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Jeet Aapki Book Pdf Download
पुस्तक का नाम | Jeet Aapki Book Pdf |
पुस्तक के लेखक | शिव खेरा |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
साइज | 116 Mb |
पृष्ठ | 359 |
श्रेणी | प्रेरणादायक |
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सिर्फ पढ़ने के लिए
माता को सुख देने वाले बाल विनोद करते हुए श्री रघुनाथ जी आंगन में विचर रहे है। मरकत मणि के समान हरिताभ श्याम और कोमल शरीर है। प्रत्येक अंगो में बहुत से कामदेवों की शोभा है। नवीन कमल के समान कोमल चरण है। सुंदर अंगुलियां है और नख की ज्योति से चन्द्रमा की कांति मलिन हो रही है।
तलवे में अंकुश, ध्वजा और कमल के सुंदर चिन्ह है। चरणों में मधुर शब्द करने वाले सुंदर नूपुर है मणियों और रत्नो से जड़ी हुई स्वर्ण करधनी का शब्द सुहावना लग रहा है। उदर पर सुंदर त्रिवली है, नाभि सुंदर और गहरी है। विशाल वक्षःस्थल पर अनेक प्रकार के बाल वस्त्र और आभूषण सुशोभित है।
कोमल हथेलियां, नख और अंगुलियां मन को हरने वाले है और विशाल भुजाओ पर सुंदर आभूषण है, बालसिंह के जैसे कंधे और शंख के समान तीन रेखाओ से युक्त गला है। सुंदर ठुड्डी है और मुख तो छवि की सीमा ही है। कल बल तोतले वचन है मनोहर मुलायम ओठ है।
उज्वल सुंदर और छोटी-छोटी ऊपर और नीचे दो-दो दन्तुलियाँ है। सुंदर गाल, मनोहर नासिका और सब सुख को देने वाली चन्द्रमा की किरणों के समान मुस्कान है। नीले कमल के समान नयन, जन्म-मृत्यु के बंधन से छुड़ाने वाले है। ललाट पर गोरोचन का तिलक सुशोभित है।
भौहे टेढ़ी है, कान सम और सुंदर है। काले और घुंघराले केश की छवि उत्तम है। पीली और महीन झंगुली शरीर पर शोभा दे रही है। उनकी किलकारी और चितवन मुझे बहुत ही प्रिय लगती है। राजा दशरथ जी के आंगन में विहार करने वाले रूप की राशि श्री राम जी अपनी परछाई देखकर नाचते है।
और मुझसे बहुत प्रकार के खेल करते है। किलकारी मारते हुए जब वह मुझे पकड़ने दौड़ते है मैं भाग जाता हूँ। तब मुझे खाने का सामान पुआ दिखलाते है। पुल बांधकर जिस प्रकार वानरों की सेना समुद्र के पार उतरी और जिस प्रकार से वीर श्रेष्ठ बालि पुत्र अंगद दूत बनकर गए वह सब कहा फिर राक्षसों और वानरों के युद्ध का अनेक प्रकार से वर्णन किया फिर कुम्भकर्ण, मेघनाद के बल, पुरुषार्थ और संहार की कथा कही।
नाना प्रकार के राक्षस समूहों का अंत तथा श्री रघुनाथ जी और रावण के अनेक प्रकार के युद्ध का वर्णन किया। रावण का अंत, मंदोदरी का शोक, विभीषण का राज्याभिषेक और देवताओ का शोक रहित होना कहकर फिर सीता जी और रघुनाथ जी का मिलाप कहा।
जिस प्रकार देवताओ ने हाथ जोड़कर स्तुति किया और फिर जैसे वानरों समेत पुष्पक विमान पर चढ़कर कृपाधाम प्रभु अवधपुरी को चले वह कहा फिर जिस प्रकार अपने नगर अयोध्या में आये वह सब उज्वल चरित्र काकभुशुण्डि जी ने विस्तार पूर्वक वर्णन किए फिर उन्होंने श्री राम जी का राज्याभिषेक कहा।
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