हरि के गुणों में आपकी प्रीति है। इसलिए आप मुझे सुख देने वाले है।

 

 

 

 

इससे मैं आपसे कुछ भी नहीं छिपाता हूँ और अत्यंत रहस्य की बातो का गायन करके आपको सुनाता हूँ। श्री राम जी का सहज स्वभाव सुनिए। वह कभी अपने भक्त में अभिमान नहीं रहने देते है क्योंकि अभिमान ही जन्म-मृत्यु रूप संसार का मूल है और अनेक प्रकार के क्लेशो तथा समस्त शोक को देने वाला है।

 

 

 

 

इसलिए कृपानिधि उसे दूर कर देते है क्योंकि उनकी सेवक के ऊपर बहुत अधिक ममता रहती है। हे गोसाई! जैसे बच्चे के शरीर में फोड़ा होने पर माता अपना हृदय कठोर करके उस फोड़े को विनष्ट कर देती है।

 

 

 

 

यद्यपि बच्चा पहले दुखी हो जाता है और अधीर होकर रोता है तो भी रोग के नाश के लिए माता बच्चे की उस को पीड़ा को नहीं गिनती है। उसी प्रकार  जी अपने दास का अभिमान उसके हित के लिए हर लेते है। तुलसीदास जी कहते है कि ऐसे प्रभु को भ्रम त्यागकर क्यों नहीं भजते।

 

 

 

 

हे पक्षीराज गरुण जी! श्री राम जी की कृपा और अपनी जड़ता की बात कहता हूँ मन लगाकर सुनिए। जब-जब श्री राम जी  धारण करते है और भक्तो के लिए बहुत सी लीला करते है तब-तब मैं अयोध्यापुरी जाता हूँ और उनकी बाल लीला को देखकर हर्षित होता हूँ।

 

 

 

 

वहां जाकर मैं जन्म महोत्सव देखता हूँ और भगवान शिशुलीला में मोहित होकर पांच वर्ष तक वही रहता हूँ। बालक रूप श्री राम जी मेरे इष्ट देव है जिनके शरीर में सौ कोटि कामदेव की शोभा है। हे गरुण जी! अपने प्रभु का मुख देखकर मैं अपने नयन सफल करता हूँ।

 

 

 

 

छोटे से कौए का शरीर धारण कर और भगवान के साथ-साथ फिरते हुए मैं उनके अनेक भांति के बाल चरित्र को देखा करता हूँ। लड़कपन में वह जहां भी फिरते है वहां मैं साथ-साथ उड़ता हूँ और आंगन में जो उनकी जूठन गिरती है वही खाता हूँ। एक बार रघुवीर ने सब चरित्र बहुत अधिकता से किए। प्रभु की उस लीला का स्मरण करते ही काकभुशुण्डि जी का शरीर पुलकित हो गया।

 

 

 

 

भुशुण्डि जी कहने लगे – हे पक्षीराज! सुनिए, श्री राम जी का चरित्र सेवको को सुख प्रदान करने वाला है। अयोध्या का राजमहल सब प्रकार से सुंदर है। सोने के महल में नाना प्रकार के रत्न जड़े हुए है। सुंदर आंगन का वर्णन नहीं किया जा सकता जहां चारो भाई नित्य खेलते है।

 

 

 

 

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