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Kafan Premchand Pdf Download
पुस्तक का नाम | Kafan Premchand Pdf |
पुस्तक के लेखक | प्रेमचंद |
साइज | 1 Mb |
पृष्ठ | 6 |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | कहानी |
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सिर्फ पढ़ने के लिए
इतना कहते हुए मिलन ज्योति स्वरूपा का रूप ग्रहण कर लिया। रानी परी सुलेखा और सुमन ने उसे महारानी कुमुद के पास चलने के लिए कहा। सुमन परी के साथ ज्योति स्वरूपा भी महारानी कुमुद के पास जाने के लिए तैयार थी। रानी परी सुलेखा उन दोनों को साथ लेकर महारानी कुमुद के समक्ष उपस्थित हो गयी।
सभी लोगो ने महारानी कुमुद के स्वास्थ्य के लिए मंगल कामना किया। महारानी कुमुद बोली – मैं अचेतन अवस्था में पृथ्वी पर चली गयी थी। एक सरोवर पर मैंने एक आम का वृक्ष देखा। उसपर स्वर्ण आम के फल लगे हुए थे। वहां का दृश्य बहुत ही मनोरम था।
क्या तुम लोगो में से कोई भी हमे वह स्वर्ण आम लाकर दे सकता है? महारानी कुमुद की बात सुनकर रानी सुलेखा और सुमन एक दूसरे की तरफ देखने लगी। उनके चेहरे का रंगत इतना बताने के लिए पर्याप्त थी कि वह दोनों महारानी की इच्छा को पूर्ण करने में समर्थ नहीं है।
जबकि ज्योति स्वरूपा किन्नर वहां चुप खड़ी थी। उसने महारानी कुमुद से कहा – क्षमा करना महारानी! बिना स्वार्थ के कोई कार्य नहीं होता है। महारानी कुमुद बोली – लेकिन ज्योति स्वरूपा! तुम इतना समझो निःस्वार्थ किए गए कार्य का परिणाम सुखद और वृहद होता है।
आज शाम को दरबार में हम सभी परियो और किन्नरों से कहेंगे कि स्वर्ण आम लाने के लिए अपनी सामर्थ्य का समुचित उपयोग करते हुए प्रयास करे। शाम को परियो का दरबार लगा हुआ था। परियो का समूह और किन्नरों दरबार में यथा योग्य आसन ग्रहण कर चुके थे।
महारानी कुमुद के आने की प्रतीक्षा थी। रानी परी सुलेखा और महारानी की सभी परियो में श्रेष्ठ परी सुमन के साथ महारानी कुमुद दरबार की तरफ आ रही थी। महारानी जैसे ही दरबार में पहुंची वहां उपस्थित सभी परियो और किन्नरों का समूह उठकर महारानी कुमुद और रानी सुलेखा के साथ सुमन परी का भी अभिवादन करने लगा।
अभिवादन के पश्चात् सभी के आसन ग्रहण करने के बाद महारानी ने उपस्थित परी समूह और किन्नरों से कहा – विगत दिनों मैं मस्तक के दर्द सी पीड़ित थी। दर्द समाप्त करने में किसी का प्रयास सफल नहीं हो सका लेकिन ज्योति स्वरूपा किन्नर हमारे मस्तक के दर्द को समाप्त करने में सफलता प्राप्त किया।
उस दौरान अपने अचेतन अवस्था में धरती पर चली गयी एक अज्ञात जगह पर सरोवर के किनारे मैंने एक आम का वृक्ष देखा उसके ऊपर स्वर्ण आम के फल लगे हुए थे। महारानी कुमुद की यह बात सुनकर वहां उपस्थित सभी दरबारियों की धड़कन तीव्र हो गयी और सभी लोग अपने मन में यह विचार करने लगे कही महारानी कुमुद वही स्वर्ण आम लाने के लिए न कह बैठे।
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