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Kundalini Jagran PDF
कैलाश पर्वत पर की हुई साधना से दूनी सिद्धि होती है। धर्म, अर्थ, काम तीनो ही प्राप्त होते है। वह हेमकूट का पर्वत का सरोवर सर्पो का बनाया हुआ है। ज्योतिर्मान प्रज्ञा वही उत्पन्न होती है। वहां संवर्तक नामक भयानक अग्नि जलती रहती है। वह इस सरोवर को पी जाता है।
यह अग्नि समुद्र को भी सुखा देने वाला वड़वा मुख है। मूलाधार को शक्ति का केंद्र माना गया है। इसे अग्नि कुंड शक्ति उद्गम काली पीठ तथा क्रिया शक्ति की अधिष्ठात्री कुंडलिनी के रूप में चित्रित किया गया है। इसका संकेत अध्यात्म शास्त्र में इस प्रकार मिलता है।
कटि से निम्न भाग में अग्नि स्थान है। वह सिंदूर के रंग का है। उसमे पंद्रह घड़ी प्राण को रोककर अग्नि की साधना करनी चाहिए। नाभि के नीचे कुंडलिनी का निवास है। यह आठ प्रकृति वाली है। इसके आठ कुंडल है। यह प्राणवायु को यथावत संचालित करती है।
अन्न और जल को व्यवस्थित करती है। मुख तथा ब्रह्म रंध्रि की अग्नि को प्रकाशित करती है। बिजली की बेल के समान तपते हुए चन्द्रमा के समान अग्निमयी वह शक्ति दृष्टिगोचर होती है। इन सब तथ्यों पर दृष्टिपात करते हुए इसी निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ता है। डाउनलोड करने के लिए नीचे दी गयी बटन पर क्लिक करे।
Kundalini Jagran PDF Download
पुस्तक का नाम | गायत्री साधना से कुण्डलिनी जागरण Pdf |
पुस्तक के लेखक | पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य |
भाषा | हिंदी |
साइज | 2.1 Mb |
पृष्ठ | 49 |
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