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Hanuman Vadvanal Stotra Pdf Download


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सिर्फ पढ़ने के लिये
अवध का प्रभाव जीव तभी जानता है जब हाथ में धनु धारण करने वाले श्री राम जी उसके हृदय में निवास करते है। हे गरुण जी! वह कलिकाल बहुत ही कठिन था। उसमे सभी नर-नारी पाप में लिप्त थे।
कलियुग के पापो ने सब ग्रंथो को ग्रस लिया था। सदग्रंथ लुप्त हो गए थे। दंभियो ने अपनी बुद्धि से कल्पना करके बहुत से पंथ प्रकट कर दिए थे। सभी लोग मोह के वश में हो गए शुभ कर्मो को लोभ ने हड़प लिया। हे ज्ञान के भंडार! हे श्री हरि के वाहन! सुनिए, अब मैं कलियुग के कुछ धर्म कहता हूँ।
हारु नामक भयानक दैत्य अपने पूरे वेग से आकाश मार्ग से जा रहा था। मिलन अदृश्य रूप से हारु के साथ ही चल रहा था। मिलन से बाते करते हुए हारु कह रहा था – वहां पर प्रत्येक वस्तु सुवर्ण के रंग की है लेकिन आपके पास दिव्य और असीमित शक्तियां है।
अगर आप वहां के सभी स्वर्ण वृक्ष और सरोवर के जल को स्पर्श करेंगे तो वह सभी अपने सामान्य रूप में आ जायेंगे और सरोवर में स्नान करने वाला चाहे वह यक्ष, गंधर्व तथा किन्नर ही क्यों न हो वह शक्ति विहीन हो जायेगा सिर्फ परमेश्वर को छोड़कर कोई भी सरोवर के जल और वृक्ष को स्वर्ण रंग से सम्पन्न नहीं कर सकता है।
मिलन हारु से बोला – ऐसा करने से हमे क्या लाभ हो सकता है? हारु बोला – आप इतना भी नहीं समझ सकते हो क्या? मिलन हारु से बोला – मैं अपने लाभ के लिए किसी परेशानी में नहीं डाल सकता हूँ। हारु ने मिलन से कहा – दूसरे को परेशान करना अच्छी बात नहीं है।
मुझे अच्छी तरह से याद है कि आपको परेशान करने के उद्देश्य से मैं स्वयं पराजित हो गया था लेकिन आपका संबंध जिस लोक से है वहां प्रत्येक कदम पर सभी लोग एक दूसरे के लिए परेशानी उपस्थित करने के लिए सदैव तत्पर रहते है। लेकिन यहां इस स्वर्ण सरोवर पर इस समय आप थोड़ी सी परेशानी उत्पन्न करने का प्रयास नहीं करेंगे तो आपको अपना उद्देश्य प्राप्त करने में विलम्ब हो सकता है।
हारु एक ऊँचे टीले पर रुक गया मिलन भी हारु के समक्ष प्रकट हो गया। हारु ने उत्तर की तरफ अपना हाथ दिखाते हुए कहा – मिलन स्वामी! वह देखिए यहां से थोड़ी दूर पर स्वर्ण सरोवर दिखाई पड़ रहा है। अब वहां तक पहुंचने के लिए आपको प्रयास करना होगा।
लेकिन इतना याद रखिए वहां तक पहुंचने के लिए मार्ग निष्कंटक नहीं है संभल कर चलने से कंटक अवश्य हट जायेंगे अब मैं जा रहा हूँ आप प्रयास करिये सफलता मिलेगी इतना कहते हुए हारु अपने स्थान मंदक पर्वत की तरफ चल पड़ा।
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