कर्मभूमि उपन्यास pdf | Karmbhumi Upanyas Pdf

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इस पुस्तक के बारे में——

 

 

 

स्कूल से लौटकर अमरकान्त नियमानुसार अपनी छोटी कोठरी में जाकर चरखे पर बैठ गया। उस विशाल भवन मे जहां बारात ठहर सकती थी उसने अपने लिए यही छोटी-सी कोठरी पसंद की थी। इधर कई महीने से उसने दो घंटे रोज सूत कातने की प्रितज्ञा कर ली थी और पिता के विरोध करने पर भी उसे निभाए जाता था।

 

 

 

 

मकान था तो बहुत बड़ा मगर निवािसयों की रक्षा के लिए उतना उपयुक्त न था, जितना धान की रक्षा के लिए। नीचे के तल्ले में कई बड़े-बड़े कमरे थे जो गोदाम के लिए बहुत अनुकूल थे। हवा और प्रकाश का कही रास्ता नहीं। जिस रास्ते से हवा और प्रकाश आ सकता है, उसी रास्ते से चोर भी तो आ सकता है।

 

 

 

 

चोर की शंका उसकी एक-एक ईट से टपकती थी। ऊपर के दोनों तल्ले हवादार और खुले हुए थे। भोजन नीचे बनता था। सोना-बैठना ऊपर होता था। सामने सड़क पर दो कमरे थे। एक में लालाजी बैठते थे दूसरे में मुनीम। कमरों के आगे एक सायबान था। जिसमें गाय बंधाती थी।

 

 

 

 

लालाजी पक्के गोभक्त थे। अमरकान्त सूत कातने में मग्न था कि उसकी छोटी बहन नैना आकर बोली – क्या हुआ भैया, फीस जमा हुई या नहीं, मेरे पास बीस रुपये है यह ले लो। मैं कल और किसी से मांग लाऊंगी। अमर ने चरखा चलाते हुए कहा-आज ही तो फीस जमा करने की तारीख थी। नाम कट गया। अब रुपये लेकर क्या करूंगा ? इस पुस्तक को पूरा पढ़ने के नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करे।

 

 

 

 

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