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मिलन अंगूठी के प्रभाव से उन दोनों की बातें समझ गया और बोला – अगर हमारे ऊपर हमला करने का प्रयास करोगे तो यहां के सभी लोगो का हाल तुम्हारे जैसा होगा। मिलन की बातें अंगूठी के प्रभाव से जल दैत्य और मत्स्य कन्या की समझ में आने लगी थी।

 

 

 

 

तभी दूसरी मत्स्य कन्या वहां आयी और कंचन से बोली – इस मानव को मत्स्य रानी ने आदर के साथ बुलाया है। दोनों मत्स्य कन्या मिलन को साथ लेकर रानी के दरबार में पहुँच गयी जल दैत्य उनके पीछे था। मत्स्य रानी ने एक पत्थर उठाकर अपने हथेली में रखा और मिलन से पूछी – तुम यहां कैसे पहुँच आये हो?

 

 

 

 

मिलन बोला – मैं सुमन परी की तलाश में प्रबोधनंद महाराज के पास जाना चाहता था। स्वर्ण पर्वत पर पहुँचने के बाद मुझे प्यास लगी मैं झरने में पानी पीने चला गया उसी समय मुझे किसी ने पकड़कर खींच लिया मैं पानी के अंदर चला गया और बहते हुए यहां तक आ पहुंचा।

 

 

 

 

मिलन मत्स्य रानी से बोला – आप हमारी भाषा समझ रही है क्या? मत्स्य रानी बोली – हमारी हथेली पर जो पत्थर है उसकी सहायता से मैं हर प्रकार भाषा समझ जाती हूँ। तुम्हारी कहानी बहुत अनोखी है। तुम आज हमारे खास मेहमान हो दो दिन हमे अपनी खातिरदारी का मौका प्रदान करो।

 

 

 

 

मैं तीसरे दिन तुम्हे प्रबोधनंद महाराज के पास सुरक्षित पहुंचा दूंगी। रानी ने अपने सभी मत्स्य कन्याओ को मिलन की खातिरदारी में लगा दिया। मिलन सोच रहा था कि किस्मत ने उसे किस प्रकार यहां पाताल लोक में पहुंचा दिया पुनीत महाराज का आशीर्वाद था जो उसे हर प्रकार की विपत्ति से सुरक्षित रखे हुए था।

 

 

 

 

मत्स्य रानी अपने कहने के अनुसार प्रबोधनंद महाराज के पास पहुँचाने के लिए तैयार थी। मत्स्य रानी की खातिरदारी से मिलन बहुत प्रसन्न था। मत्स्य रानी ने जल दैत्य को आज्ञा दिया मिलन को प्रबोध महाराज के पास सुरक्षित पहुंचा दो। मिलन को मत्स्य रानी ने एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा दिया जो बहुत ही चमकदार था।

 

 

 

 

उस चमकदार पत्थर के टुकड़े में बहुत सारी अद्भुत शक्तियां थी जो मुसीबत के समय मिलन की सहायता कर सकती थी। रानी से विदा लेकर मिलन जल दैत्य के साथ प्रबोध महाराज के पास मिलने के लिए चल पड़ा। मत्स्य रानी सोचने लगी क्या ऐसे भी मनुष्य है जो अपने उच्च लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अथक प्रयास करने के लिए सदैव तैयार रहते है?

 

 

 

 

परमेश्वर भी ऐसे लोगो की सहायता किसी न किसी रूप में अवश्य करता है। जब दैत्य मिलन को लेकर प्रबोध महाराज के आश्रम के समीप छोड़ दिया और बोला – मैं इस झील के अंदर नहीं जा सकता हूँ। इस झील में कोई भी प्रवेश करता है तो पत्थर बन जाता है जो बड़े-बड़े पत्थर दिख रहे है वह सभी अनजान जीव जंतु अथवा मनुष्यो के है।

 

 

 

 

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