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Kaal Vigyan Pustak Pdf 

 

 

 

 

 

 

 

सिर्फ पढ़ने के लिए

 

 

 

 

कृपा के धाम श्री राम जी ने हंसकर कहा – दोनों ही स्थितियों में उसे ले आओ। तब अंगद और हनुमान सहित सुग्रीव जी “कृपालु श्री राम जी की जय हो” कहते हुए चले।

 

 

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

विभीषण जी को आदर सहित आगे करके वानर फिर वहां चले जहां करुणा करने वाले श्री रघुनाथ जी थे। लोचन को आनंद देने वाले अत्यंत सुखद दोनों भाइयो को विभीषण जी ने दूर से ही देखा।

 

 

 

फिर शोभा के धाम श्री राम जी को देखकर वह पलक झपकाना भूल गए और ठठककर एकटक देखते ही रह गए। भगवान की विशाल भुजाये है, लाल कमल के समान नेत्र है और शरणागत के भय का नाश करने वाला सांवला शरीर है।

 

 

 

सिंह के कंधे जैसे उनके कंधे है, विशाल वक्षःस्थल है जो अत्यंत शोभा प्रदान कर रहे है। अनेक कामदेव के मन को मोहित करने वाला मुख है।

 

 

 

भगवान के स्वरुप को देखकर विभीषण जी के नयन में जल भर आया और शरीर अत्यंत ही पुलकित हो गया। फिर मन में धीरज रखकर उन्होंने कोमल वचन कहे।

 

 

 

 

हे नाथ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ। हे देवताओ के रक्षक! मेरा जन्म तो राक्षस कुल में हुआ है। मेरा तामसी शरीर है, स्वभाव से ही मुझे पाप प्रिय है जैसे उल्लू को अंधकार पर सहज स्नेह होता है।

 

 

 

 

45- दोहा का अर्थ-

 

 

 

मैं आपका सुयश सुनकर आया हूँ कि प्रभु भव के भय का नाश करने वाले है। हे दुखियो के दुःख दूर करने वाले और शरणागत को सुख देने वाले श्री रघुवीर! मेरी रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए।

 

 

 

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