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Homeopathic Practical PDF In Hindi
सिर्फ पढ़ने के लिये
बढ़कर उन्होंने देखा कि यह तो एक पूरा नगर है। इस नगर के द्वार पर जाकर उन्होंने पुकारकर कहा, ‘‘मैं अतिथि हूँ।’’ उसी समय द्वार से सात परम सुन्दरी कन्याएँ अतिथि के स्वागत के लिए निकल आयीं। उन सुन्दरियों ने कहा, ‘‘आइए भगवन्! पधारिए। हम आपका स्वागत करती हैं।’’
महर्षि एक भव्य प्रासाद के अन्दर चले गये। वहाँ उन्हें सामने ही एक वृद्धा बैठी मिली। वह स्वच्छ वस्त्र पहने थी और उसके शरीर पर अनेक तरह के आभूषण थे।महर्षि को देखते ही वह वृद्धा उठकर खड़ी हो गयी और उनका समुचित स्वागत करके बैठ गयी। महर्षि भी वहीं पास में बैठ गये।
उन्होंने उन सुन्दरी कन्याओं की तरफ बढ़कर कहा, ‘‘हे कन्याओ! तुममें से जो बुद्धिमती और धैर्यवती हो वही यहाँ रहे, बाकी सब यहाँ से चली जाएँ।’’ एक को छोड़कर सभी कन्याएँ वहाँ से चली गयीं। वृद्धा वहीं बैठी रही। रात होने पर महर्षि के लिए एक स्वस्थ शैया की व्यवस्था कर दी गयी।
जब महर्षि सोने लगे तो उन्होंने उस वृद्धा से भी जाकर अपनी शैया पर सोने के लिए कहा। उनके कहने पर वृद्धा अपनी शैया पर जाकर लेट गयी। रात्रि का एक ही प्रहर बीता होगा कि वृद्धा जाड़े का बहाना करती हुई काँपती हुई महर्षि की शैया पर आ लेटी और कामातुर होकर अष्टावक्र के शरीर का आलिंगन करने लगी।
यह देखकर महर्षि काष्ठ के समान कठोर और निर्विकार पड़े रहे। अष्टावक्र को इस तरह अविचलित देखकर वृद्धा ने कहा, ‘‘हे भगवन्! पुरुष के शरीर का स्पर्श करने मात्र से ही स्त्री के अंग-अंग में कामोद्दीपन हो उठता है। स्त्री उस समय किसी तरह अपने मन को अपने वश में नहीं रख सकती।
यही उसका स्वभाव है। इसलिए आपके शरीर से स्पर्श के कारण मैं काम-पीड़ा में जल रही हूँ। अब आप मेरे साथ रमण करके मेरी इच्छा को पूर्ण कीजिए। ‘‘हे ऋषि! मैं जीवन भर आपकी कृतज्ञ रहूँगी। यही आपकी तपस्या का अभीष्ट फल है। मेरी यह सारी सम्पत्ति आपकी ही है।
आप यहीं मेरे पास रहिए। देखिए, हम यहाँ लौकिक और अलौकिक अनेक प्रकार के सुख भोगते हुए रहेंगे। “हे नाथ! अब इस तरह मेरा तिरस्कार न कीजिए क्योंकि इससे मेरी आत्मा को बड़ा कष्ट पहुँचेगा। पुरुष-संसर्ग से बढ़कर स्त्रियों के लिए श्रेष्ठ सुख नहीं है।
काम से पीड़ित होकर स्त्रियाँ स्वेच्छाचारिणी हो जाती हैं। उस समय तपी हुई बालू पर या कठोर शीत में विचरण करने से भी उनको तनिक भी कष्ट नहीं होता। आप किसी भी तरह मेरी अतृप्त कामना को तृप्त कीजिए।’’ वृद्धा की प्रार्थना सुनकर अष्टावक्र बोले, ‘‘हे देवी! मैं एक तपस्वी हूँ और बचपन से अभी तक पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी रहा हूँ।
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पुस्तक का नाम | Homeopathic Practical PDF In Hindi |
पुस्तक के लेखक | एम. भट्टाचार्य |
फॉर्मेट | |
साइज | 37.9 Mb |
पृष्ठ | 1328 |
श्रेणी | आयुर्वेद |
भाषा | हिंदी |
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