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Karwa Chauth Katha In Hindi Pdf Download
पुस्तक का नाम | Karwa Chauth Katha In Hindi Pdf |
पुस्तक के लेखक | – |
पृष्ठ | 40 |
साइज | 1.6 Mb |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | धार्मिक |


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सिर्फ पढ़ने के लिये
जल की बूंदे, पृथ्वी के रज कण चाहे गिने जा सकते हो पर श्री रघुनाथ जी के चरित्र का वर्णन करने से नहीं चुकता है। यह पवित्र कथा भगवान के परम पद को देने वाली है। इसके सुनने से अविचल भक्ति की प्राप्ति होती है। हे उमा! मैं वह सब सुंदर कथा कही जो काकभुशुण्डि जी ने गरुड़ जी को सुनाई थी।
मैंने श्री राम जी के कुछ थोड़े से गुणों का बखान किया है। हे भवानी! सो कहो, अब और क्या कहूं? श्री राम जी की मंगलमयी कथा सुनकर पार्वती जी हर्षित हुई और अत्यंत विनम्र और कोमल वाणी बोली। हे त्रिपुरारी! मैं धन्य हूँ जो मैंने जन्म-मृत्यु के भय को हरने वाले श्री राम जी के चरित्र को सुना।
हे कृपाधाम! अब आपकी कृपा से मैं कृतकृत्य हो गयी। अब मुझे मोह नहीं रह गया। हे प्रभु! मैं सच्चिदानंद घन श्री राम जी के प्रताप को जान गयी। हे नाथ! आपका मुख रूपी चन्द्रमा श्री रघुवीर की कथा रूपी अमृत बरसाता है। हे मतिधीर! मेरा मन कर्णपुटो से उसे पीकर तृप्त नहीं होता है।
श्री राम जी का चरित्र सुनते हुए जो तृप्त हो जाते है उन्होंने तो उसका विशेष रस जाना ही नहीं। जो जीवन मुक्त महामुनि है वह भी भगवान के गुण निरंतर सुनते रहते है। जो संसार सागर से पार होना चाहता है उसके लिए तो श्री राम जी कथा दृढ नौका के समान है। श्री हरि के गुण समूह तो विषयी लोगो के कानो को भी सुख प्रदान करने वाले और मन को आनंद देने वाले है।
जगत में ऐसा कौन श्रवन वाला है जिसे श्री रघुनाथ जी के चरित्र न सुहाते हो। जिन्हे श्री रघुनाथ जी की कथा नहीं सुहाती है वह मुर्ख जीव तो अपनी आत्मा की हत्या करने वाले है हे नाथ आपने श्री राम चरित्र मानस का गान किया उसे सुनकर मैंने अपार सुख प्राप्त किया।आपने जो यह कहा कि यह सुंदर कथा काकभुशुण्डि जी गरुण जी से कही थी।
सौ कौए का शरीर प्राप्त करके भी काकभुशुण्डि वैराग्य, ज्ञान और विज्ञान में दृढ है उनका श्री राम जी के चरणों में अत्यंत प्रेम है और उन्हें श्री रघुनाथ जी की भक्ति प्राप्त है। इस बात का मुझे परम संदेह हो रहा है।
हे त्रिपुरारी! सुनिए, हजारो मनुष्यो में कोई एक धर्म के व्रत का धारण करने वाला होता है और कोटि धर्मात्माओं में कोई एक विषयो का त्यागी और वैराग्य परायण होता है। श्रुति कहती है कि कोटि विरक्त मनुष्यो में कोई एक ही सम्यक ‘यथार्थ’ ज्ञान को प्राप्त करता है और कोटि ज्ञानियों में कोई एक जीवन मुक्त होता है। जगत में कोई विरला ही जीवन मुक्त होगा।
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