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Kaalchakra Ke Rakshak Pdf Download



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सिर्फ पढ़ने के लिए
समय बीतते देर नहीं लगती। विपिन और डा. निशा की झोली भगवान ने खुशियों से भर दिया था। उनके भी घर एक नन्हा मेहमान का आगमन हो गया था। सरिता बहुत खुश हो रही थी और उस नन्हे के पास हमेशा ही बैठी रहती थी।
विपिन और निशा दोनों ने मिलकर उसका नाम रोशन रखा था क्योंकि निशा और विपिन की जिंदगी के अंधियारे में वह उजाले की एक किरण बनकर आया था और उसके आने से ही उनका जीवन पूर्ण होकर रोशन हो उठा था। धीरे-धीरे एक महीना हो गया। डा. निशा अवकाश पर थी।
उनका सरोज क्लिनिक बंद पड़ा था। दीपक सुबह और शाम जाकर वहां सफाई कर देता था। सरिता निशा के लिए बहुत ही शुभ साबित हो रही थी। मनुष्य प्रकृति द्वारा दी हुई जिम्मेदारी से पलायन नहीं कर सकता है उसे निभाना ही पड़ता है। तभी वह पूर्णता की तरफ अग्रसर हो सकता है।
दो महीने के बाद डा. निशा भारती अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर पहुंच गयी। सभी कर्मचारी उन्हें शुभकामनाये देने लगे। निशा अस्पताल में बहुत अच्छी तरह से सभी मरीजों की देख-भाल करती थी। उनकी इसी सेवा को देखते हुए उन्हें अस्पताल के इंचार्ज का कार्य सौप दिया गया था।
एक सप्ताह के बाद ही उन्हें इंचार्ज का नियुक्ति पत्र प्राप्त हो गया था। रोशन के आने से निशा के जीवन की प्रगति बढ़ती जा रही थी। धीरे-धीरे सरिता बड़ी हो रही थी। निशा सरिता का बहुत ध्यान रखती थी। अब निशा ने सरिता का नाम स्कूल मे लिखवा दिया था।
स्कूल से आने के बाद सरिता रोशन के साथ ही खेलती रहती थी। निशा शाम को अपने क्लिनिक में सरिता और रोशन दोनों को साथ ले जाती थी। सरिता और रोशन के लिए जो भी खिलौने तथा खाने पीने की सामान रहती थी उसे रोशन अपने साथ के अन्य बच्चो को दे देता था।
गरीब घर के बच्चे खाने की सामान तथा खिलौने मिल जाने से बहुत ही खुश होते थे। कोमल सरिता और रोशन को मना करती कि इन बच्चो को अपना सामान न दिया करे जबकि वह निशा के पास से पहले ही जिल्लत झेल चुकी थी। उसके मन में उन बच्चो के प्रति कोई दुर्भावना नहीं थी।
पैसे की कीमत समझकर ही खिलौना तथा बिस्किट इत्यादि ही देने से मना करती थी क्योंकि दुबारा सरिता और रोशन के लिए खिलौना खरीदने में पैसा खर्च करना पड़ता था। एक दिन निशा भारती ने देख लिया कि सरिता और रोशन अपने सब खिलौने और अपने खाने का सामान अपने पास आये हुए गरीब बच्चो को दे दिए तभी कोमल उन्हें आकर मना करने लगी।
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