गुरु गोरखनाथ मंत्र बुक | Guru Gorakhnath Mantra Book Pdf

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Guru Gorakhnath Mantra Book Pdf

 

 

 

 

 

 

 

जब भारत में संस्कृत भाषा दुर्बल पड़ने लगी और क्षेत्रीय भाषायें विकसित होने लगीं, साथ ही अशिक्षा का बोल॒बाला हो गया, तो वैदिक एवं शाक्तमत्‌ का ज्ञान, जो संस्कृत एवं तमिल मूल भाषा में था, पुस्तकों में ही रह गया। यह ज्ञान जन साधारण से कट गया। फलस्वरूप प्राकृत, पाली, उड़िया, कननड़ आदि भाषायें अस्तित्व में आयीं और जब भारत में संस्कृत भाषा दुर्बल पड़ने लगी और क्षेत्रीय भाषायें विकसित होने लगीं, साथ ही अशिक्षा का बोल॒बाला हो गया, तो वैदिक एवं शाक्तमत्‌ का ज्ञान, जो संस्कृत एवं तमिल मूल भाषा में था, पुस्तकों में ही रह गया। यह ज्ञान जन साधारण से कट गया।

 

 

 

 

फलस्वरूप प्राकृत, पाली, उड़िया, कननड़ आदि भाषायें अस्तित्व में आयीं और ग्रन्थ रचनायें उन्हीं में होने लगीं। नाथ्‌ एवं सिद्धों की. भाषा अस्तित्व में आयी।

 

 

 

इनमें देवी-देवताओं के नाम, , ओम, राम, हनुमान एवं बिस्मिल्लाह, अर्रहमान, निर्हहमान जैसे उर्दू के शब्द भी भाषा में सम्मिलित हो गये फल यह हुआ कि मंत्र का शास्त्रीय शब्द विन्यास लुप्त हो गया, परन्तु इनमें जो मूल बीज शब्द (शक्स्तिशब्द) थे, जैसे ३», पीर, हनुमान, बजरंग, राम, गुरु, बिस्मिल्लाह, अर्रहमान, नमः, नमों आदि बने रहे। सिद्धों एवं नाथों ने इन्हीं शब्दों से पिरोकर क्षेत्रीय भाषाओं में मंत्रों की रचना कौ यदि ध्यान देंगे, तो स्पष्ट प्रतीत होगा कि ओंकार, आकर, डकाए, ईकए जैसे कम्पनयुक्त दीर्घ स्वर का प्रयोग इनमें बहुतायत्‌ से किया गया है|

 

 

 

इन्‌ मात्रों का रूप एक-सा नहीं है, तथापि इनमें यह समानता प्रत्येक स्थान पर समान्‌ रूप से है! विशेष कम्पन्‌ की. विद्युतीय शक्ति का प्रयोग इनमें प्रचुर हुआ है! साथ ही ध्यान एवं जप की एकाग्रता एवं हव्य सामग्रियों का उपयोग भी इनमें होता है॥ अत: इनमें शक्ति बनी रही, और ये मंत्र लोकप्रिय हुए! इनकी सिद्धि विधि भी सरल रखी गयी, जिसमें ध्यानश्त्ति, जप्शक्ति और वास्तुशक्तति (हव्य्‌ पदार्थ के गुणों) का मुख्य स्थान है, नियम्‌ एवं विधि- विधानों का नहीं। इन्हें ही शाबर मंत्र कहा जाता है, क्योंकि मन्र के इस्‌ स्वरूप के आविष्कारकर्त्ता गुरु गोरखानाथ्‌ के शिष्य्‌ शाबरनाथ थे।॥ वैसे भी शाबर का अर्थ शाबरी अथवा ग्रामीण से है.

 

 

 

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