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Jhansi Ki Rani Laxmibai PDF
चैत लग गया। वसन्त ने पत्थरों और कङ्कडों तक पर फुल-वाड़ियाँ पसार दीं। टेसू के फूलों ने क्षितिज को सजा दिया और धरती पर रङ्ग-बिरंगे चौक पुर दिये। समीर और प्रभञ्जन में भी महक समा गई। रात और दिन संगीत में पुलकित हो उठे। उस रात नटकशाला में ‘रत्नावली’ का अभिनय था हिन्दी श्रनुवाद द्वारा।
मोतीवाई को रत्नावली का रूपक करना था। निर्देशन स्वयं राजा का। गायन-वादन और नृत्य बड़े उस्तादों के दिग्दर्शन में तैयार हुये थे। दर्शक सब निमन्त्रण पर आये थे। राजा गङ्गाधरराव सबसे आगे बैठे थे । उनकी आयु इस समय जीवन के लगभग बीचोंबीच थी। सुन्दर, स्वस्थ और राजसी।
पीछे परन्तु पास ही उनके सङ्गी खुदाबख्श, दीवान रघुनाथसिंह, राव दूल्हाजू, दीवान जवाहरसिह इत्यादि दाये-वायें बैठे हुये थे। सब नौजवान। स्वास्थ्य और यौवन की उमङ्गों में भरे हुये। मोतीबाई के छलकते-मदमाते यौवन और सौन्दर्यं को देखने के लिये आतुर।
पर्दा खुला। सूत्रधार का मङ्गल गान हुआ। कुछ समय बाद रत्नावली की भूमिका में मोतीबाई इठलाती हुइ रङ्ग-मञ्च पर आई। खुदाबख्श के मुँह से यकायक ‘वाह !’ निकल पड़ा। मोतीबाई ने खुदाबख्श को देखो। खुदाबख्श ने आंखें गड़ाई। जब जब मोतीबाई रङ्गमञ्च पर जिस जिस दृश्य में सामने आई उसने दशकों पर से दृष्टि को समेटकर खुदाबख्श पर केन्द्रित किया। डाउनलोड करने के लिए नीचे दी गयी बटन पर क्लिक करे।
Jhansi Ki Rani Laxmibai PDF Download
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