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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

उसे सुनकर नारद को अत्यंत दया आयी। उन्होंने कहा – हे गरुण! सुनिए, श्री राम जी की माया बहुत ही बलवती है जो ज्ञानियों के चित्त को भली-भांति हरण करने में समर्थ है और उनके मन में बहुत मोह उत्पन्न कर देती है। उसने मुझको भी बहुत बार नचाया है।

 

 

 

 

हे पक्षीराज! वही माया आपको भी व्याप गयी है। हे गरुण! आपके हृदय में बहुत भारी मोह उत्पन्न हो गया है। यह मेरे समझाने से तुरंत नहीं मिटेगा। अतः हे पक्षीराज! आप ब्रह्मा जी के पास जाइये और वहां जिस कार्य के लिए आदेश मिले वही कीजिएगा।

 

 

 

 

ऐसा कहकर परम सुजान देवर्षि नारद जी श्री राम जी का गुणगान करते हुए और बारंबार श्री हरि की माया का बल वर्णन करते हुए चले।

 

 

 

 

ब्रह्मा जी विचार करने लगे कि कवि, कोविद और ज्ञानी सभी माया के वश में है। भगवान की माया का प्रभाव असीम है जिसने मुझे भी अनेको बार नचाया है। यह सारा जगत तो मेरा ही रचा हुआ है। जब मैं ही माया वश नाचने लगता हूँ तब पक्षीराज गरुण को मोह होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

 

 

 

 

तदनन्तर ब्रह्मा जी सुंदर वाणी बोले – श्री राम जी की महिमा को महादेव भी जानते है। तभी पक्षीराज गरुण ब्रह्मा जी के पास गए और अपना संदेह उन्हें कह सुनाया। उसे सुनकर ब्रह्मा जी ने श्री राम जी को सिर नवाया और उनके प्रताप को समझकर उनके हृदय मे प्रेम उत्पन्न हो गया।

 

 

 

 

हे गरुण! तुम शंकर जी के पास जाओ। हे तात! और कही किसी से न पूछना। तुम्हारे संदेह का नाश वही होगा। ब्रह्मा जी का वचन सुनते ही गरुण चल दिए। तब बहुत आतुरता से पक्षीराज गरुण जी मेरे पास आये। हे उमा! उस समय मैं कुबेर के पास जा रहा था और तुम कैलाश पर थी।

 

 

 

 

गरुण ने आदर पूर्वक मेरे चरणों में सिर नवाया और फिर मुझको अपना संदेह सुनाया। हे भवानी! उनकी विनती और कोमल वाणी सुनकर मैंने प्रेम सहित उनसे कहा। हे गरुण! तुम मुझे रास्ते में ही मिले हो। राह चलते हुए मैं तुम्हे किस प्रकार समझाऊं? सभी संदेह का नाश तभी हो सकता है जब दीर्घ काल तक सत्संग किया और सत्संग में सुंदर हरिकथा सुनी जाय।

 

 

 

 

जिसे सभी मुनि लोगो ने अनेक प्रकार से गाया है और जिसके आदि मध्य और अंत में भगवान श्री राम जी ही प्रतिपाद्य प्रभु है। हे भाई! जहां प्रतिदिन हरिकथा होती है। मैं तुमको वही भेजता हूँ तुम जाकर उसे सुनो। उसे सुनते ही सब तुम्हारा संदेह दूर हो जायेगा और तुम्हे श्री राम जी के चरणों में अत्यंत प्रेम होगा।

 

 

 

 

सत्संग के बिना हरि की कथा सुनने को नहीं मिलती उसके बिना मोह नहीं भागता और मोह गए बिना श्री राम जी के चरणों में दृढ और अचल प्रेम नहीं होता।

 

 

 

 

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