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Indrajal Comics Hindi Pdf Free Download
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मंत्री और घोड़ो की यह दशा देखकर निषाद राज भी विषाद के वश हो गया। तब उसने अपने चार उत्तम सेवक बुलाकर सारथी के साथ दिए।
चौपाई का अर्थ-
1- निषाद राज सारथी सुमंत्र को पहुंचाकर लौटा। उसके विरह और दुःख का वर्णन नहीं किया जा सकता है, वह चारो निषाद रथ लेकर अवध को चले। घोड़ो और सुमंत्र को देखकर उन्हें भी क्षण-क्षण भर में विषाद उत्पन्न हो जाता था।
2- व्याकुल और दुखी और दीन होकर सुमंत्र जी सोचते है कि श्री रघुवीर के बिना जीवन को धिक्कार है। आखिर यह अधम शरीर तो रहने वाला नहीं है। अभी श्री राम के बिछुड़ते इसने समाप्त होकर यश क्यों नहीं लिया।
3- और यह प्राण भी अपयश और पाप का भाजन हो गया है, अब यह क्यों नहीं कूच कर जाते अथवा इस शरीर से क्यों नहीं निकल जाते? हाय नीच मन! तू बड़ा अच्छा मौका चूक गया। अब भी हृदय के टुकड़े-टुकड़े नहीं हो रहे है।
4- सुमंत्र हाथ मलते हुए और सिर पीटते हुए पछताते है। मानो किसी कंजूस का धन लूट गया हो। वह इस प्रकार से चल रहे है मानो कोई शूरवीर बनकर युद्ध से पलायन कर गया हो।
144- दोहा का अर्थ-
जैसे कोई विवेकशील, वेद का ज्ञाता, साधु सम्मत आचरण वाला और उत्तम कुलीन ब्राह्मण धोखे से मदिरा पीकर पछता रहा है। उसी प्रकार मंत्री सुमंत्र भी पछता रहे है।
चौपाई का अर्थ-
1-जैसे किसी उत्तम कुल की स्त्री को जो मन, वचन, कर्म से ही पति परायण रहती है और पतिव्रता कहलाती, उसे भाग्यवश अपने पति को छोड़कर अलग रहना पड़े तो उसके हृदय में उस समय जैसा भयानक संताप होता है वैसा ही संताप मंत्री के ह्रदय में हो रहा है।
2- नेत्र में जल भर रहा है, दृष्टि मंद हो गई, कानो से सुनाई नहीं पड़ रहा है। व्याकुल हुई बुद्धि काम नहीं करती है, ओठ सूख गए है, मुंह में लाटी लग गयी है। इतना सब कुछ मृत्यु के लक्षण होने पर भी प्राण नहीं निकल रहे है क्योंकि हृदय में अवधि रूपी किवाड़ लगे है। अर्थात चौदह वर्ष के बाद भगवान फिर से मिलेंगे यही आशा प्राण निकलने में बाधा बन गई है।
3- सुमंत्र जी के मुख का रंग बदल गया है जो देखने लायक नहीं है। ऐसा मालूम होता है कि इन्होने माता-पिता को जंगल में छोड़कर आये हो। उनके मन में राम के वियोग की हानि महान ग्लानि (पीड़ा) हो रही है। जैसे कोई मनुष्य नरक में जाता हुआ सोच रहा है।
4- उनके मुंह से वचन नहीं निकल रहे है, हृदय में पछता रहे है कि मैं अयोध्या जाकर क्या देखूँगा? श्री राम जी से शून्य रथ को जो भी देखेगा, वह भी मुझे देखने में लज्जा (संकोच) करेगा अर्थात मेरा मुख नहीं देखना चाहेगा।
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