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Kaal Bhairav Shabar Mantra Pdf Download


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सिर्फ पढ़ने के लिये
दूसरे नाम अर्थात ॐ महेश्वराय नमः का उच्चारण करके लिंग निर्माण करे। फि ॐ शंभये नमः बोलकर उस पार्थिव लिंग की प्रतिष्ठा करे। तत्पश्चात ॐ शूलपाणये नमः कहकर उस पार्थिव लिंग में भगवान शंकर का आवाहन करे। ॐ पिनाकश्रवे नमः कहकर उस शिव लिंग को नहलाये।
फिर ॐ पशुपतये नमः कहकर क्षमा प्रार्थना करे और अंत में ॐ महादेवाय नमः कहकर आराध्यदेव का विसर्जन कर दे। प्रत्येक नाम के आदि में ॐकार और अंत में चतुर्थी विभक्ति के साथ नमः पद लगाकर बड़े आनंद और भक्ति भाव से पूजन संबंधी सारे कार्य करने चाहिए।
षड़क्षर मंत्र से अंगन्यास और करन्वास की विधि भली भांति संपन्न करके फिर नीचे लिखे अनुसार ध्यान करे। जो कैलास पर्वत पर एक सुंदर सिंहासन के मध्य भाग में विराजमान है जिनके वामभाग में भगवती उमा उनसे सटकर बैठी हुई है।
सनक सनन्दन आदि भक्तजन जिनकी पूजा कर रहे है तथा जो भक्तो के दुःख रूपी दावानल को नष्ट कर देने वाले अप्रमेय शक्तिशाली ईश्वर है। उन विश्वविभूषण भगवान शिव का चिंतन करना चाहिए। भगवान महेश्वर का हर रोज इस प्रकार ध्यान करे उनकी अंग कांति चांदी के पर्वत की भांति गौर है।
वे अपने मस्तक पर मनोहर चन्द्रमा का मुक्त धारण करते है। रत्नो के आभूषण धारण करने से उनका श्री अंग और भी उद्धासित हो उठा है। उनके चार हाथो में क्रमशः मृगमुद्रा, अभयमुद्रा, परशु और वर सुशोभित है। वे हमेशा प्रसन्न रहते है। कमल के आसन पर बैठे है और देवता लोग चारो ओर खड़े होकर उनकी स्तुति कर रहे है।
उन्होंने वस्त्र की जगह व्याघ्रचर्म धारण कर रखा है। वे इस विश्व के आदि है बीज रूप है तथा सबका समस्त भय हर लेने वाले है। उनके पांच मुख है और प्रत्येक मुखमंडल में तीन-तीन नेत्र है। इस प्रकार ध्यान तथा उत्तम पार्थिव लिंग का पूजन करके गुरु के दिए हुए पंचाक्षर मंत्र का विधि पूर्वक जप करे।
विप्रवरो! विद्वान पुरुष को चाहिए कि वह देवेश्वर शिव को प्रणाम करके अनेक प्रकार की स्तुतियों द्वारा उनका स्तवन करे तथा शतरुद्रिय का पाठ करे। तत्पश्चात अंजलि में अक्षत और फूल लेकर उत्तम भक्ति भाव से नामांकित मंत्रो को पढ़ते हुए प्रेम और प्रसन्नता के साथ भगवान शंकर से इस प्रकार प्रार्थना करे।
सबको सुख देने वाले कृपानिधान भूतनाथ शिव! मैं आपका हूँ। आपके गुणों में ही मेरे प्राण बसते है अथवा आपके गुण ही मेरे प्राण मेरे जीवन सर्वस्व है। मेरा चित्त हमेशा आपके ही चिंतन में लगा हुआ है। यह जानकर मुझपर प्रसन्न होइए। कृपा कीजिए।
शंकर! मैंने अनजान मे अथवा जानबूझकर यदि कभी आपका जप और पूजन आदि किया हो तो आपकी कृपा से वह सफल हो जाय। गौरीनाथ! मैं आधुनिक युग का महान पापी हूँ पतित हूँ और आप सदा से ही परम महान पतितपावन है। इस बात का विचार करके आप जैसा चाहे वैसा करे।
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