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Hanuman Tantra Vidya Pdf
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महाबली हनुमान जी का शक्तिशाली मंत्र
प्रभु श्री राम और उनके परम भक्त महावीर हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए हनुमत वडवानल स्त्रोत्र अति उत्तम साधन है। रावण के भाई विभीषण परम रामभक्त थे। उन्होंने कष्टों से मुक्ति और सुरक्षा के लिए हनुमत वडवानल की रचना किया था।
इस शक्तिशाली स्त्रोत्र के पाठ से व्यक्ति सुरक्षित रहता है और उसकी अभीष्ट इच्छाओ की पूर्ति भी होती है। इस स्त्रोत्र का नियम पूर्वक और नियमित पाठ करने से सभी प्रकार के कष्ट और उपद्रवों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस चमत्कारी वडवानल स्त्रोत्र पर भगवान श्री राम और हनुमान जी का आशीर्वाद है और साथ ही विभीषण के तप और बल इसे बहुत प्रभावशाली बनाता है।
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जिस तरह से सारे नगर का शोक और तुम्हारा कलंक मिट जाय वही उपाय करके कुल की रक्षा करो। वन जाते हुए श्री राम जी को हठ करके लौटा ले। दूसरी कोई भी चल न चल।
तुलसीदास जी कहते है – जैसे सूर्य के बिना दिन, प्राण के बिना शरीर और चन्द्रमा के बिना रात ‘निर्जीव तथा शोभाहीन हो जाती है’ वैसे ही श्री राम जी के बिना यह अयोध्या हो जाएगी। हे भामिनि! तू अपने हृदय मे विचारकर देख तो सही।
50- दोहा का अर्थ-
इस प्रकार सखियों ने ऐसी सीख दी जो सुनने में मीठी और परिणाम हितकरी भी थी। पर कुटिला, कुवरी की सिखाई और पढ़ाई हुई कैकेयी ने इन बातों पर जरा भी ध्यान नहीं दिया।
चौपाई का अर्थ-
1- कैकेयी कोई उत्तर नहीं देती है, वह तो दुःसह क्रोध से रूखी हो रही है, उसके अंदर कोई भाव नहीं था। वह ऐसे देख रही है। तब सखियों ने रोग को असाध्य समझकर उसे छोड़ दिया, सब उसको मंद बुद्धि, अभागिन कहती हुई चली गई।
2- राज्य करते हुए इस कैकेयी को दैव ने नष्ट कर दिया, इसने जैसा किया है, वैसा कोई भी नहीं करेगा। नगर के सभी स्त्री-पुरुष इस प्रकार विलाप करते हुए उस कुचाली कैकेयी को बुरा भला कह रहे है।
3- सभी लोग विषम ज्वर, भयानक दुःख की आग में जल रहे है। लंबी साँसे लेते हुए वह कहते है कि श्री राम जी के बिना रहने की कोई आशा नहीं है।
महान वियोग की आशंका से प्रजा ऐसी व्याकुल हो गई है जैसे पानी सूखने के समय समस्त जलचर जीवो का समुदाय व्याकुल हो जाता है।
4- सभी पुरुष और स्त्रियां विषाद से भर गए है। स्वामी श्री राम जी माता कौशल्या के पास गए। उनका मुख प्रसन्न है और चित्त चार गुना उत्साह है।
यह सोच मिट गया है कि राजा कही रख न ले। “श्री राम जी को तिलक की बात सुनकर विषाद हुआ था कि सब भाइयो को छोड़कर मुझे ही राज तिलक क्यों हो रहा है। अब माता कैकेयी की आज्ञा और पिता की मौन सम्मति जानकर वह विषाद मिट गया है।”
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