होली व्रत कथा Pdf | Holi Vrat Katha Pdf

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Holi Vrat Katha Pdf

 

 

 

 

 

 

 

 

होली एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे बहुत उल्लास से मनाया जाता है। इस त्योहार के विषय में एक पौरणिक कथा है जिसका उल्लेख नारद पुराण में प्राप्त होता है। आदिकाल में हिरण्यकश्यप नाम का बहुत पराक्रमी राक्षस था। उसने सभी लोको पर विजय प्राप्त किया था।

 

 

 

अपने मद में अंधे होने के कारण वह भगवान को नहीं मानता था। वह महाबलि दैत्य अपने अनुचरो से कहलवा दिया था कि सभी लोग भगवान की पूजा अर्चना बंद करके सिर्फ हिरण्यकश्यप की पूजा करे। हिरण्यकश्यप की रानी बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की थी। उसने एक पुत्र को जन्म दिया।

 

 

 

शनैः-शनैः वह बालक बढ़ता गया। उसका नाम प्रह्लाद रखा गया। उसके ऊपर उसकी माता का प्रभाव बहुत अधिक था। वह बालक प्रह्लाद विष्णु भक्ति में लीन रहता था। यह बात उसके पिता हिरण्यकश्यप को बहुत ही कष्ट देती थी कि उसका पुत्र विष्णु भक्त कैसे हो गया।

 

 

 

वह अपने पुत्र प्रह्लाद को विष्णु की उपासना से वंचित करने के लिए कई तरह से प्रताड़ित करने लगा लेकिन कोई परिणाम नहीं निकलता देखकर उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद का अंत करने के लिए सहमत कर लिया। होलिका शिवभक्ति करती थी।

 

 

 

उसे शंकर जी से एक ऐसी चादर प्राप्त हुई थी। वह उसे अपने शरीर पर ओढ़कर पावक के मध्य से भी सुरक्षित निकल सकती थी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन से कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर पावक में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद का अंत हो सके। होलिका प्रह्लाद को लेकर अपनी गोद में बैठ गयी।

 

 

 

होलिका को विश्वास था कि शंकर भगवान द्वारा दी गयी चादर ओढ़ने से उसे किसी प्रकार की क्षति नहीं होगी। उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा थी। होलिका ने प्रह्लाद को गोद में लिया फिर भगवान शंकर द्वारा दी गयी चादर ओढ़कर बैठ गयी। सभी लोग पावक प्रज्वलित कर दिए।

 

 

 

लेकिन भगवान विष्णु का भक्त होने से होलिका की चादर प्रह्लाद के ऊपर आकर गिर गयी। प्रह्लाद सुरक्षित बच गया पर होलिका का अंत हो गया। उसी समय से बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष में होली का त्योहार मनाया जाता है।दूसरी कथा के अनुसार मथुरा का राजा कंश बहुत निर्दयी था।

 

 

 

उसे आकाशवाणी हुई थी देवकी के आठवे पुत्र के हाथो उसका अंत होगा। अतः उसने देवकी और वसुदेव को जेल में डाल दिया था। देवकी के आठवे पुत्र के जन्म लेते ही दैवयोग से सारे कार्य सुगम हो गए और वसुदेव उसे बालक को गोकुल में नंद गोप के घर पहुंचा दिए और वहां से एक छोटी कन्या को लेकर वापस आ गए पुनः सब कुछ यथावत हो गया।

 

 

 

देवकी और वसुदेव के हाथो में स्वतः ही बेड़िया लग गयी जेल का फाटक बंद हो गया। कन्या का रुदन सुनकर द्वारपाल ने जाकर कंश को बता दिया कि देवकी ने आठवे पुत्र को जन्म दिया है। कंश प्रसन्न होकर आया और देवकी से उस कन्या को छीन लिया फिर उसे पटकने का प्रयास किया ही था कि वह कन्या योगमाया से आकाश में उड़ गयी और बोली।

 

 

 

तेरा अंत करने वाला गोकुल में आ चुका है। कंश ने पूतना नामक एक राक्षसी को बुलाकर कहा कि आज जो भी संतान कही पर भी उत्पन्न हुई है उन सभी का अंत कर दो। पूतना कई प्रकार के रूप धारण में पारंगत थी। वह सुंदर रूप धारण करके बालकृष्ण के पास गोकुल में गयी और उन्हें स्तनपान कराने के बहाने उनका अंत करना चाहती थी।

 

 

 

लेकिन कृष्ण उसकी चालाकी समझ गए उन्होंने दंड स्वरुप पूतना का अंत कर दिया। उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा थी अतः पूतना वध के उपलक्ष में होली का पर्व मनाया जाने लगा।

 

 

 

 

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