जया एकादशी व्रत कथा Pdf | Jaya Ekadashi Vrat Katha pdf

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Jaya Ekadashi Vrat Katha pdf

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

जया एकादशी से पूर्व व्रत करने वाले को दशमी के दिन से ही एक समय सत्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।

 

 

व्रत रखने वाले के लिए संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य होता है।

 

 

वचन मन और व्यवहार से भी ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक होना चाहिए।

 

 

जया एकादशी में पूर्ण रूप से श्रद्धा भाव रखते हुए भगवान श्री कृष्ण की आराधना करनी चाहिए।

 

 

जया एकादशी के व्रत से व्यक्ति के सभी पातक नष्ट हो जाते है तथा मान्यता है कि जया एकादशी का व्रत करने वालो को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

 

जो व्यक्ति जया एकादशी का व्रत करता है उसे मृत्यु के पश्चात भूत, प्रेत, पिशाच की योनियों में नहीं जाना पड़ता है।

 

 

जया एकादशी के व्रत से शुभ फल की प्राप्ति होती है। यह माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।

 

 

जया एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के ऊपर संसार के पालन कर्ता भगवान श्री विष्णु की कृपा प्राप्त होती है तथा उसके सभी पाप नष्ट हो जाते है।

 

 

 

जया एकादशी व्रत कथा

 

 

 

एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगणो के साथ संत, दिव्य पुरुष सभी लोग उपस्थित थे वहां उत्सव का आयोजन था। गंधर्व इंद्र की सभा में गायन कर रहे थे। गंधर्व युवतियां अपने नृत्य कला का प्रदर्शन कर रही थी। माल्यवान नाम का एक गंधर्व बहुत ही सुरीली आवाज में गायन के लिए प्रसिद्ध था उसका रूप भी अति सुंदर था।

 

 

 

सभी नृत्यांगनाओं में पुष्पवती नामक एक गंधर्व कन्या नृत्य कला में पारंगत थी। माल्यवान और पुष्पवती एक दूसरे को देखकर प्रेमासक्त हो गए जिससे नृत्य और गायन में व्यवधान उत्पन्न हो गया। उन दोनों के इस नृत्य से देवराज इंद्र ने उन्हें मृत्यु लोक में पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

 

 

 

गन्धर्वो की पिशाच से मुक्ति

 

 

 

समयोपरांत पुष्पवती और माल्यवान नामक दोनों गंधर्व मृत्युलोक में पिशाच योनि में जन्म प्राप्त करते है। वह दोनों पिशाच योनि से बहुत व्यथित थे। एक समय माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था। वह दोनों अपने कृत्य के लिए भगवान से क्षमा याचना करते हुए एक समय फलाहार किया।

 

 

 

अनजान होने पर भी वह दोनों एकादशी के व्रत के दिन एक समय फलाहार करके भगवान से अपने पाप क्षमा करने की प्रार्थना किया। जया एकादशी होने के कारण भगवान श्री विष्णु ने उन दोनों की प्रार्थना स्वीकार किया। सुबह होते ही उन दोनों की मृत्यु हो गयी।

 

 

 

जया एकादशी के प्रभाव से उन दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति प्राप्त हो गयी वह दोनों पुनः स्वर्ग लोक चले गए। एकादशी में श्री विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा होती है तथा व्रत करने वाले को संकल्प के साथ यथा शक्ति धूप, दीप, नैवेद्य, फल और पंचामृत से भगवान श्री विष्णु के श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।

 

 

 

रात्रि जागरण करते हुए श्री हरि के नाम का गुणगान करना चाहिए। व्रत रखने वाले व्यक्ति को एकादशी के पूर्व दशमी को दिन में एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए तथा शारीरिक और मानसिक शुद्धता का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।

 

 

 

 

जया एकादशी व्रत कथा Pdf Download

 

 

 

Jaya Ekadashi Vrat Katha pdf

 

 

 

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