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Kamal Netra Stotra Pdf Download
पुस्तक का नाम | Kamal Netra Stotra Pdf |
पुस्तक के लेखक | |
साइज | 18.2 Mb |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
पृष्ठ | 36 |
श्रेणी |


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सिर्फ पढ़ने के लिये
जो ज्ञानियों में और भक्तो में शिरोमणि है एवं त्रिभुवन पति भगवान के वाहन है उन गरुण को भी माया ने मोह लिया। फिर भी नीच मनुष्य मूर्खता वश घमंड किया करते है। यह माया जब शिव जी और ब्रह्मा जी को भी मोह लेती है तब दूसरा बेचारा क्या चीज है? जी में ऐसा समझकर ही मुनि लोग उस माया के स्वामी भगवान का भजन करते है।
गरुण जी वहां गए जहां निर्वाध बुद्धि और पूर्ण भक्ति वाले काकभुशुण्डि जी रहते थे। उस पर्वत को देखकर उनका मन प्रसन्न हो गया और उसके दर्शन से ही सब माया, मोह, सोच जाता रहा। तालाब में सना और जलपान करके वह प्रसन्न चित्त से वट वृक्ष के नीचे गए।
वहां श्री राम जी के चरित्र सुनने के लिए बूढ़े-बूढ़े पक्षी आये हुए थे। भुशुण्डि जी कथा आरंभ करना ही चाहते थे कि उसी समय पक्षीराज गरुण जी वहां जा पहुंचे। पक्षियों के राजा गरुण जी को आते देखकर काकभुशुण्डि जी सहित सारा पक्षी समाज हर्षित हो गया।
उन्होंने पक्षीराज गरुण जी का बहुत ही आदर सत्कार किया और कुशल पूछकर बैठने के लिए सुंदर आसन दिया। फिर प्रेम सहित पूजा करके काकभुशुण्डि जी मधुर वचन बोले। हे नाथ! हे पक्षीराज! आपके दर्शन से मैं कृतार्थ हो गया। आप जो आज्ञा दे मैं अब वही करूँ। हे प्रभो! आप किस कार्य के लिए आये है? पक्षीराज गरुण जी ने कोमल वचन कहे – आप तो सदा ही कृतार्थ रूप है जिनकी बड़ाई स्वयं महादेव जी ने अपने श्री मुख से की है।
हे तात! सुनिए, मैं जिस कार्य से यहां आया था वह सब कार्य तो यहां आते ही पूरा हो गया। फिर आपके दर्शन से भी प्राप्त हो गए। आपका परम पवित्र आश्रम देखकर ही मेरा मोह, संदेह और अनेक प्रकार के सब भ्रम जाते रहे। अब हे तात! आप मुझे श्री राम जी की अत्यंत परम पवित्र करने वाली सदा सुख देने वाली और दुःख समूह का नाश करने वाली कथा आदर सहित सुनाइए।
हे प्रभो! मैं आपसे बार-बार यही विनती करता हूँ। गरुण जी का विनम्र, सरल, सुंदर, प्रेम युक्त, सुखप्रद और अत्यंत पवित्र वाणी सुनते ही काकभुशुण्डि जी के मन में परम उत्साह हुआ और वह श्री रघुनाथ जी के गुणों की कथा कहने लगे। हे भवानी! पहले तो उन्होंने बड़े ही प्रेम से रामचरित मानस सरोवर का रूपक का समझाकर कहा।
फिर नारद जी का अपार मोह और फिर रावण का अवतार कहा। फिर प्रभु के अवतार की कथा का वर्णन किया। तदनन्तर मन लगाकर श्री राम जी की बाल लीलाये कही। मन में परम उत्साह भरकर अनेक प्रकार की बाल लीलाये कहकर फिर ऋषि विश्वामित्र जी का अयोध्या आना और श्री रघुवीर जी का विवाह वर्णन किया।
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