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Guru Gita Pdf / गुरु गीता पीडीऍफ़ डाउनलोड 

 

 

पुस्तक का नाम  Guru Gita Pdf
भाषा  हिंदी 
श्रेणी  धार्मिक 
साइज  1.4 Mb
पृष्ठ  45
फॉर्मेट  Pdf

 

 

 

Guru Gita Pdf
गुरु गीता Pdf Download

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिए

 

 

 

हे करुणा निधान! उनका एक-एक पल भी एक कल्प के समान बीतता है। अतः हे प्रभु! तुरंत चलिए और अपनी भुजा के बल से उन सबके दल को जीतकर सीता जी को ले आइये।

 

 

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

सीता जी का दुःख सुनकर सुख के धाम प्रभु के कमल नयन में जल भर आया और वह बोले – मन, वचन और शरीर से जिसे मेरा ही आश्रय है उसे क्या स्वप्न में भी विपत्ति हो सकती है।

 

 

 

 

हनुमान जी ने कहा – हे प्रभो! विपत्ति तो तभी है जब आपका भजन स्मरण न हो। हे प्रभो! राक्षसों की बात ही कितनी है? आप शत्रु को जीतकर जानकी जी को ले आएंगे।

 

 

 

 

भगवान कहने लगे – हे हनुमान! सुन, तेरे समान मेरा उपकारी देवता, मनुष्य अथवा मुनि कोई भी शरीरधारी नहीं है। मैं बदले में तेरा क्या उपकार करूँ। मेरा मन भी तेरे सामने नहीं हो सकता है।

 

 

 

 

हे पुत्र! सुन, मैंने अपने मन में खूब विचार करके देख लिया कि मैं तुमसे उऋण नहीं हो सकता। देवताओ के रक्षक बार-बार हनुमान जी को देख रहे है। लोचन मे प्रेम का जल भरा है और शरीर अत्यंत ही पुलकित है।

 

 

 

 

32- दोहा का अर्थ-

 

 

 

प्रभु के वचन सुनकर उनके प्रसन्न मुख और पुलकित अंगो को देखकर हनुमान जी हर्षित हो गए और प्रेम में विकल होकर ‘हे भगवान! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो’ कहते हुए श्री राम जी के चरणो में गिर पड़े।

 

 

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

प्रभु उनको बार-बार उठाना चाहते है परन्तु प्रेम में डूबे हुए हनुमान जी चरणों से उठना नहीं सुहाता है। प्रभु का कर कमल हनुमान जी के सिर के ऊपर है। उस स्थिति का स्मरण करके शिव जी प्रेम में मग्न हो गए।

 

 

 

आकाश में बहुत से नगाड़े बज रहे है। गंधर्व और किन्नर गान कर रहे है। अप्सराओ के समूह नाच रहे है। देवता और मुनि परमानंद प्राप्त कर रहे है।

 

 

 

भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न जी, विभीषण, अंगद, हनुमान और सुग्रीव आदि क्रमशः छत्र, चंवर, पंखा, धनु लिए हुए सुशोभित है। श्री सीता जी के साथ सूर्य वंश के भूष्ण श्री राम जी के शरीर में अनेक कामदेव की छवि शोभा दे रही है।

 

 

 

नवीन जल युक्त मेघो के समान सुंदर श्याम शरीर पर पीतांबर देवताओ के मन को भी मोहित कर रहा है। मुकुट, बाजूबंद आदि विचित्र आभूषण अंग में सजे हुए है। कमल के समान नयन है, चौड़ी छाती है, लंबी भुजाये है, जो उनके दर्शन करते है वह मनुष्य धन्य है।

 

 

दोहा का अर्थ-

 

 

हे पक्षीराज गरुण जी! वह शोभा, वह समाज और वह सुख मुझसे कहते नहीं बनता है। सरस्वती जी, शेष जी और वेद निरंतर जिनका वर्णन करते है और उसका रसानंद महादेव जी जानते है।

 

 

 

सब देवता अलग-अलग स्तुति करके अपने लोक को चले गए। तब भरत जी का रूप धारण करके चारो वेद वहां आये जहां श्री राम जी थे।

 

 

 

कृपानिधान सर्वज्ञ प्रभु ने उन्हें पहचानकर उनका बहुत ही आदर किया इसका भेद कोई नहीं जान सका। वेद गुणगान करने लगे।

 

 

 

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