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Laghu Siddhanta Kaumudi Hindi Pdf Download

 

 

 

पुस्तक का नाम  Laghu Siddhanta Kaumudi Hindi Pdf
पुस्तक के लेखक  कौशल किशोर पांडेय
भाषा  हिंदी 
श्रेणी  साहित्य
फॉर्मेट  Pdf
साइज  182 MB
पृष्ठ  527

 

 

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

तब रघुनाथ जी से आज्ञा लेकर इंद्र का सारथी मातलि चरणों में सिर नवाकर रथ लेकर चला गया। तदनन्तर सदा के स्वार्थी देवता आये।

 

 

 

वह ऐसे वचन कह रहे है मानो बड़े ही परमार्थी हो। हे दीनबंधु! हे दयालु रघुराज! हे परम देव! आपने देवताओ पर बहुत ही दया की। विश्व के द्रोह में तत्पर हुए मुर्ख, कामी और कुमार्ग पर चलने वाला रावण अपने पाप से ही नष्ट हो गया।

 

 

 

अहह! नाथ! श्री रघुनाथ जी के समान कृपा सागर कोई दूसरा नहीं है जिन भगवान ने तुमको वह गति प्रदान की जो योगी समाज को भी दुर्लभ है।

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

मंदोदरी के वचन सुनकर देवता, मुनि और सिद्ध सभी ने सुख माना। ब्रह्मा, महादेव, नारद, सनकादिक आदि जो भी परमात्मा के तत्व को जानने और कहने वाले श्रेष्ठ मुनि थे।

 

 

 

वह सभी श्री रघुनाथ को नयन भरकर निरखकर प्रेममग्न हो गए और अत्यंत सुखी हुए। अपने घर की सभी स्त्रियो को रोती देखकर विभीषण जी के मन में बहुत दुःख हुआ और वह उनके पास गए।

 

 

 

उन्होंने भाई की दशा देखकर दुःख किया। तब प्रभु श्री राम जी ने छोटे को आज्ञा दिया कि विभीषण को धैर्य बंधाओ। लक्ष्मण जी ने उन्हें बहुत प्रकार से समझाया तब विभीषण प्रभु के पास लौट आये।

 

 

 

प्रभु ने उन्हें कृपापूर्ण दृष्टि से देखा और कहा – सब शोक त्यागकर रावण की अंतेष्टि क्रिया करो। प्रभु की आज्ञा मानकर और हृदय में देश और काल का विचार करके विभीषण जी ने सब क्रिया किया।

 

 

 

105- दोहा का अर्थ-

 

 

mandodari आदि सब स्त्रियां रावण को तिलांजलि देकर मन में श्री रघुनाथ जी के गुण का वर्णन करती हुई महल को गयी।

 

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

सब क्रिया कर्म करने के बाद विभीषण ने आकर सिर नवाया। तब कृपासागर श्री राम जी ने छोटे भाई लक्ष्मण जी को बुलाया। श्री रघुनाथ जी ने कहा कि तुम वानरराज सुग्रीव, अंगद, नल, नील, जांबवंत और मारुति सब नीति निपुण लोग मिलकर विभीषण के साथ जाओ और उन्हें राजतिलक कर दो। पिताजी के वचन के कारण मैं नगर में नहीं जाऊंगा। पर अपने ही समान वानर और छोटे भाई को भेजता हूँ।

 

 

 

प्रभु के वचन सुनकर वानर तुरंत चले और उन्होंने जाकर राजतिलक की सारी व्यवस्था कर दिया। आदर के साथ विभीषण को सिंहासन पर बैठाकर राजतिलक किया और स्तुति की।

 

 

 

 

सभी ने हाथ जोड़कर उनको सिर नवाये। तदनन्तर विभीषण जी सहित सब प्रभु के पास आये। तब श्री रघुवीर ने वानरों को बुला लिया और प्रिय वचन कहकर सबको सुखी किया।

 

 

 

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