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Kung Fu Book in Hindi Pdf Download

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सिर्फ पढ़ने के लिये
सूत जी ने कहा – आप सब महर्षिगण रोग शोक से रहित कल्याणमय भगवान शंकर का स्मरण करके पुराण प्रवर शिव पुराण की जो वेद के सार तत्व से प्रकट हुआ है कथा सुनिए। शिव पुराण में भक्ति वैराग्य और ज्ञान इन तीनो का प्रीतिपूर्वक गान किया गया है और वेदान्तवेद्य सद्वस्तु का विशेष रूप से वर्णन है।
इस वर्तमान कल्प में जब सृष्टि कर्म आरंभ हुआ था उन दिनों छः कुलो के महर्षि परस्पर वाद-विवाद करते हुए कहने लगे अमुक वस्तु सबसे उत्कृष्ट है और अमुक नहीं है। उनके इस विवाद ने अत्यंत महान रूप धारण कर लिया। तब वे सब के सब शंका के निवारण के लिए सृष्टिकर्ता अविनाशी ब्रह्मा जी के पास गए और हाथ जोड़कर विनयभरी वाणी में बोले।
प्रभो! आप सम्पूर्ण जगत को धारण पोषण करने वाले और समस्त कारणों के भी कारण है। हम यह जानना चाहते है कि सम्पूर्ण तत्वों से परे परात्पर पुराण पुरुष कौन है? ब्रह्मा जी ने कहा – जहां से मन सहित वाणी उन्हें न पाकर लौट आती है।
जिनसे ब्रह्मा, रूद्र, विष्णु और इंद्र आदि से युक्त यह सम्पूर्ण जगत समस्त भूतो और इन्द्रियों के साथ पहले प्रकट हुआ है वे ही ये देव, महादेव सर्वज्ञ और सम्पूर्ण जगत के स्वामी है। ये ही सबसे उत्कृष्ट है। भक्ति से ही इनका साक्षात्कार होता है। दूसरे किसी उपाय से कही इनका दर्शन नहीं होता।
रूद्र, हर, हरि और अन्य देवेश्वर हमेशा उत्तम भक्ति भाव से उनका दर्शन करना चाहते है। भगवान शिव में भक्ति होने से मनुष्य संसार बंधन से मुक्त हो जाता है। देवता के कृपाप्रसाद से उनमे भक्ति होती है। मेरे गुरु को वहां देखा वे ध्यानमग्न थे।
उनके जागने पर उन्होंने ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार जी को अपने सामने उपस्थित देखा। देखकर वे बड़े वेग से उठे और उनके चरणों में प्रणाम करके मुनि ने उन्हें अर्घ्य दिया और देवताओ के बैठने योग्य आसन भी अर्पित किया। तब प्रसन्न हुए भगवान सनत्कुमार विनीत भाव से खड़े हुए व्यास जी से गंभीर वाणी में बोले।
मुने! तुम सत्य वस्तु का चिंतन करो। वह सत्य पदार्थ भगवान शिव ही है जो तुम्हारे साक्षात्कार के विषय होंगे। भगवान शंकर का श्रवण कीर्तन मनन ये तीन महत्तर साधन कहे गए है। ये तीनो ही वेद सम्मत है। पूर्वकाल में मैं दूसरे-दूसरे साधनो के सम्भ्रम में पड़कर घूमता घामता मंदराचल पर जा पहुंचा और वहां तपस्या करने लगा।
तदनन्तर महेश्वर शंकर की आज्ञा से भगवान नंदिकेश्वर वहां आये। उनकी मुझपर बड़ी दया थी। वे सबके साक्षी तथा शिवगणों के स्वामी भगवान नंदिकेश्वर मुझे स्नेह पूर्वक मुक्ति का उत्तम साधन बताते हुए बोले – भगवान शिव का श्रवण मनन और कीर्तन ये तीनो साधन वेदसम्मत है और मुक्ति के साक्षात् कारण हैं।
यह बात स्वयं भगवान शंकर ने मुझसे कही है। अतः ब्रम्हन! तुम श्रवणादि तीनो साधनो का ही अनुष्ठान करो। व्यास जी से बारंबार ऐसा कहकर अनुगामियों सहित ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार परम सुंदर ब्रह्मधाम को चले गए। इस प्रकार पूर्वकाल के इस उत्तम वृतांत का मैंने संक्षेप से वर्णन किया है।
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