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सिर्फ पढ़ने के लिए

 

 

 

वहां दीपक चाय वाले के पास बहुत से बेरोजगार लोग आकर रघुराज से मिलने लगे उन्हें यह बहुत ही सुनहरा अवसर लग रहा था। तीसरे दिन सुखिया भी तीस आदमियों के साथ रघुराज के पास आया। सभी लोग उत्साहित थे बंगलोर जाने के लिए।

 

 

 

 

रजनी को अपने स्कूल में ही नहीं पूरे जिला में ही प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। वह आगे की पढ़ाई के लिए कुंवर कन्हैया सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में ही अपना नाम लिखवाया था। जिले में प्रथम आने वाली बालिका के वहां नाम लिखवाने के लिए कोई भी परेशानी नहीं हुई।

 

 

 

 

नरेश और विवेक को इस बार बारहवीं की परीक्षा देना था तथा सुधीर को दसवीं की पढ़ाई करनी थी और सभी लोग अपनी पढ़ाई में जी जान से जुटे हुए थे क्योंकि बोर्ड की परीक्षा थी इसमें लापरवाही का मतलब ही था कि एक साल का बर्बाद हो जाना।

 

 

 

 

रजनी तो और मेहनत कर रही थी क्योंकि उसे भी अगले साल ही बारहवीं की परीक्षा देना था। सुधीर के मन में पढ़ाई के साथ ही एक कम्पनी का स्वप्न था जिसमे कई लोगो के लिए जीविका का अवसर प्राप्त हो सके। रविवार का दिन था सुधीर अपनी पढ़ाई कर रहा था।

 

 

 

 

उसके घर के बगल से गांव के अंदर जाने के लिए रास्ता था। वहां 12-15 साल के 5-6 लड़के क्रिकेट के महान खिलाडी बनने की प्रैक्टिस कर रहे थे जो कि एक दुरूह सा कार्य था। दुरूह इसलिए कि हर कार्य या खेल में सफल होने के लिए समर्पण की आवश्यकता ही पहली सीढ़ी होती है।

 

 

 

 

यह समर्पण आर्थिक, शैक्षिक, शारीरिक और पारिवारिक होता है। क्रिकेट के महान खिलाडी भी इसी समाज से निकलते है लेकिन इनमे से किसी भी लड़के के पास किसी भी प्रकार समर्पण का सर्वथा अभाव था और इनकी पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठ भूमि तो एकदम निम्न स्तर की थी।

 

 

 

ऐसे मनुष्यो का और ऐसे लड़को का सिर्फ एक ही मकसद होता है दूसरे की हानि करना चाहे वह किसी भी प्रकार की हानि हो और यही उदंड बालक बड़े होकर समाज कंटक बन जाते है। ऐसे बालको को समाज या बाजार की हर गतिविधियों का पता रहता है जो एक सामान्य बालक के लिए असंभव रहता है।

 

 

 

 

हर गांव और घर में कोई न कोई जयचंद रहता है जो विदेशियों के मार्ग प्रसस्त करने के लिए अवश्य ही कार्य करता है लेकिन ऐसे उदंड बालको और व्यक्तियों को नहीं पता कि इतिहास ऐसे जयचंदो को याद नहीं रखता है। गांव में एक खेल का मैदान था।

 

 

 

लेकिन एक दबंग व्यक्ति ने उसपर अपना कब्जा बना लिया था और इन उदंड अभिभावकों के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला था और आज उदंड बालक महान क्रिकेटर बनने के लिए प्रयासरत थे जो कि दिन में तारे तोड़ने के जैसा ही था।

 

 

 

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